चार कहानियाँ मंटो की
आज विख्यात कहानीकार सआदत हसन मंटो (Manto) की मृत्यु को 64 साल हो गए. साधारण मनुष्य की छोटी-बड़ी हार-जीतों को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाले मंटो भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्रसिद्ध और चर्चित... Read more
इतने भले नहीं बन जाना साथी
वीरेन डंगवाल (Viren Dangwal) हिन्दी के आधुनिक कवियों की सूची में ऊंचा स्थान रखते हैं. वीरेन डंगवाल (5 August 1947 -27 September 2015) की रचनाओं में गहरी जनपक्षधरता, समाज की गहरी समझ और भाषा-... Read more
हिन्दी सिनेमा में नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने एक बेहतरीन अभिनेता के तौर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों में ब्लैक फ्राइडे (2004), न्यू यॉर्क (2004), पीपली लाइव (2009), क... Read more
लच्छू कोठारी और उसके सात बेवकूफ बेटे
अभी पिछले दशक तक की बात थी जब कुमाऊं के स्कूलों में मास्टर बच्चे की मूर्खतापूर्ण हरकत पर ताना देकर कहता – “तुझसे भली तो लच्छू कोठारी की संतान.” लच्छू कोठारी की संतानों के किस्से पहाड़ क... Read more
बीसवीं सदी में सबसे ज़्यादा पढ़े गए लेखकों में शुमार रोआल्ड डाल ने उपन्यास लिखे, बच्चों के लिए किताबें लिखीं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि एक से एक अविस्मरणीय कहानियां लिखीं. नॉर्वेजियन मूल के माता... Read more
चचा ग़ालिब के जन्मदिन पर उनकी हवेली से एक रपट
सुबह जब गली मीर क़ासिम जान पहुंचा तो उनकी हवेली, जिसे अब एक स्मारक में तब्दील कर दिया गया है, के आसपास कुछ ख़ास नज़र नहीं आया. बाहर उनके पोते के साथ अपने बच्चे को मदरसे ले जाने के लिए रिक्शे का... Read more
पहाड़ी फौजी की कथा मारफ़त छप्पन ए. पी. ओ.
फ़ौज की मुश्किल नौकरी से छुट्टियों के लिए पहाड़ के घर लौट रहे एक मामूली सिपाही से अपनी कविता ‘रामसिंह’ में वीरेन डंगवाल इस तरह मुखातिब होते हैं: ठीक है अब ज़रा ऑंखें बन्द करो रामसि... Read more
नैनीताल में थियेटर का इतिहास करीब एक शताब्दी पुराना है और नैनीताल नगर ने लम्बे समय से रंगमंच के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई हुई है. ललित तिवारी, निर्मल पांडे, सुदर्शन जुयाल, सुनीता रजवार... Read more
रसमलाई का ज़ायका
अब से तुम्हारे साथ कहीं आना ही नही है… कहीं नहीं. शिखर होटल चौराहे से एनटीडी की ओर जाती लिंक रोड के एक रेस्तराँ के बाहर ये स्वर थे रौनक के . नीली जीन्स उस पर घुटनों तक लटकता बूटेदार गर... Read more
रॉंग नंबर
रॉंग नंबर -आशीष ठाकुर एक दोपहर थी थकी-थकी, उदास, ठहरी हुई. खिड़कियाँ सूनी थी, आसमान अकेला. घर में सन्नाटा पसरा था. अब तो बेला के क़दमों की आवाज़ भी नहीं आती, पायल पहनना उसने कब का छोड़ दिया. घर... Read more