साहित्य अकादेमी पुरुस्कार से सम्मानित मंगलेश डबराल (Manglesh Dabral) हमारी भाषा के जाने माने कवि हैं. 16 मई 1948 को उत्तराखंड के गढ़वाल में काफलपानी नामक गाँव में जन्मे मंगलेश के प्रकाशित कविता संग्रहों में प्रमुख हैं – पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज़ भी एक जगह है, मुझे दिखा एक मनुष्य और नए युग में शत्रु.
भाषा और विम्बों की सादगी में बड़ी बात कह देना उनकी रचनाओं की विशेषता है. आज पढ़िए उनकी एक छोटी सी अतिप्रसिद्ध कविता.
![Manglesh Dabral](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/02/Manglesh-Dabral.jpg)
मंगलेश डबराल
आवाजें
– मंगलेश डबराल
कुछ देर बाद
शुरू होंगी आवाजें
पहले एक कुत्ता भूँकेगा पास से
कुछ दूर हिनहिनाएगा एक घोड़ा
बस्ती के पार सियार बोलेंगे
बीच में कहीं होगा झींगुर का बोलना
पत्तों का हिलना
बीच में कहीं होगा
रास्ते पर किसी का अकेले चलना
इन सबसे बाहर
एक बाघ के डुकरने की आवाज
होगी मेरे गाँव में.
-मंगलेश डबराल ( Manglesh Dabral)
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