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3 Comments

  1. ऐश्वर्य मोहन गहराना

    “भोजनावकाश हो गया . उन्होंने टिफ़िन निकाल लिये. वे परस्पर कितना भी झगड़ें, पर खाते मिलकर थे.”
    कमजोर कर दिया इसे आपने – “भोजनावकाश हो गया . वे परस्पर कितना भी झगड़ें, पर खाते मिलकर थे.” इतना काफी था|

  2. प्रिय

    ? धन्यवाद

  3. इमरान बेग

    बहुत ख़ूब , सरकारी नौकरशाही और लालफ़ीताशाही की पोल खोल कहानी रोचक लेकिन सत्य है । वैसे लोग अक्सर जिन सरकारी कार्यालयों मे जाते हैं जैसे RTO या अदालत वहाँ उनका agent या वक़ील साथ मेहोता है । वह सारी दान दक्षिणा का इंतज़ाम करके रखता है सारे काम आसानी से होते दिखते हैं । लेकिन कभी अकेले किसी सरकारी कार्यालय जाकर देखिए – दुबारा कभी नहीं जाएँगे ।

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