पहाड़ ने भी खूब संवारा लखनऊ का चेहरा
किसी भी नगर की सबसे पहली पहचान उसकी नागरिक सुविधाओं से बनती है. लखनऊ अब एक बड़ा महानगर है. सन 1947 में यह छोटा-सा नगर था. इसका प्रबंध नगर पालिका करती थी जिसकी आर्थिक हालत बड़ी खस्ता थी. कुछ... Read more
लोककथा : तपस्या का फल
विरेन आज घर से बाजार के लिये यह कहकर निकला था कि वह पूरा सामान खरीद कर लायेगा. एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी और फिर चौथी. पत्नी भी साथ में थी. बेटा चौदह साल का हो गया था, उसका यज्ञ... Read more
पुरुषों के वर्चस्व वाले परम्परागत पेशे को अपनाने वाली सोमेश्वर की ‘गीता’ की कहानी
हम अक्सर बात करते हैं कि महिलायें आज पुरुषों से कम नहीं हैं. आज महिलाओं ने हर जगह अपनी पैठ बना ली है चाहे वह अभियांत्रिकी का क्षेत्र हो, चिकित्सा का या फिर राजनीति, सेना या शिक्षा. पर हम कभी... Read more
पहले श्राद्ध का गांव में विशेष इन्तजार रहता था . सोलह सरादों में सभी घरों में सराद होता है और गांव में लगभग हर घर में एक समान भोजन बनता है. चौमास का समय हो तो गांव घरों में साग-सब्जी आदि प्र... Read more
लोककथा : जिद्दी औरत
एक गांव में एक औरत रहती थी. वह एक विरोधी स्वभाव व बहुत ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की थी. कोई उसे कुछ भी सलाह दे वह उसका ठीक उल्टा करती. भले ही उसे कितना भी समझाया जाए, वह कितना ही नुकसान उठाये, परन... Read more
चोरी करना बुरी बात है पर यह बात ककड़ी चोरी पर भी लागू हो, कहा नहीं जा सकता. इसलिये तो हमारे पहाड़ में कहा जाता है, ककड़ी चोरी करने वाले को किसी भी प्रकार की गालियां नहीं लगती हैं. पहाड़ में... Read more
लोककथा : मकड़ी के जाल पर मछलियां
एक गांव में एक परिवार रहता था जिसमें परिवार के नाम पर दो ही सदस्य थे, पति और पत्नी. पति एक मेहनती और समझदार किसान था. पति जितना होशियार व समझदार था पत्नी उतनी ही सीधी-सादी थी, चालाकी व हेर-फ... Read more
काली नदी में सबसे ज्यादा जलीय योगदान करने वाली सरमूल से निकलने वाली सरयू और डेबरा श्रेणी भटकोट से निकलने वाली गोमती नदी बागेश्वर में सरयू के रूप में एकाकार हो जाती है. बागेश्वर से कपकोट की त... Read more
कहानी : हार की जीत
-सुदर्शन माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था. भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता. वह घोड़ा बड़... Read more
अर्जन्या: पहाड़ के लोक से जुड़ी कहानी
यकायक मुझे सब कुछ रहस्यमय लगने लगा. घर-आंगन. पेड़-पौधे. लोग. यहां तक कि अपने इजा (मां) और बौज्यू (पिता) भी. मैं घर की देहरी पर बैठा था और मेरी नजर आंगन पर थी. यह आंगन जैसा आंगन नहीं था. जगह-... Read more