उत्तराखंड की सोर घाटी और कत्यूर घाटी में छुरमल बहुत से गांवों के इष्टदेव हैं. छुरमल के पिता का नाम कालसिण है. कालसिण को ही कालचिन या कालछिन भी कहा जाता है. कालसिण को मां कालिका का पुत्र माना जाता है. पिता और पुत्र का संबंध होने के बावजूद कालसिण और छुरमल के मंदिर कभी भी एक साथ नहीं बनाये जाते हैं बल्कि हमेशा आमने-सामने ही बनाये जाते हैं.
कालसिण की पत्नी हयूंला थी और कालसिण स्वयं इंद्र के दीवान हुआ करते थे. जब कालसिण कई वर्षों तक इंद्र की सभा में रहे उसी बीच उनकी पत्नी हयूंला सूर्य की किरण पड़ने से गर्भवती हो गयी थी. जिसके बाद हयूंला को उसके घर से निकाल दिया गया और कालसिण हमेशा के लिए इंद्र की सभा में रहने लगे.
हयूंला ने कठिन परिस्थितियों में अपने पुत्र छुरमल को जन्म दिया. हयूंला ने अपने पुत्र छुरमल को बताया कि उसके पिता कालसिण इंद्र की सभा में दीवान हैं. बालक छुरमल अपने पिता के पास इंद्र की सभा में पहुंचा.
कालसिण ने अपने पुत्र के रक्त संबंध की कई बार कठोर परीक्षा ली. छुरमल देवता ने सभी परीक्षाओं को पार कर कालसिण को प्रभावित किया. अंतिम परीक्षा में उसने यह शर्त रखी कि मैं तुम्हें सात समुन्दर पार लोहे के कड़ाओं में बन्द करूंगा और इधर सात समुन्दर पार से तुम्हारी मां ह्यूंला अपनी छाती से दूध की धार मारेगी. यदि वह तुम्हारे मुंह में ही जायेगी तो मैं तुम्हें तथा तुम्हारी मां दोनों को स्वीकार कर लूंगा. इस परीक्षण में भी वह सफल हो गया.
इसके बाद कालसिण देवता ने छुरमल देवता को अपने पुत्र के रूप मे स्वीकार किया और कहा :
तेरी-मेरी दृष्टि तो पड़े, पर भेंट कभी न हो.
आज भी कृषि और पशुओं की रक्षा करने वाले कालसिण और छुरमल देवता के मंदिर पूरे कुमाऊं में आमने-सामने नज़र आते हैं.
-काफल ट्री डेस्क
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