उत्तराखंड में सकल पर्यावरण सूचक
देश के विकास की दर की माप के सूचक सकल राष्ट्रीय उत्पाद या जीडीपी के मानक हैं परन्तु आर्थिक क्रियाओं से संबंधित प्रकृति व परिवेश यथा जल-जमीन और जंगल से संबंधित पर्यावरण की लागतों और इनसे प्रा... Read more
विश्व साहित्य के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो कई कवि ऐसे हुए हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने द्वारा रचित साहित्य से अपना ऊँचा मकाम बनाया है. बहुत कवियों ने मार्मिक प्रेमगीत लिखे हैं, विरह... Read more
पानि-बाण से जूझ रहा उत्तराखंड
बादल फटने की घटना उत्तराखंड के लिये बड़ी मुसिबत लेकर आती है. पिछले कुछ सालों में बदल फटने की घटना राज्य में बड़ी आम हो गयी है. एक अनुमान के अनुसार राज्य में होने वाली प्राकृतिक आपदाओं में सब... Read more
हरियाणे के बलाली गाँव का नाम सुना होगा. वही फोगाट बहनों का गाँव! दिल्ली से एक सौ दस किलोमीटर दूर इस गाँव तक पहुँचने में गाड़ी से अमूमन दो-ढाई घंटे लगते हैं. रास्ते में झज्जर कस्बा पड़ता है ज... Read more
1982 में गोपेश्वर
इस शताब्दी के पांचवें दसक के अन्त में आ चीनी विस्तारवादी ड्रेगन के खूनी पंजों में फंस कर जब तिब्बत का कमजोर कबूतर लहूलुहान हो गया, तो मानसरोवर गंवा कर तत्कालीन भारत का पंचशीली राजहंस अपनी गर... Read more
अल्मोड़ा की मॉल रोड पर रोज़ सुबह, शाम चाहे गर्मी हो या बरसात, दो लोग एक बुजुर्ग और एक बहुत छोटा बच्चा जिसकी उम्र 4 साल रही होगी, रोज़ अपना बैडमिंटन किट कंधों में लादे हुए अल्मोड़ा स्टेडियम क... Read more
गरतांग गली की रोमांचक यात्रा
पिता द्वारा सुनाये गये किस्से, कहानियां ताजीवन पिता से ही अपने होते हैं यह अपनापन मुझे गरतांग गली तक पहुंचते हुए साहसिक, रोमांचक पैदल यात्रा करते हुए महसूस हुआ. मेरी अचेतन स्मृतियों में गरत... Read more
पहाड़ में खेती किसानी के साथ पशु पालन होता आया. अनाज, फल फूल और सब्जी के साथ गाय बैल, भैंस बकरी और सीमांत इलाकों में भेड़, याक व अन्य पशु दूध दही, मक्खन, व घी के साथ उपज के लिए समुचित खाद प्... Read more
हमारा लोकपर्व घ्यूं त्यार है आज
अपनी विशिष्ट लोक परम्पराओं से उत्तराखंड के लोग अपने समाज को अलग खुशबू देते हैं. शायद ही ऐसा कोई महिना हो जब यहां के समाज का अपना कोई विशिष्ट त्यौहार न हो. ऐसा ही लोकपर्व आज घी त्यार या घ्यूं... Read more
व्यवस्था के चूहे से अन्न की मौत: हरिशंकर
इस देश में आदमी की सहनशीलता जबर्दस्त और तटस्थता भयावह है. पूरी व्यवस्था में मरे हुए चूहे की सड़ांध भरी हुई है. चूहे सरकार के ही हैं और मजे की बात यह है कि चूहेदानियां भी सरकार ने चूहों को पक... Read more