18 मई की सुबह खुलेंगे बद्रीनाथ के कपाट
टिहरी राजपरिवार और बद्रीनाथ धाम की धार्मिक परम्पराएं आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा आठवीं शताब्दी के मध्य में बद्रीनाथ स्थित नारद कुंड में फेंकी गई विष्णु रूप भगवान शालिग्राम की मूर्ति को... Read more
बिना लगन और पैट के होते हैं आज पहाड़ियों के काजकाम: उत्तराखंड में बसंत पंचमी
उत्तराखंड में बंसत पंचमी का दिन सबसे पवित्र दिनों में माना जाता है. कई स्थानों में इसे स्थानीय भाषा में सिर पंचमी भी कहा जाता है. कुछ स्थानों में आज यहां अपनी-अपनी स्थानीय नदियों को गंगा समझ... Read more
रूपकुंड यात्रा के शुरुआती दिन
चमोली जिले में एतिहासिक धार्मिक राजजात यात्रा का एक पड़ाव है लोहाजंग. नौटी से शुरू होने वाली यह पदयात्रा करीब 280 किलोमीटर चलकर सेम, कोटी, भगौती, कुलसारी, चैपडों, लोहाजंग, वाण, बेदिनी, पातर... Read more
एक कविता जो आपको कभी गिरने न देगी
कुछ कविताएं एक ही बार पढ़ने के बाद भी हमारे मानस पटल पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती हैं. रुडयार्ड किपलिंग की अंग्रेजी कविता ‘इफ’ मेरे लिए ऐसी ही कुछ कविताओं में से एक है. मैंने इसे पहली दफा व... Read more
परदेस को चिठ्ठी लिखने का भी कोई कायदा होता होगा. बाबू ने ही तो कहा था – “दुःख में जो-जो मुंह से निकला सब लिख देना हुआ क्या?” फिर तो परदेस में चिठ्ठी बांचने का भी कोई कायदा... Read more
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान एक उत्तराखंडी स्वतंत्रता सेनानी की जेल की यादें
बात सन् 1921-22 की है. तब मेरी उम्र लगभग 5 वर्ष होगी. हम अपने गाँव (नौगाँव, पो. कफड़ा, विकास खण्ड द्वाराहाट) से 8 मील दूर रानीखेत में रहते थे. जरूरी बाजार में मेरे पिताजी की दुकान थी. रानीखे... Read more
जब पंडित हरिकृष्ण पन्त और पॉलफोर्ड ने उत्तराखंड को बिरही गंगा में आई भयानक बाढ़ से बचाया
9 सितम्बर का दिन था और साल था 1893. अलकनंदा की सहायक नदी बिरही गंगा लगभग 5000 मिलियन टन की चट्टानों के मलबे से अवरुद्ध हो चुकी थी. लगभग 5000 मिलियन टन का यह मलबा घाटी की ओर से 900 मीटर की ऊं... Read more
गढ़वाली और कुमाऊनी लोरियां
बचपन में माँ, दादी-नानी से सुने गीतों (लोरियों) की कुछ अस्पष्ट पंक्तियां आज भी दिल की अतल गहराइयों में तैर रही है. आगे चलकर रेडियो और फिल्मी पर्दे पर गाई गई लोरियों के प्रति आकर्षण बढ़ा, संग... Read more
विरासत में मिलने वाली लोक कला ‘ऐपण’ की पृष्ठभूमि
उत्तराखंडी लोक कला के विविध आयाम हैं. यहाँ की लोक कला को ऐपण कहा जाता है. यह अल्पना का ही प्रतिरूप है. संपूर्ण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लोक कला को अलग-अलग नामों जैसे बंगाल में अल्पना, उ... Read more
नंद कुमार उप्रेती : एक आम पहाड़ी का खास किस्सा
उप्रेतीखाल, पाँखू, पिथौरागढ़ में 1930 में जन्मे नंद कुमार उप्रेती की कहानी एक सामान्य पहाड़ी आदमी का उस जमाने का लगभग आम मगर खास किस्सा है. एक गरीब परिवार में जन्म और बचपन में ही शहरों की ओर... Read more