ट्रेल: कुमाऊं में अंग्रेजी राज का संस्थापक
भारत के अन्य भागों की तरह कुमाऊं में भी अंग्रेजों ने अपनी कूट-नीति से सारे कुमाऊं-गढ़वाल में अपना अधिकार 1815 तक कर लिया. अपने राज्य की नींव को गहरा करने के लिए, उन्होंने ‘चीनी में लिप... Read more
एबट माउंट में ख़ब्बीस से इक मुलाक़ात
जी हाँ, ये मुलाक़ात सच्ची है महज़ किस्सागोई नहीं. ख़ब्बीस के मुलाकाती हैं पोलिटिकल साइंस में डी. लिट, दुबले पतले, बड़े पढ़ाकू, घुमक्कड़, हरफनमौला प्रोफेसर ज़ाकिर हुसैन. यारों के यार. इमोशनल... Read more
रोज की तरह, सात साल का गुट्टू मुन्ना अपनी हमउम्र पड़ोसिन चुनमुन के पास खेलने पहुँचा. चुनमुन उसे अपने मकान के दालान में खड़ी मिली. वह बड़े चाव से कुटुर-कुटुर शक्करपारे खा रही थी. गुट्टू मुन्न... Read more
ठेठ गढ़वाल के जीवन से जुड़ी चीज़ों को समझने के लिए एक तरह का रोचक शब्दकोश है ‘काऽरी तु कब्बि ना हाऽरि’
बचपन में नए साल के ग्रीटिंग कार्ड बनाने के दौरान एक युक्ति सीखी थी. रंग में डुबाया हुआ धागा लेकर (रंग के नाम पर अमूमन हमारे पास स्याही ही होती) सादे कागज़ पर हौले से अगड़म-बगड़म आकार में रख... Read more
हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं
हम जीवन में वही बनते हैं, जो अपने बारे में सोचते हैं. हमारी जीवन में वैसी ही घटनाएं घटती हैं, जैसी घटनाओं के बारे में हम सोचते हैं. हम जैसे बनते जाते हैं, वैसे ही लोग भी हमसे जुड़ते जाते हैं... Read more
बचपन से भवाली के ताजमहल के नाम से जाने जाने वाली राजपुताना राजघराने की एक धारोहर के बारे में जानने की मेरी हार्दिक इच्छा रही है. दोस्तों के साथ खाली समय में शाम के वक्त वहाँ जाना और उसके मध्... Read more
दुर्गा भवन स्मृतियों से
जब हम किसी से दूर हों रहे होते हैं, तब हम उसकी कीमत समझने लगते हैं. कुछ ऐसा ही हो रहा है आज भी. कुछ ही पलों के बाद हम हमेशा के लिए यहां से दूर हो जाएंगे. फिर शायद कभी नहीं मिल पाएंगे इस जगह... Read more
पिता ने पुत्र की नियति का निर्धारण करते हुए उसको पैतृक पंडिताई की जागीर सौंप दी थी. पिछली सदी के पूर्वार्द्ध में सामान्यतया इस जागीर को हासिल करने वाला भी भाग्यशाली ही माना जाता था. कारण, उद... Read more
ललित मोहन रयाल ने हिंदी साहित्यिक जगत में अपनी पूर्व प्रकाशित दो पुस्तकों ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ तथा ‘अथ श्री प्रयागकथा’ के द्वारा एक अद्वितीय स्थान बना लिया है.... Read more
सुनहरे गणतंत्र में उत्तराखंड के लोग
हमसे तो कभी गणतंत्र भी साफ़ साफ़ न कहा गया. हमारे लिये हमेशा आज का दिन 26 जनवरी हुआ. स्कूल में भी 26 जनवरी को छुट्टी ही रही. कभी बढ़िया मासाप रहे तो उन्होंने झंडा फरहाने का काम कर दिया तब शा... Read more