ज़रूरत में काम आने वाला दोस्त ही सच्चा दोस्त होता है इस मुहावरे का असली अर्थ सही मायनों में मुझे इस घटना के द्वारा ही पता चला. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwa
हुआ यूँ कि एक दिन जंगल सफ़ारी के दौरान बिज़रानी सफ़ारी ज़ोन में मुझे एक हाथियों का झुंड दिखायी दिया जिसमें छोटे बच्चे भी थे. वे सब उस दौरान बारिश से हुए एक गड्ढे में बने कीचड़ में लिपट-लिपट कर कीचड़ स्नान का मज़ा ले रहे थे. बता दूँ कि कीचड़ स्नान करने से ये अपनी त्वचा को परजीवी मुक्त कर लेते हैं और शरीर के तापमान को भी कम करने में ये कीचड़ स्नान काफ़ी फ़ायदेमंद साबित होता है.
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मेरी नज़र कुछ दूरी पर कीचड़ में खेलते हुए बच्चों पर पड़ी जो हमउम्र नज़र आ रहे थे शायद अलग-अलग हथनियों के बच्चे रहे होंगे. उम्र में मुश्किल से 5-6 महीनों के रहे होंगे. उनमें से एक बच्चा कीचड़ स्नान करके गड्ढे से बाहर निकल अपने साथी का इंतज़ार कर रहा था. जैसे ही दूसरे बच्चे ने निकलने की कोशिश की उसका पैर फिसल गया और वह फिसलकर गिर गया. उसने फिर कोशिश की पर वह फिर फिसल गया. तब दूसरे बच्चे ने अपने दोस्त की हिम्मत बढ़ायी और उसे अपने पैर से सहारा देकर बाहर निकलने में उसकी मदद करने लगा. ये ऐसा नजारा था जिसे देखकर मैं काफ़ी भावुक हो गया. मैं उस दोस्ती वाले अहसास को मानो जी रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे यह घटना मेरे साथ ही घट रही हो. इसे भी पढ़ें : एक दर्द भरी दास्ताँ
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बाक़ी झुंड अपनी मस्ती में था. जैसे उन्हें इन बच्चों की कोई फ़िक्र ही नहीं थी. या फिर वे इसे एक सामान्य घटना की तरह ले रहे थे. या फिर वे चाह रहे थे कि वह ख़ुद कोशिश करके बाहर निकले. बहरहाल जो भी था, पर मेरे लिए ये बढ़े भावुक कर देने वाले पल थे. वह अपने दोस्त के सहारे बार-बार बाहर निकलने की कोशिश करता पर फिर फिसल जाता.
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बाहर खड़ा उसका दोस्त मानो हार मानने को तैयार ही नहीं था. वह अपनी ही भाषा में चिंघाड़ के अपने दोस्त की होसला अफजाई कर रहा था और बार-बार उसे बाहर निकलने को प्रेरित कर रहा था. पूरा घटनाक्रम लगभग ३० मिनट तक चला. इसे भी पढ़ें : एक थी शर्मीली
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आखिरकार वह अपने दोस्त की सूँड़ की मदद से जैसे-तैसे बाहर निकलने में कामयाब रहा. उसके बाहर निकलने पर दोस्त की ख़ुशी देखने लायक थी. वह अपनी सूँड़ से उसे छूकर अपना प्यार जता रहा था और शायद ये भरोसा भी दे रहा था कि मैं हूं तो कोई फ़िक्र की बात नहीं है.
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मेरे लिए ये पूरा घटनाक्रम किसी अजूबे व सीख से कम नहीं था. मैं सोचने पर विवश था— ऐसा कैसे हो सकता है कि 5-6 माह के छोटे बच्चे के अंदर दोस्ती की ऐसी अटूट भावना हो सकती है. जबकि हम लोग केवल मतलब के लिए ही दोस्ती करते है. मैं अपने इन ख़्यालों में ही खोया हुआ था कि ड्राइवर बोला बाहर जाने का समय हो गया है. यक़ीन मानो अगले कुछ दिनों तक दिमाग़ में यही नजारा चलता रहा. वही प्रश्न भी कि कैसे इन बेज़ुबानों में इतनी कम उम्र मैं इतनी गहरी समझ आ सकती है जबकि हम इंसान ता-उम्र भी ये समझ नहीं पाते और नफ़ा-नुक़सान के आधार पर ही दोस्तों को चुनते हैं. शुक्रगुज़ार हूँ प्रकृति का कि उसने ऐसे दुर्लभ नज़ारे से रू-ब-रू करवाया और जिंदगी का सबसे बेहतरीन पाठ पढ़ाया.
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रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.
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