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1 Comments

  1. Krishna s chauhan

    दैवस्थानम बोर्ड के विरोध स्वरूप पुरोहित जी का शीर्षासन वास्तव में पूरे पंडा समाज और हकहकूक धारियों के दर्शन का यथार्थ है। योग्यता नहीं अपितु मात्र जन्म पर आधारित धार्मिक लूटपाट के स्वार्थी दृष्टिकोण युक्त समुदाय से कभी भी किसी पारमार्थिक , सर्वजनहिताय , सुधारवादी तथा नैतिक कदम में कुछ सीधा , उपयोगी और अच्छा दिखाई देने की कामना किसी पाप से कम नहीं। यकीन कीजिए हिंदुत्व ही नही दुनिया के हर धर्म में आस्थावान लोगों में उत्तरोत्तर कमी के लिए हर धर्म का पुरोहित वर्ग ही जिम्मेदार है जिनकी कथनी और करनी में कोई साम्य नहीं होता और भगवान उनके लिए मात्र एक व्यवसायिक वस्तु है जिसके नाम , निशान अथवा प्रतीम को हर एक उपासना स्थल में केवल तिज़ारत के लिए उपयोग में लाया जाता है।

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