विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
रुपकुंड उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित झील है जिसकी समुद्रतल से उंचाई 5029 मीटर है. हिमालय की त्रिशूल और नंदाघुंटी पर्वत श्रंखलाओं की गोद में बसा रुपकुंड विश्वविख्यात पर्यटन स्थल होने के साथ ही उत्तराखंडवासियों का पवित्र धार्मिक स्थल भी है. जहां हर वर्ष सितम्बर माह में नंदा देवी यात्रा का आयोजन होता है और प्रत्येक बारह वर्षों में नंदा राजजात यात्रा का आयोजन किया जाता है. यह झील साल के ज्यादातर महीनों में जमी ही रहती है.
रुपकुंड अपने चारों ओर बिखरे हुए मानव कंकालों के लिये भी प्रसिद्ध है जो इसे रहस्यमयी बनाते हैं. 1960 में वैज्ञानिकों द्वारा करायी कार्बन डेटिंग से पता चलता है कि ये मानव कंकाल 12वीं सदी से 15 वीं सदी के हैं जिनमें मानव शरीर, कपड़े, जूते, बर्तन आदि कई तरह के अवशेष मिलते हैं. इन कंकालों की लम्बाई 10 फीट तक नापी गयी है. हालांकि इनकी संख्या निश्चित नहीं है फिर भी एक अनुमान के अनुसार यह लगभग 500 के आस-पास है. जो अचानक हुई ओलावृष्टि का शिकार हो गये थे.
कंकालों के विषय में कई लोक कथायें प्रचलित हैं. उनमें से एक लोककथा के अनुसार यह अवेशेष कन्नौज के राजा यशोधवल, उनकी पत्नी, बच्चों, परिवार के अन्य सदस्यों व उनके साथ आये दूसरे यात्रियों के हैं. कहा जाता है कि उन्होंने यहां आने पर राजजात के नियम व मर्यादाओं का पालन नहीं किया जिस कारण देवी के गुस्से का शिकार होना पड़ा. दूसरी लोककथा के अनुसार यह अवशेष कन्नौज के राजा जसधवल के हैं जो यहां नंदा राजजात के दौरान नृतकियों को लाया था. जब नतृकियों ने नृत्य शुरू किया तो देवी ने उनको पत्थर का बना दिया. राजजात में राजा की पत्नी को प्रसव भी हुआ जिस कारण देवी नाराज हो गयी और दंड स्वरूप एक बर्फिले तूफान द्वारा राजा की पूरी सेना को नष्ट कर दिया. आज भी वैज्ञानिक इन कंकालों के अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश में लगे हैं.
रुपकुंड जाने वाला रास्ता बेहद कठिन पर खूबसूरत है जिसे रास्ते में पड़ने वाले बड़े-बडे़ बुग्याल (पहाड़ी घास के मैदान) और भी खूबसूरत बना देते है. जुलाय से सितम्बर के बीच में यहां ब्रह्म कमल के फूल भी दिखायी देते हैं.
(सभी फ़ोटो विनीता के खींचे हुए हैं. – सम्पादक)
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