माना जाता है कि चंद साम्राज्य की राजधानी चम्पावत से डुंगरियाल-नेगी जातियों से सम्बन्ध रखने वाले कुछ परिवार अपना मूल स्थान छोड़ कर पौड़ी में आ कर बसे थे. जैसी कि परम्परा थी इस तरह स्थान बदलने वाले जन अपने साथ अपने अपने इष्ट देवताओं को भी साथ लेकर चलते थे. जनश्रुति है कि पौड़ी के ये शुरुआती पुरखे अपने साथ अपने इष्ट देवता गोरिल को एक कंडी में रख कर अपने साथ लाये थे जिस कारण उन्होंने इसे कण्डोलिया ठाकुर का नाम दिया.
कण्डोलिया ठाकुर का मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी नगर में ऊंचाई पर स्थित एक टीले पर बना हुआ है. ऐसा भी कहा जाता है कि पहले यह मंदिर तत्कालीन पौड़ी ग्राम के सामुदायिक चौक में की गयी थी लेकिन देवता को वह स्थान रास नहीं आया. नगर की ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किये जाने के बाद से इस देवता की पूजा क्षेत्र की सुरक्षा करने वाले इष्ट के रूप में होने लगी. परम्परा है कि डुंगरियाल-नेगी जातियों के लोग ही इस मंदिर के पुजारी बनते हैं.
कुछ लोग कण्डोलिया ठाकुर को डुंगरियाल-नेगी जातियों के भूम्याल देवता के रूप में चिन्हित करते हैं. जो भी हो जन-आस्था के अनुसार किसी भी तरह के अपशकुन या बुरी घटना का पूर्वाभास होते ही यह देवता पुकार लगा कर सारे नागरजनों को चेता देते थे.
कण्डोलिया मंदिर के परिसर में लगा सूचना-प्रस्तर बताता है:
कण्डोलिया देवता मूलरूप से भगवान् के ही स्वरूप हैं. ग्रामवासी एवं स्थानीय लोग श्रद्धा के साथ इनकी पूजा अर्चना भूमियाल देवता के रूप में करते हैं. पूर्वकाल से यह ‘धवाड़िया देवता’ के रूप में भी प्रसिद्ध हैं अर्थात यह गाँववासियों को उनके होने वाले नुक्सान एवं संकट के सम्बन्ध में पूर्व में ही आवाज देकर इसकी सूचना व चेतावनी दे देते थे.
इस मंदिर का परिसर देवदार और बुरांश से घिरा हुआ है और मौसम साफ़ होने पर यहाँ से हिमालय की अनेक चोटियों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है.
विगत कई वर्षों से यहाँ हर साल जून के महीने में तीन-दिवसीय मेला लगने लगा है जिसमें बड़ी संख्या में लोग शिरकत करते हैं. मन्दिर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने जिला प्रशासन ने एक सुन्दर पार्क का निर्माण कराया हुआ है.
कण्डोलिया ठाकुर के मंदिर की कुछ तस्वीरें देखिये:
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