होली बच्चों का पसंदीदा त्यौहार है. होली में मटरगश्ती तो होती है लेकिन साथ में पकवान इस मटरगश्ती को दोगुना बड़ा देते हैं. होली में बनने वाले पकवानों में एक है गुजिया. बच्चों से लेकर बूढ़े गुजिया बड़े चाव से खाते हैं.
गुजिया और गुझिया
गुजिया एक शहरी पकवान है. कुछ घरों की गुजिया तो इतनी लोकप्रिय होती है कि लोग सालों-साल उसके स्वाद के कसीदे पढ़ते हैं. आज बाजार में अलग-अलग चीजें भरकर गुजिया बनायी जाती हैं लेकिन मुख्य रूप से गुजिया में मैदे की परत के भीतर मावा (खोया) या सूजी ही भरी जाती है.
स्वाद के अनुसार मावा भरी हुई गुजिया लोगों को अधिक पसंद आती हैं लेकिन सूजी भरी गुजिया लम्बे समय तक तक चलती है. आज के समय लोग गुजिया और गुझिया दोनों को एक समझते हैं लेकिन वास्तव में गुजिया और गुझिया में अंतर है.
गुझिया में मैदे की परत के बाहर से चासनी की परत लगती है जिससे गुझिया और अधिक मीठी हो जाती है. गुजिया में मैदे की परत के बाहर कोई परत नहीं चढ़ती. गुजिया और गुझिया दोनों में भीतर से मावा और ड्राई-फ्रूट्स मिले रहते हैं.
गुजिया बनाने के लिये औरतें नाखून नहीं काटती थी
गुजिया एक मध्यकाल का पकवान है. गुजिया और समोसा दोनों ही भारत में लगभग साथ में आये. दोनों मूल रूप से पश्चिमी देशों से मध्य एशिया होते हुए भारत आये. उत्तर भारत में गुजिया होली का एक पकवान है लेकिन भारत के कई सारे हिस्सों में गुजिया अन्य त्यौहारों में भी बनती है.
आज गुजिया बनाने के लिये बाजार में तरह तरह के सांचे उपलब्ध हैं लेकिन पुराने समय में गुजिया बनाने के लिये किसी भी तरह का सांचा नहीं हुआ करता था. मध्यकाल में गुजिया बनाने ले लिये महिलाएं होली से कुछ दिनों पहले से ही नाख़ून काटना बंद कर देती थी.
गुजिया को गोठने के लिये महिलाएं अपने नाखूनों का प्रयोग करती थी. लम्बे नाख़ून से गुजिया गोठने में ज्यादा सहूलियत होती थी इसलिये महिलाएं गुजिया बनाने के कुछ दिन पहले से ही नाख़ून काटना बंद कर देती थी.
ऐसे बनती है गुजिया
गुजिया बनाना आज भी कम मेहनत का काम नहीं है. सबसे पहले मैदा गूंथ कर ढलने के लिये रखा जाता है. इसके बाद घी गर्म करइसमें मावा डाला जाता है और लगातार चलाते हुए हल्का भूरा होने तक भूना जाता है. इस दौरान आंच मीडियम रखी जाती है. मावा भुन जाने के बाद, इसे बर्तन में निकालकर ठंडा होने के लिये रखते हैं.
ठंडा होने पर मावा में पिसी हुई चीनी, नारियल, किशमिश और काजू डालकर मिला लेते हैं. साथ ही चिरौंजी और इलाइची भी डालकर खूब अच्छे से मिला लिया जाता है.
गूंथे मैदे की लोई बनाकर उसकी पूरी बेलते हैं जिसे सांचे में रखकर उसके भीतर फिलिंग की जाती है. गुजिया के भीतर मावा भरने के बाद उसके किनारों पर हल्का दूध लगाते हैं और सांचा बंद कर देते हैं. सांचे को किनारे से दबाते हैं और सांचा खोलकर गुजिया उससे निकाल लेते हैं. गुजिया को कपड़े से ढ़ककर रखते हैं ताकि वह सूखे न. इसके बाद गुजिया को बहुत सावधानी से तलते हैं.
-काफल ट्री डेस्क
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