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3 Comments

  1. Nazim Ansari

    इतिहास तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर लिखा जाता है। निस्संदेह अंग्रेज़ यहाँ के संसाधनों को लूट रहे थे लेकिन उनकी कर-प्रणाली के कारण सोर घाटी के लोग पलायन कर गए ,नेपाल में जाकर बस गए यह सब विश्वसनीय नहीं लगता। यदि उनकी कर वसूली इतनी खतरनाक थी तो पूरे अल्मोड़ा ज़िले से पलायन होता ,सोर और सीरा परगने तो उस समय अल्मोड़ा जिला के अंतर्गत थे। दूसरी बात पिथौरागढ़ को टनकपुर से जोड़ने वाली सबसे पुरानी सड़क जिसे आज आल वेदर रोड कहा जाता है उस समय जंगलात की सड़क थी यह अंग्रेज़ों ने ही शुरू की थी। काली,रामगंगा,सरयू आदि नदियों में जो झूला पुल आज भी मौजूद है सब अंग्रेज़ों ने ही बनवाए। मिशन स्कूल ,एल डब्ल्यू एस बालिका विद्यालय ,चंडाक का कोड़ीखाना ,अस्पताल की स्थापना आदि कार्य भी अंग्रेज़ो ने जनता के लिए ही किए। अंग्रेज़ों के समय में ही काली कुमाऊं से आकर लोग सोर घाटी में बसे। प० बद्री दत्त पांडे ने अपनी सात सौ पृष्ठों की पुस्तक में कहीं ऐसा उल्लेख नहीं किया। अंग्रेज़ों ने तो नैनीताल और रानीखेत जैसे नगर बसाए ,सोर तक तो उस समय अधिक संख्या में अंग्रेज़ पहुँच भी नहीं पाए। गोख्योल पहाड़ में एक गाली /अपशब्द है जो गोरखा के अत्याचार को याद दिलाती है लेकिन अँग्रेज़ियोल जैसा शब्द कभी सुना नहीं।

  2. Nazim Ansari

    सोर घाटी के कुछ गावों से अंग्रेज़ी शासन के शुरुआती दौर में लोगों का नेपाल पलायन कर जाना सच है ,अंग्रेज़ अधिकारीयों के अपने सर्वेक्षण और रिपोर्ट्स में इसका उल्लेख किया गया है लेकिन यह बड़े स्तर का पलायन या लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया नहीं थी। नई कर प्रणाली में कर की अदायगी कृषक को अनाज की जगह नकद करनी थी जो छोटे और निर्धन किसानों के ऊपर आर्थिक बोझ बनने लगी जिसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों ने डोटी की ओर पलायन किया और वहीँ बस गए। बाद में अंग्रेज़ों ने इसमें बदलाव किए जिससे आने वाले समय में दूसरी समस्याओं का चाहे सामना करना पड़ा हो लेकिन पलायन नहीं हुआ।

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