च्यूरे से घी बनता तो इसके फल खाये जाते. इसके घी में रसेदार सब्जी बड़ी स्वाद बनती. इसे टपकी और पालक के कापे में भी डाला जाता. काले भूरे तिल भी होते जिनका तेल भी सब्जी व दाल में डाला जाता. Different types of Oil in Uttarakhand
जाड़ों में तिल भून कर खाये भी जाते. गुड़ के पाग के साथ लड्डू भी बनते. उर्द या मास की दाल में मसाले की तरह पीस के डाले जाते. खाने के साथ तिल भून व पीस कर चटनी बनती. जाड़ों में बदन का ताप भी बना रहता. बाल भी घने रहते बदन में लुनाई और चमक भी रहती. फिर मूत्र रोगों की रोकथाम भी करता पहाड़ी कालाभूरा तिल.
बच्चों के साथ वो सब जिन्हें सोये में मुतभरी जाने का अल्त हो गया हो को कुछ दिन लगातार भुने तिल का किसी भी रूप में सेवन कराया जाता. ज्वान बने रहने को भी जाड़ों में तिल से बने व्यंजन बनाना और खिलाना जरुरी जैसा हो जाता. खाया भी खूब जाता क्योंकि काला भूरा पहाड़ी तिल जितना चबाओ उतना सुवाद बढ़ता.
मूंगफली भी बलुई जगहों में काफ़ी होती. यह कच्ची भी खायी जाती और भून भान के भी. मूंगफली का तेल तो निकलता ही जो खाना बनाने में काम आता और बदन में चुपड़ने के भी. अख़रोट और खुबानी कि गिरी का तेल भी जाड़ों में बदन में चुपड़ने और ठंड की आदि-व्याधि दूर करने में काम आता.
खुबानी की कई किस्में ऐसी भी होतीं जिनकी गिरी बादाम जैसी मीठी होती पर बाकी बड़ी तीती कड़वी. इन्हें एकबटिया लिया जाता. फिर सिल में पीस लिया जाता. बीच-बीच में पानी से गीला करते रहते. जब यह खूब गुलगुला हो जाता और लोड़े से चिपकता नहीं तो मोटे कपडे में रख निचोड़ लेते. खुमानी का यह तेल मालिश के काम तो आता ही, नाक सूखने और ख्वारपीड़ में बहुत काम आता. Different types of Oil in Uttarakhand
पहाड़ के जंगलों में कौंच भी खूब होता. जिसकी कोमल कलियों का साग बनता तो गोल बड़े दानों को दूध में उबाल, सुखा पीस पौडर या घी में मिला अवलेह भी बनाया जाता. पर इसके झाड़ को सिसूण कि तरह कोरे हाथ से नहीं छूते. छू लो तो तो इसके रोओं से भयानक खुजली लगती. इसलिए हाथ में बोरी का हंतरा बाँध कौंच की फली टीप ली जाती. इन्हें दूध में उबाल कर फली के सख्त बीज शुद्ध हो जाते, उबला दूध फेंक दिया जाता.
जाड़ों में जोड़ों का दर्द कम करने, बात व्याधि दूर करने में बदन में दम-ख़म बनाये रखने को इसे पूरक आहार की तरह लिया जाता. पहाड़ों में स्यांली या निर्गुन्डी भी होती. इसके बीज जो हलकी सफेदी-नीलापन लिए होते सरसों या लाही के झांस वाले तेल में पका छान-छून कर शीशी में भर लेते. इसे पुठपीड़, सुन्न पट्ट, आंग पीड़ में चुपड़ा जाता, मालिश की जाती. पत्तियों का चूर्ण और रस भी इसी काम आता तो मंत्रो को बुदबुदा इसकी पत्तियों से झाड़ा भी जाता. Different types of Oil in Uttarakhand
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
![](https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_107/https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/01/Prof-Mrigesh-Pande-107x150.jpeg)
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें