17 सितम्बर 2018 को शुरू हुआ 3 दिवसीय नन्दा देवी महोत्सव आज डोले के विसर्जन के साथ ही समाप्त हो गया. विसर्जन से पहले डोले को भव्य आयोजन के साथ पूरे शहर में घुमाया गया. कई सालों बाद इस बार पूर... Read more
लेट्स गो डच – अंग्रेज़ी भाषा का एक पहलू ये भी
कॉक्नी लन्दन के कामगारों की विचित्र लेकिन कल्ट बन चुकी भाषा है. इतिहास की दृष्टि से आमतौर पर मज़दूरों के साथ जोड़ कर देखा जाने वाला अंग्रेज़ी का यह संस्करण कहीं न कहीं पिछले सौ-पचासेक सालों... Read more
गोलू देवता की कहानी
ग्वल्ल ज्यू की जन्म भूमि ग्वालियूर कोट चम्पावत थी. इस ग्वालियूर कोट में चंद वंशी राई खानदान का राज्य था जिनमें हालराई, झालराई, तिलराई, गोरराई और कालराई आदि प्रमुख राजा हुए. ग्वल्ल ज्यू के पि... Read more
क़स्बों के आखिरी सिरे
इस देश के अमूमन हर क़स्बे के बाहरी हिस्से में एक मुख़्तलिफ़ और यकसां क़िस्म की तासीर सी तारी होती है. वो क़स्बा चाहे आंध्र प्रदेश के कत्थई से आसमान तले फैले तटीय इलाक़े में बसा हुआ हो, या पं... Read more
ठेठ कुमाऊंनी रामलीला का इतिहास
चंदवंशी राजा बालो कल्याण चंद ने जिस अल्मोड़ा शहर को 1563 में बसाया, उसी अल्मोड़ा शहर के स्व. देवी दत्त जोशी (काली कुमाऊं के तहसीलदार) की प्रेरणा से 1860 में पहली कुमाऊंनी रामलीला बद्रेश्वर में... Read more
नहीं रहे विष्णु खरे
[हिन्दी के वरिष्ठ कवि और प्रतिष्ठित सम्पादक-अनुवादक विष्णु खरे का आज निधन हो गया. अनेक भाषाओं के ज्ञाता और संगीत-सिनेमा के विशेषज्ञ विष्णु जी अपनी तरह के इकलौते साहित्यकार थे जिनकी सोच और र... Read more
मेहनती बहू और रात के अएड़ी की कथा
भरपूर चढ़क रूढ़ (गर्मी) पड़ रही थी. माटु, ढुंगी, पेड़, पत्ती, अल्मोड़ी, घिलमोड़ी, पौन-पंछी, कीट-पतंगारे, सांप-बाघ सब रूढ़ से बेहाल. सरग में दूर-दूर तक बादल का एक छींटा तक नहीं दिख रहा था. बिचारे पे... Read more
कुमाऊं कमिश्नर ट्रेल के तीन अच्छे काम
ट्रेल कुमाऊँ के दूसरे कमिश्नर रहे. उन्हीं के नाम पर पिथौरागढ़ और बागेश्वर के बीच के दर्रे को ट्रेल पास नाम दिया गया था. वैसे ट्रेल जनता के बीच एक बदनाम नाम था लेकिन उससे पहले के गोरखाओं के कठ... Read more
दीपा धनराज की भारत सरकार के परिवार नियोजन कार्यक्रम की कड़ी आलोचना करने वाली दस्तावेजी फिल्म समथिंग लाइक अ वार की शुरुआत में ही जब स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ जे एल मेहता लेप्रोस्कोपिक नसबंदी के ब... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने – 14
भैरव मंदिर से आगे कि ओर जहाँ गुरुद्वारा है, उसके पीछे की गली जो कसेरा लाइन से दूसरी ओर मिलती है, पीपलटोला नाम से जानी जाती थी. यहाँ तवायफें रहा करती थीं और मुजरे के शौक़ीन लोग यहाँ जाया करते... Read more