घुघुति-बासूती
पिछली कड़ी – सासु बनाए ब्वारी खाए घुघूती-बासूती…क्या खांदी?दुधु-भाती!मैं भी दे…जुठू छकैकू?मेरू!तेरी ब्वै कख?ग्वोठ जायीं.क्या कर्न?दूधु द्धेवणा!ग्वोठ को छ?गाय-बाछी.बाछी कन कदी?म्हाँ कदी!... Read more
तीन मोड़ : पहाड़ से एक कहानी
बैंगनी, भूरे और नीलम पहाड़ियों के बीच रूपा नदी ने एक सुरम्य घाटी बना दी थी. हरे-भरेधान के खेतों के मध्य एक छोटा सा सुंदर गांव, नाम था देवी सैंण. आधुनिकता तथा कृत्रिम वातावरण से दूर लगता. कलय... Read more
कहानी : पेन पाल
-जी. श्रीनिवास राव इसकी शुरुआत उस एक सुबह से हुई, जब मैं 21 वर्ष का कॉलेज विद्यार्थी था और अचानक एक लोकप्रिय पत्रिका के पेज पर मेरी नजर पड़ी, जिसमें पूरे संसार के युवा लोगों के डाक के पतों क... Read more
दो गज जमीन
दो बहने थी. बड़ी का कस्बे में एक सौदागर से विवाह हुआ था. छोटी देहात में किसान के घर ब्याह थी. बड़ी का अपनी छोटी बहन के यहां आना हुआ. काम निबटकार दोनों जनी बैठीं तो बातों का सूत चल पड़ा. बड़ी... Read more
एक महान सपने को साकार होते देखने की चित्र गाथा है ‘परेड ग्राउण्ड टू लैंसडाउन चौक‘
सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में हिमालयी अध्ययन पर संकेन्द्रित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र का प्रार्दुभाव 16 मार्च, 2006 को एक स्वायत्तशासी संस्था के रुप में देहरादून हुआ. इसके लिए माध्यमिक... Read more
जनवरी का महीना था ज़मीन से उठता कुहासा मेरे घर के आसपास विस्तीर्ण फैले हुए गन्ने के खेतों पर एक वितान सा बुनकर मेरे भीतर न जाने कहीं सहमे हुए बच्चे की तरह बुझा-बुझा सा बैठ जाया करता था. (Spr... Read more
जोशीमठ के पहाड़
इतने सीधे खड़े रहते हैंकि अब गिरे कि तबगिरते नहीं बर्फ़ गिरती है उन परअंधेरे मे ये बर्फ़ नहीं दिखतीपहाड़ अपने से ऊँचे लगते हैंडराते हैं अपने पास बुलाते हैं दिन में ऐसे दिखते हैंकोई सफ़ेद दाढ... Read more
दहलीज: निर्मल वर्मा की कहानी
पिछली रात रूनी को लगा कि इतने बरसों बाद कोई पुराना सपना धीमे क़दमों से उसके पास चला आया है, वही बंगला था, अलग कोने में पत्तों से घिरा हुआ… वह धीरे-धीरे फाटक के भीतर घुसी है… मौन... Read more
सौत: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
जब रजिया के दो-तीन बच्चे होकर मर गए और उम्र ढल चली, तो रामू का प्रेम उससे कुछ कम होने लगा और दूसरे ब्याह की धुन सवार हुई. आए दिन रजिया से बकझक होने लगी. रामू एक-न-एक बहाना खोजकर रजिया पर बिग... Read more
एक अधूरी प्रेमकथा : इला प्रसाद की कहानी
मन घूमता है बार-बार उन्हीं खंडहर हो गए मकानों में, रोता-तड़पता, शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, पैबंद लगाने की कोशिशें करता… मैं टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ती हूँ लेकिन कोई ताजमहल नही... Read more