बिनसर में इटली का संत
लम्बे धवल केश और वैसी ही लम्बी धवल दाढ़ी वाले उस खूबसूरत अंगरेज़ को देखकर किसी को भी धोखा हो सकता था कि वह धर्म-प्रचारक या बाबा टाइप की कोई चीज़ होगा. बिनसर-कसारदेवी-अल्मोड़ा के इलाके में चार-पा... Read more
अल्मोड़ा से 6 किलोमीटर दूर एक छोटी सी जगह है कसारदेवी. पिछले पचास से भी अधिक सालों से कसारदेवी दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. कसारदेवी यात्रा का मन बना रहे हों और... Read more
सोलहवीं सदी में बागेश्वर गए थे गुरु नानकदेव जी
उत्तराखण्ड में सिख सम्प्रदाय का प्रसार -1 सिख मत के साथ उत्तराखंड का संपर्क इसके प्रवर्तक गुरु नानकदेव जी के समय में ही हो चुका था. ज्ञानी ज्ञानसिंह द्वारा लिखे गए ग्रन्थ ‘गुरु खालसा’ में वर... Read more
आजादी का आन्दोलन और इबलीस की खंभा प्रेस
अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का प्रयास कितना भी किया जाए, लोग रास्ता निकाल ही लेंगे. ऐसा अंग्रेजों के जमाने में बरेली शहर में हुआ.ये वाकया है 1920 के बाद का, जब असयोग आंदोलन चला और ठंडा हो... Read more
खाल का अर्थ अलग-अलग है कुमाऊं और गढ़वाल में
गढ़वाली बोली बोले जाने वाले इलाकों में ‘खाल’ शब्द का सम्बन्ध पहाड़ की चोटी के नज़दीक स्थित उस गहरे और समतल भूभाग से होता है जहां से पहाड़ के दोनों तरफ के भूभाग देखे जा सकते हैं. कुमा... Read more
टीचर्स डे विशेष : लपूझन्ने की साइंस क्लास
अंग्रेज़ी की कक्षाएं बन्द हो गई थीं और उस पीरियड में सीनियर बच्चों को पढ़ाने वाले एक बहुत बूढ़े मास्साब अरेन्जमेन्ट के बतौर तशरीफ़ लाया करने लगे. वे बहु्त शरीफ़ और मीठे थे. वे एक प्रागैतिहासिक चश... Read more
तीलू रौतेली की दास्तान: जन्मदिन विशेष
मध्यकाल में गढ़वाल के पूर्वी सीमान्त के गांवों पर कुमाऊं की पश्चिमी उपत्यकाओं पर बसे कैंतुरा (कत्यूरा) लोग निरंतर छापा मार कर लूटपाट करते रहते थे. अनुमान किया जाता है कि उस काल में गढ़राज्य... Read more
[पिछली क़िस्त: हल्द्वानी के कुछ पुराने परिवार] नरोत्तम शारदा पहाड़ से आने वाली बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के कारोबारी हुआ करते थे. शारदा मूलतः अमरोहा के रहने वाले थे. उन्होंने 1934 में अपना कारोबार... Read more
कुमाऊं का बारदोली था सल्ट का खुमाड़
कुलीबेगार से पहले कुमाऊं में सामाजिक हलचल: वर्ष 1942 में खुमाड़ सल्ट तथा सालम में जिस विद्रोह का प्रस्फुटन हुआ, उसकी पृष्ठभूमि को समझने के लिए कुमाऊं में ब्रिटिश राज के इतिहास को समझना भी आवश... Read more
यह आलेख हमें हमारे पाठक कमलेश जोशी ने भेजा है. कमलेश का एक लेख – सिकुड़ते गॉंव, दरकते घर, ख़बर नहीं, कोई खोज नहीं – हम पहले भी छाप चुके हैं. यदि आप के पास भी ऐसा कुछ बताने को हो... Read more