ठांगर घेंटने का सगुर होना चाहिए
कौन बनेगा हमारा ठांगर? जिसमें हम लगूले, हरे-भरे से, ऊपर चढ़कर अपनी सफलता पर इतरायेंगे. फल देंगे और फिर एक दिन उसी संपन्नता को भोग कर झड़ जाएंगे. लेकिन हमको हमारे झड़ कर सूखने के बाद भी अपने... Read more
दारमा घाटी के परम्परागत घर और बर्तन
दारमा इलाके में फाफ़र और उगल को भकार के साथ कुंग में भी जमा किया जाता. दारमा के दुमंजिले मकानों में नीचे की मंजिल से दुमंजिले की ओर चढ़ने वाली आखिरी पत्थर की सीढ़ी से नीचे फर्श तक... Read more
साठ के दशक में हल्द्वानी का समाज
सन् 1970 तक शादी-ब्याह की रस्में भी यहां ठेठ ग्रामीण परिवेश में ही हुआ करती थीं. न्योतिये प्रातः पहुँच जाते और साग सब्जी काटना, हल्दी-मसाले घोटना, टेंट कनात लगाने में सहयोग करना, आदि में जुट... Read more
2020 के पहले खूबसूरत हिमपात के बाद अल्मोड़ा के सिमतोला, कसार देवी और बिनसर का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है. चाहे वो सिमतोला के बर्फ से ढके देवदार हो या कसार देवी का मंदिर या फिर बिनसर... Read more
भय बिनु होय न प्रीति का पहाड़ी कनेक्शन – चेटक लगना
बचपन से कई ऐसे संवाद धार्मिक प्रसंगों में सुनते आये हैं जिनका आशय तो हम नहीं समझ पाते लेकिन अतार्किक बनकर सहज रूप में उन्हें स्वीकार कर लेते हैं. भगवान राम जन-जन के आराध्य रहे हैं और उनके प्... Read more
हमारी नियमित लेखिका गीता गैरोला ने आपको अनेक मनभावन कहानियां सुनाई हैं. हाल ही में हमने उनकी मशहूर किताब ‘मल्यो की डार’ के एक अध्याय को हरिद्वार में रहने वाली स्मिता कर्नाटक की आवाज़ में सुन... Read more
सन् 1970 से पहले यहाँ बहुत से घरों में बिजली भी नहीं थी. 1956 में नैनीताल रोड पर डीजल पावर हाउस नामक भवन में डीजल से बिजली बनाने का संयंत्र लगाया गया था. सेंटपाल्स स्कूल के ठीक सामने खण्डहर... Read more
कोई भी संस्कृति अपनी भाषा बोली को संरक्षित किये बगैर लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकती. यह बात छोटी आबादी वाली जनजातियों के सन्दर्भ में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. अपनी भाषा बोली के प्रत... Read more
बार बार तारीख को बदला है छात्रों ने
फरवरी का पहला दिन था. साल उन्नीस सौ साठ. सत्रह से उन्नीस बरस के चार लड़के अमरीका के उत्तरी कैरोलिना के ग्रीन्सबोरो शहर के एक रेस्टोरेंट ‘वूल्सवर्थ लंच काउन्टर’ में आए और खाना माँ... Read more
जरा ठन्डू चलदी, जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै उत्तराखण्ड के लोगों के लिए चन्द्र सिंह राही का अर्थ है एक ऐसी आवाज जिसमें पहाड़ तैरते थे. उनके गले से लहरें उठती थी और उत्तराखण्ड... Read more