विक्रम : देहरादून में आम आदमी की लाइफ लाइन
फेसबुक से जुड़ा एक युवा मित्र बीते दिसम्बर में मैसेज कर देहरादून में अपने परीक्षा केंद्र की लोकेशन और पहुँचने का तरीका व ठहरने की जगह के बारे में पूछता है और मैं लापरवाही से उत्तर देता हूँ क... Read more
वर्तमान में हल्द्वानी नगर में बड़े अस्पतालों की संख्या गिनती से बाहर हो गई है. एक से एक काबिल डॉक्टर यहां अपने विशाल हाईटेक क्लीनिक खोल कर बैठ गए हैं. लोग कहते हैं कि जिन बीमारियों के इलाज क... Read more
4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 40 (Column by Gayatree arya 40) पिछली किस्त का लिंक: युद्ध की तैयारी में अपना जीवन खपा देने वाले तमाम सैनिक भी अंततः युद्ध नहीं चाहते 25 दिसम्बर 2009 को तुम... Read more
उत्तरायण होते ही बच्चे मांझा सूतना शुरू कर देते
सदियों से इंसान के मन में मुक्त नीले आकाश में उड़ने की चाह बनी रही. पतंगबाजी ने उसकी इस उदात्त इच्छा को पूरा किया. (Patangbaji Column By Lalit Mohan Rayal) किसी दौर में पेंच लड़ाना नवाबी शौक... Read more
उत्तराखण्ड के बागेश्वर में लगने वाला उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक महत्व रखता है. (Uttarayani Mela Bageshwar 2020) पुराने समय में यह मूलतः व्यापार आधारित था. दूर दराज से लोग खरीदारी करने यहाँ आते... Read more
ताऊ जी का व्यक्तित्व इलाके में किंवदंती था
कुछ लोग बड़े करिश्माई व्यक्तित्व के होते हैं. जटिल से जटिल परिस्थिति में भी सटीक समाधान देते हैं. समाज से उनका सीधा संपर्क बना रहता है, जिसके चलते वे छोटी-छोटी बातों में भी दूर की कौड़ी ढ़ूँ... Read more
काले कव्वा : एक दिन की बादशाहत
मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले ‘घुघते’ आदि पकवान बनाकर दूसरी सुबह बच्चों के द्वारा कव्वों को खिलाये जाते हैं. उसके पीछे अनेक लोक विश्वास हैं. जिन्हें अपने मूल रूप से विकृत करके भुला दिया ग... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 64 (पिछली क़िस्त: सुंदर लाल बहुगुणा से जब मिला मुझे तीन पन्ने का ऑटोग्राफ ) कोई अगर मुझसे यह पूछे कि क्या कभी मेरा ऐसा मन किया कि जमीन फटे और मैं उसमें समा जाऊं, तो मैं... Read more
पहाड़ से आये लोग हल्द्वानी में सम्पन्न घरों के बजाय आम घरों में मेहमान बनना पसंद करते थे
सन 80 से पहले पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी क्षेत्रों से जोड़ने वाली यातातया व्यवस्था वर्तमान के मुकाबले बहुत ही कम थी. तब आज की तरह सरपट रात-दिन भागने वाले छोटे वाहनों की भी कमी थी. Forgotten... Read more
काले कौआ : ले कौवा पुलेणी, मी कें दे भल-भल धुलेणी
पूस की कुड़कुड़ा देने वाली ठंड, कितना ही ओढ़ बिछा लो, पंखी, लोई लिपटा लो कुड़कुड़ाट बनी रहती. नाक से भी पानी चूता रहता. नानतिनों की क्या कहें, ठुले जवान बुड़-बाड़ि स्वीटर, फ... Read more