जिड्डू कृष्णामूर्ति एक बार एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तब किसी ने यह सवाल पूछा- कृपया इसका बिना घुमा-फिराए सीधा जवाब दें, क्या ईश्वर है? हां या नहीं. अगर है, तो उसे कैसे पाया जाए? Man has created god
कृष्णामूर्ति इस सवाल को सुनकर पहले तो जी खोलकर हंसे, ऐसे जैसे कि वह सामान्यत: नहीं हंसते थे. और तब उन्होंने इस सवाल का ऐसा जवाब दिया कि उसे सुनकर ईश्वर की पूरी अवधारणा ही समझ आ जाती है कि उसे किसने और क्यों बनाया? उन्होंने जवाब दिया – इतिहास में प्राचीन ग्रीक और प्राचीन सुमेरियन सभ्यताओं के समय से ही आदमी ने ईश्वर को लेकर अपनी अवधारणा बनाई हुई है. मुझे ठीक से पता नहीं है कि उपनिषदों में ईश्वर का जिक्र किया गया है या नहीं. हो सकता है कि ईश्वर उसके बाद की अवधारणा हो. तो ईश्वर क्या है? Man has created god
यहां हम ईश्वर की खोज कर रहे हैं, मैं उस पर हमला नहीं कर रहा. हम यह खोज कर रहे हैं कि ईश्वर नाम की चीज वास्तव में है या नहीं. ईश्वर को किसने बनाया? क्या ईश्वर ने हमें बनाया? क्या ईश्वर ने हमें ईजाद किया? ईश्वर जो कि हर जगह मौजूद है, जो सबकुछ जानता है, बहुत दयालु है, न्यायप्रिय है यानी उसमें सारी अच्छी चीजें हैं, ईश्वर के बारे में ये आपकी संकल्पना है. अगर आप कहते हैं कि उसने हमें बनाया है, तो हम उसकी छवि का ही हिस्सा हैं, हम उसका ही हिस्सा हैं यानी कि हम भी उसकी तरह सब जानते हैं, हमारे भीतर भी बहुत प्रेम है, हम उसकी तरह बहुत उदार हैं. नहीं? और चूंकि ईश्वर को नष्ट नहीं किया जा सकता, हम भी कभी नष्ट नहीं होने वाले. पर क्या हम ऐसे हैं या हम सिर्फ सोचते हैं? मेरा सवाल समझे क्या? अगर ईश्वर ने तुम्हें ईजाद किया, तो वह बहुत ही असाधारण सत्ता होगी, क्योंकि उसने तुम्हें इतना भयानक जीवन जीने को दिया. अगर ईश्वर ने तुम्हें बनाया, तो तुम ऐसे क्यों हो? तुम्हें असाधारण मनुष्य होना चाहिए था, नहीं होना चाहिए था क्या? सुंदर, सुखी, आनंद से भरा हुआ, उत्साह से भरा हुआ, लेकिन तुम ऐसे नहीं. Man has created god
सवाल यह है कि या तो तुमने ईश्वर को बनाया है या ईश्वर ने तुम्हें बनाया है. अगर इसका थोड़ा करीब से परीक्षण करोगे, तो तुम जानोगे कि तुमने ही ईश्वर को बनाया है. भारत में मुझे बताया गया है कि 3 लाख से ज्यादा देवता हैं. हर लोकल आदमी का अपना अलग देवता है. साफ है कि हमने ही ईश्वर को बनाया है. अब देखिए कि कितनी उलटी बात है कि विचार ने ईश्वर को बनाया और अब विचार उसी छवि की पूजा करता है, जिसे कि उसी ने बनाया. यह खुद की ही पूजा करना हुआ और खुद को ही ईश्वर कहना. यह समझ में आ रहा है ना?
आपका जो बेहतर हिस्सा है, आपकी जो अपनी शक्तियां हैं, आपमें जो अच्छे गुण है़ं, वही तो ईश्वर है. हमने अपने ही अच्छे रूप की कल्पना कर उनसे अपना ईश्वर गढ़ लिया. ईश्वर को हमने बनाया, इसे समझना आसान है. इसीलिए रोम के देवता अलग हैं, तिरुपति के अलग. हर लोकल जगह के अलग-अलग देवता. हमने अपने डर से अपने ईश्वर बनाए. अब तुम इस बात को स्वीकार नहीं करोगे कि ईश्वर ने हमें नहीं बनाया, बल्कि हमने ईश्वर को बनाया, क्योंकि तुम्हें डर है. तुम्हें सुरक्षा चाहिए, तुम्हें चाहिए कि तुम्हें बचाने वाला और तुम्हारा खयाल रखने वाला कोई हो. इसीलिए तुम उसे बनाते हो और उसकी पूजा करते हो. जरा देखो तो सही, तुम क्या कर रहे हो.
अपना सारा पैसा बैग में डालकर तिरुपति जाते हो. क्या ईश्वर को तुम्हारा पैसा चाहिए? तुम्हारे पास उसे देने को कुछ नहीं बस पैसा है, फूलों की माला, दंडवत प्रणाम और अनुष्ठान हैं. तुम्हारे पास उसे देने को और कुछ नहीं है? क्या तुमने इस त्रासदी को महसूस किया है? अगर तुमने प्यार किया है, ईश्वर को नहीं, क्योंकि उसे प्यार करना बड़ी बात नहीं, सामान्य पर सच्चा प्यार, तो वह प्यार पवित्र है, वही ईश्वर है. वह आपके पास है, तो आप बाहर ईश्वर को खोजने नहीं जाओगे. Man has created god
अगर हम वाकई इसे समझना चाहते हैं, तो कृष्णामूर्ति के जवाब को सुनने के बाद ईश्वर की अवधारणा को लेकर हमें यह बात समझ आ जानी चाहिए कि दुनिया के सारे ईश्वर हमारे ही बनाए हुए हैं. हमने अपने ही रूपों की कल्पना की, जिनमें हमारे सारे गुण हों और उन्हें ईश्वर बना दिया. यानी असल में ईश्वर हमारे ही भीतर है. हमारे व्यक्तित्व के सकारात्मक पहलू मिलकर ही ईश्वर का रूप ले लेते हैं. प्रेम, दया, उदारता, बल, तप, ध्यान – इन्हीं सब से बना है ईश्वर.
– सुंदर चंद ठाकुर
कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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