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6 Comments

  1. avi

    मुंह खोलने पर चरित्र प्रमाणपत्र थमाने वाले बंबई पूना दिल्ली नोयडा में भी नही चूकेंगे और बच्चे पैदा करने की मशीन अब पहाड़ी स्त्री रही नही और नही रहा पहनावे या खानपान पर रोकटोक का दौर। सुंदरचंद ठाकुर जी के कुछ दिन पहले छपे लेख “आओ अमीर बनें” में जवाब मिलता दिखता है कि हम जिसे संपन्नता मान बैठे हैं वह भ्राामक है। असली संपन्ननता भीड़ भाड़, प्रदूषण और जहरीले मिलावटी खाद्य पदार्थों से दूर पहाड़ों पर ही है। हर पहाड़ी जिले में पलायन आयोग दफ्तर खोलकर भी बैठ जाय फिर भी बिना मानसिकता बदले पलायन पर रोक नही लगेगा। रही विकास कार्यों की बात वह तभी होंगे जब वोटर अधिक होंगे।

  2. Suraj singh

    उत्तराखण्ड मे सभी जगह ऐसे ही है इस चीज का मैं भी विरोध करता हूँ
    लेकिन मैं आपसे ये पूछना चाहता हूं क्या आपके यहा इससे विपरित है! ये बात भी ध्यान देने वाली है. कि ये सब करवाने वाली भी एक औरत ही होती है तो हम दोष किसे दे आजकल तो युवा पीढ़ी ना तो ये छुवा-छूत मानती है और ना जात-पात
    और रही कपड़े पसंदीदा कपड़े पहनने या नहीं पहनने उसे यहा के लोग संस्कृति(संस्कार) कहते है वो सब बताने वाली भी एक औरत ही होती है बहु कुछ भी कर ले उसे डांटने वाली कौन होती है सास जी भी एक औरत है

    मेरे ये बात अगर किसी को कहीं से बुरी लगी तो माफी
    मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि जिससे एक औरत की मान का अपमान हो क्योंकि मेरी माँ भी एक औरत ही है

  3. अभय पंत

    बस यही तो कारण हैं, और इसीलिए औरतों का ठेठ गांवों से पलायन न्यायोचित भी है।

  4. Dan Singh Bisht

    आपका कथन थोड़ा बहुत ठीक है लेकिन पुरी तरह से नहीं मेंने देखा है जिनके गांव में ठाट बाट थे जिन्हें कोई कुछ भी कहने वाला नहीं था वो भी आज गांव छोड़ कर चले गये आज के समय में गांव की लड़कियों के इतने भाव बढ़ गये है की वह गांव में रहने वाले लड़कों से सादी करने को तैयार नहीं चाहे लड़के पूरी तरह से कमाने में सक्षम ही क्यों न हो । कोई दुकानदार है कोई खुद की गाड़ी चलाता है कोई बकरी पालन करता है लेकिन लड़कियों के दिमाग में एक ही बात बेठी है लड़का बाहर रहता हों चाहे वो रामनगर हल्द्वानी देहरादून दिल्ली में फेक्ट्रियों में दस बारह हज़ार रूपए कमा कर किराये पर रहता हों लेकिन लड़कियों को शादी करनी है तो बाहर रहने वाले लड़कों से इसलिए आपका लिखा कथन सिर्फ आपकी ही सोच है जों आप तक ही सिमित है ।।।

  5. एक पहाड़ी

    अबे! केवल एक पक्ष की बात करना आसान होता है, और पिछड़ी मानसिकता वाले कौन हैं ? अच्छी मानसिकता वाले महोदय केवल कुछ कारण गिनाकर, अपने स्वयं की मानसिकता सिद्ध की है, हां और बच्चे पैदा करने वाली बात से क्या सिद्ध करना चाहते हैं कि शहरों में बच्चे पैदा करने को तवज्जो नहीं दी जाती। ये लेख कितना पुराना है कह नहीं सकते, लेकिन लगता है केवल वाहवाही बटोरने को लिखा गया है।

  6. Deep Chand Pandey

    पहाडों में घूँघट की प्रथा मैंने कहीं भी नहीं देखी है. आपने घूँघट किये हुए किसी पहाड़ी स्त्री की कोई तस्वीर कभी देखी हो तो साझा करें.

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