हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन राज कपूर सिनेमा में नए प्रयोगों के लिए जाने जाते थे. कहते हैं कि आर्ची कार्टून के एक संवाद से उन्होंने फिल्मों के लिए एक नया विषय चुना. कार्टून मैगजीन के उस संवाद में आर्ची के पिता उससे कहते हैं, “आर्ची दिस इज नॉट योर एज टू फॉल इन लव.”
Tribute to Rishi Kapoor
यहीं से शोमैन को बॉबी का विचार कौंधा. इससे पहले हिंदी सिनेमा में परिपक्व-मर्द अभिनेताओं का बोलबाला था. धर्मेंद्र, जीतेंद्र, राजेश खन्ना, राजेंद्र कुमार जैसे ठीक-ठाक उम्र के नायक होते थे. शोमैन पहली बार किशोरों की प्रेम कहानी को सेल्यूलाइड पर लाए. फिल्म हिट साबित हुई. शैलेंद्र का स्वर ऐसे लगा जैसे उनके कंठ से खासतौर पर ऋषि कपूर के लिए सुर निकला हो. शैलेंद्र तब नए-नए थे. लता जी इंडस्ट्री की स्थापित गायिका थीं और जितनी शैलेंद्र की उम्र थी, उससे ज्यादा उनका गायन-अनुभव. एक इंटरव्यू में शैलेंद्र कहते हैं कि मैं उनकी शख्सियत के सामने खुद को दबा सा महसूस कर रहा था. रिकॉर्डिंग के लिए जेहनी तौर पर खूब तैयार होकर गया कि आज फेल नहीं होना है. दुगने जोश से गाया. सारे गाने सुपरहिट साबित हुए. देहातों से कस्बों के लिए स्पेशल बॉबी बसें चलीं. पोल्का डॉट ड्रेस और बड़े गौगल्स को युवाओं ने हाथोंहाथ लिया. बारह बरस बाद ऋषि-डिंपल की जोड़ी को ‘सागर’ में फिर से दोहराया गया. हालांकि इस बार दर्शकों की भावनाएँ कमल हसन के पक्ष में ज्यादा गई.
इससे पहले ऋषि कपूर ‘मेरा नाम जोकर’ में बाल कलाकार के रूप में काम कर चुके थे. राज कपूर के बचपन वाला किरदार, जो अपनी टीचर (सिम्मी ग्रेवाल) से गहरी संवेदनाएं रखता है, ऋषि कपूर ने निभाया था. फिल्म में उनका किरदार विशुद्ध रूप से फ्राइड के विचार प्रेरित था.
उस दौर में स्थापित अभिनेताओं के साथ काम करना बड़ी चुनौती थी. ऐसी मल्टीस्टारर फिल्मों यथा- ‘अमर अकबर एंथोनी’ ‘नसीब’ या ‘कुली’ में जूनियर पार्टनर की भूमिका में उन्होंने खुद को साबित किया.
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ऋषि कपूर मूल रूप से रोमांटिक लीड वाले अभिनेता रहे. वे ‘तुमने किसी से प्यार किया’ जैसी पाश्चात्य धुनों पर थिरक सकते थे, तो ‘चांदनी’ के प्रेमी के तौर पर पुष्प वर्षा भी कर सकते थे. ‘प्रेम रोग’ का देव रहा हो या ‘सरगम’ का संगीत आराधक शिष्य. रफू चक्कर, खेल-खेल में, वे एक चुलबुले प्रेमी के तौर पर नजर आए. ‘होगा तुमसे प्यारा कौन…’ गाकर फिर से शैलेंद्र ने उनकी बुलंदी को आसमान पर पहुँचाया. ‘लैला मजनू’ में एक शास्त्रीय प्रेमी बने, तो ‘फूल खिले हैं, गुलशन-2’ से लेकर ‘दीवाना’ तक उन्होंने रोमांटिक हीरो के तौर पर एक लंबी पारी खेली. ‘नगीना’ से मोहम्मद अजीज उनके गीतों की आवाज बनकर सामने आए.
‘जहरीला इंसान’ में ‘ओ हंसिनी…’ गीत उन्हीं पर फिल्माया गया. उनकी देखा-देखी में लंबा मफलर, डॉग कॉलर फैशन युवाओं ने खूब फॉलो किया. इस रोमांटिक छवि का उन पर इतना रंग चढ़ा कि ‘हिना’, ‘बोल राधा बोल’, ‘दामिनी’ तक उम्रदराज होते हुए भी वे नायक की भूमिका करते रहे.
एक ओर जहाँ उन्होंने ‘एक चादर मैली सी’ जैसी क्लासिक फिल्म में किरदार निभाया तो दूसरी ओर उन्होंने ‘श्रीमान आशिक’ और ‘अग्निपथ’ जैसी रीमेक फिल्मों में भी काम किया. ‘अजूबा’ जैसी फंतासी फिल्म, जो उनकी होम प्रोडक्शन थी, में काम किया. बाद के वर्षों में नमस्ते लंदन, पटियाला हाउस, कपूर एंड संस, डीडे, मुल्क, 102 नॉट आउट जैसी फिल्मों में चरित्र अभिनेता के तौर पर वे निरंतर सक्रिय बने रहे.
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उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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