पहाड़ों में भूत मसाण का खूब डर हुआ फिर परी, आचंरी, डेणी लगे ही रहने वाले हुये. बड़ों के लिये इस सब पर विश्वास, अंधविश्वास, परम्परा, मान्यता जैसी बहसों की अनेक गहरी लम्बी राहें खुली हुई हैं पर बच्चों के बदन में झुरझुरी तो हो ही जाने वाली हुई. फिर चाहे कितना ही अकख्म क्यों हो जाये गाड़ गधेरे पार करने में जरा सी सुर-सुर भी रुह कंपा देने वाली हुई. ऐसे ही बर्फबारी के समय कहते हैं ह्यूं परी अपने चंगुल में बच्चों को ले लेती है.
(Tradition Uttarakhand Winter Season)
बर्फबारी के मौसम में पहाड़ों के भूत मसाणों में शामिल हो जाती हैं परियों या आंचरियों के टोले. जाड़ों की रात में अनेक बड़े-बूढ़े परियों के टोले देखेने का दावा करते हैं. कहते हैं कि जाड़ों के मौसम में जब आसमान साफ़ हो जाता है तो आंचरियां अपने टोले के साथ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों में एक जगह से दूसरी जगह घुमती हैं. पीली रोशनी लेकर घुमने वाली आंचरियों को लेकर पहाड़ों में खूब कहानियां कही जाती हैं.
कहते हैं जब जब कोई बिन-ब्याही लड़की असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाती है तो आंचरियों के टोलों में शामिल हो जाती है. पहाड़ों में आज भी इसे लेकर खूब पूजा होती है. बर्फीले पहाड़ों में लाल चटक फटक कपड़े पहन कर न जाने के पीछे पर बुजुर्ग कहते हैं कि आंचरियां चटक कपड़े पहने लड़कियों पर ही अपना प्रभाव डालती हैं.
(Tradition Uttarakhand Winter Season)
विज्ञान न परी को मानता है न मसाण फिर सुंदर सौम्य दिखने वाली परी तो उसके सामने कहाँ ठहरती. आंचरियों के टोले की पीली रौशनी के संबंध में विज्ञान कहता है कि जब जानवरों की हड्डियों से बना फास्फोरस तेज हवा से टकराता है तो तेज पीली रौशनी बनती है जिसे लोग भ्रमवश भूत-पिशाच समझ लेते हैं.
अब बच्चे कहाँ विज्ञान जानते हैं उनकी प्राथमिक पाठशाला तो उनका घर और आस-पास का समाज हुआ. जो देखा सुना वही सीखा. इसलिए बच्चों के बीच परियों के खूब किस्से चलते हैं कोई कभी दूध परी का किस्सा तो कभी लाल परी का किस्सा ऐसे ही सर्दियों में चलता है परियों या आंचरियों के टोलों का किस्सा जो लड़कियों और सैणियों का दिमाग मुन देती हैं.
(Tradition Uttarakhand Winter Season)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
View Comments
क्या इन आँचरियो, मसान और डेनी का असितत्त्व अभी भी है पहाड़ो में ? अगर नही है तो यह लेख किसकी टांग खींच रहा है ।
Sundar sankalan hai