हम सब उम्र के उस दौर में थे जिसे वय:संधि कहते हैं और जिसके वर्णन के बहाने पुराने कवियों ने शृंगार रस का जम कर मसाला छाना है. मन पर सरसों के पीले खेत में तिरछा हो कर भुजा पसारे सारूक खान अभिनीत रोमांस का अधिकार था और शरीर नए रहस्यों के अनुसंधान की हार्मोनल साज़िश का शिकार था. मन की ऐसी ही विचित्र दशा में हमने भैया जी को अपने बीच पाया. वैसे भैया जी हमसे कई वर्ष बड़े थे लेकिन बक़ौल उनके ख़ुद उन्होंने अपने पिताजी को कई पूर्व जन्मों के दुष्कर्मों के कारण पाया था. कहते हैं उनके पिता ने ठान रखा था कि किसी भी प्रकार विद्या की देवी सरस्वती से उनकी मुलाक़ात ना होने दी जाए. इसके लिए गाली, व्यंग्य, जूता जैसे तमाम उपकरणो के इस्तेमाल करने के साथ उन्होंने भैया जी को खेत में सदैव बैल के दहिनवार जोते रखा. Teenage Nostalgia Brajbhushan Pandey
लेकिन नियति का खेल निराला होता है. एक बार अपने चचेरे मामा की संगत में भैया जी घर से भाग निकले. वैसे मामा तब बटेसर कमेसर राजगिरी किस्म के होते थे लेकिन ये मामा कंचहा के नाम से विख्यात था क्योंकि उसकी एक आँख गिल्ली के महान खेल में दुर्घटनाग्रस्त हो कर ज़रा ऊपर की ओर चढ़ गयी थी. उसी ने भैया जी को पतरके चिलम से नगिनीया गाँजा एक बार में खींच कर लंबी लौ निकालने में सिद्धहस्त बना दिया था. और इस प्रकार भैया जी संगति से प्राप्त गुणों का सतत विकास करते हुए लगभग आधा ट्रक देसी दारू का पाऊच, एक टाटा चार सौ सात महुए की शीशी और ट्रैक्टर की आधा ट्राली बराबर सुतलियां मय गाँजा अपने उदर और फेफड़ों में निपटा चुके थे. Teenage Nostalgia Brajbhushan Pandey
औपचारिक शिक्षा जब हाथ न लगी तो भैया जी अपने उक्त मामा के साथ दुनिया ए फ़ानी को घुमक्कड़ी शास्त्र से जानने का हठ लिए घर से भाग निकले. किन्तु उनको मुगलसराय से ही वापस लौटना पड़ा. कारण लुधियाना की ट्रेन में तीन घंटे का विलम्ब, मामा का नज़दीक ही स्थित दिव्य बूटी संस्थान से जल्दी लौट आने का वादा कर परम दशा को प्राप्त हो जाना इत्यादि इत्यादि हैं. किन्तु इसका परिणाम यह हुआ कि वर्णमाला पहचान और दुनिया की सैर दोनों से गाफ़िल होने के कारण उन्हें बी डी एम डाऊन पैसेंजर पकड़ कर शाम तक वापस घर आना पड़ा और रैन बसेरा मार्का चमरौधे जूते से अच्छी संटिंग के बीच ये तय हुआ कि भैया जी अब पढ़ा भी करेंगे और वो हमारे सहपाठी बन गए. इस प्रकार शिक्षा जगत ने एक उन्नत प्रजाति का बैल पाया और खेतों ने एक विकट श्रेणी का विद्यार्थी खोया.
पाठ्यपुस्तकों के संसार में भैया जी का प्रदर्शन भले सिफ़र रहा हो प्रेम विषयक मामलों में वो हम सबमें सबसे सफल थे. जहां हम लड़की के ग़लती से भी देख भर लेने से कहा करौं कहा ना करौं वाली काव्यात्मक दुविधा में पहुँच जाते वो कई प्रणय अभियानों को अकेले अंजाम दे चुके थे. गाँव की लिप्स्टिक लुब्धा नायिकाओं के मनोविज्ञान को समझने में भैया जी को महारत हासिल हो चुकी थी. डब्लू की दुकान से चोली, पाउडर और नेल पालिश की निर्बाध सप्लाई चलती. इसकी फ़ंडिंग के लिए भैया जी ने चोट्टागिरी की नयी नयी विधाओं का आविष्कार किया जो हथलपकी चोरकटई आदि के नाम से प्रसिद्ध हुईं. Teenage Nostalgia Brajbhushan Pandey
देह जगत के आधिकारिक विद्वान होने की हैसियत से भैया जी के अश्लीलता से भरे सेशन रोज़ शाम नहर के पुल के पास की गुमटी पर आयोजित होते. चारो तरफ़ निरीह जिज्ञासा पसरी रहती और कम उम्र के तक़रीबन बीस लौंडे भौंचक्के मुँह बाए उनके आस पास पाए जाते.
ऐसे एक शाम अपने व्याख्यान के बाद भैया जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा आओ यार पांड़े कुछ ज़रूरी काम है तुमसे. मुझे आश्चर्यमिश्रित हर्ष का अनुभव हुआ कि भैया जी जैसी अलौकिक शक्ति को मुझ तुच्छ जीवात्मा से भला क्या काम पड़ सकता है! खैर ‘पूर्व मन्वन्तर में एक विचित्र चमत्कार हुआ’ की श्रेणी में इस घटना को डाल कर मैं भैया जी के साथ चल पड़ा. भैया जी मुझे खलिहान किनारे बनी अपनी खपरैल की झोपड़ी में ले गए जो वास्तव में खेत के पटान में उपयुक्त होने वाले डीज़ल मोटर और पंप की हिफ़ाज़त के लिए बनायी गयी थी.
नट बोल्ट रिंच प्लास ग्रीज के डब्बे और तेल के गैलन की गंध से अटा एक कामगार वातावरण का कमरा. एक कोने में भैंया जी की खाट डली थी जिस पर फ़िज़िक्स केमिस्ट्री गणित की कुंजियाँ बिखरी पड़ी थीं. तकिए के नीचे सरस सलिल के दो ताज़ा अंक और सिरहाने के बिस्तर के नीचे मधुर कथाएँ पत्रिका के कई महीने पुराने अंक दबे पड़े थे. दीया रखने वाले ताक में असभ्य पाठक शृंखला के हस्तांतरण से पीड़ित चीकट पृष्ठों में ‘सिकुड़ा वर्दी वाला गुंडा’ विराजमान था. भैया जी ने मुझे विशेष कृपापात्र साबित करते हुए जैसे स्थूल शरीर में आत्मा छुपी रहती है एक बिलकुल अदृश्य से ईंट को दीवार से खींचा और उसके नीचे दबा कर रखे उद्दाम साहित्य के चार फटे मुड़े पृष्ठ निकाल कर मुझे पढ़ाए. उनको पढ़ते ही समझ आ जाता था कि भैया जी की सांध्यकालीन कक्षाओं के लिए कच्चा माल यहाँ से जाता था. Teenage Nostalgia Brajbhushan Pandey
भैया जी मुझे खाट के पैंताने बैठने का इशारा करते हुए बोले –
‘यार पाड़े! एक चिट्ठी लिखवानी थी अपनी वाली को.’
मैं ज़रा चकराया क्योंकि भैया जी के अनुसार वे नित्य संयोग रास किया करते थे. इस स्थिति में उन्हें भला पत्र की क्या आवश्यकता हो सकती थी.
भैया जी ने थोड़ा खखारा और अपनी अत्यल्प झेंप को पल भर में गटकते हुए कहा –
“यार उसके मामा की लड़की आयी है.बडी कर्री चीज़ है.”
इन दोनों निहायत असंबद्ध वाक्यों में मैं कोई संबंध स्थापित करने की भीमचेष्टा करता उसके पहले तीन उड़ान में तीतर पकड़ाने की कहावत को सच सिद्ध करते हुए भैया जी ने तीसरी बार में पूरा सत्य चिरका
“देखो गुरु. तुम हो पढ़ने लिखने वाले आदमी. ऐसा चिट्ठी लिखो कि दोनो लड़कियों को अपने अपने लिए प्यार झलके. और हाँ दोनो दो बदन एक जान टाइप हैं तो दोनो ये लेटर एक ही साथ पढ़ेंगी.“
मैं तत्काल धरती पर आ गया. भैया जी की लोलुपता तो ख़ैर कोई संदेह का विषय नहीं थी लेकिन उनकी वर्तमान प्रेमिका और आगामी नायिका दोनो यावद चंद्र दिवाकरौ महान नारियों की श्रेणी में सुशोभित रहेंगी ये भी तय हो चुका था.
मैं बहुत देर बैठा रहा और भैया जी मुझे चूकिया समझ कर बहुत देर तक घूरते रहे. भैया जी की अवज्ञा अधिक देर तक सम्भव नहीं थी इसलिए हार कर मुझे कलम उठानी पड़ी. समझ नही आया क्या लिखूं क्यूँकि मोहब्बत के हमारे जितने प्रेरणा स्रोत थे बॉलीवुड की सुबकती फ़िल्मे, कुमार सानू के अत्यधिक अनुनासिक गीत, हिंदी अंग्रेज़ी में इधर उधर से पढ़ी कुछ कवितायें कही भी प्रेम में इस प्रकार की दुरूह माँग की कल्पना नहीं थी. रीति काल के मतिराम बिहारी की श्रिंगारनिधि से ले कर अनजानपुत्र समीर का रोमांसकोश एक साथ रिक्त हो गये. मैंने हाल में ही बड़े भाई की पुस्तकों से कामायनी निकाल कर उसका काम खंड पढ़ा था. मैंने प्रसाद जी से सहारा पाने की चेष्टा की
“मधुमय वसंत जीवन बन के कब आए थे तुम चुपके से रजनी.”
मैंने देखा भैया जी मेरी तरफ़ कड़ी निगाहो से घूर रहे थे.
“अबे ये क्या बकैती पेल रहे हो. कुछ ऐसा लिखो कि साला राम बिशुन समझ में भी आए. सुपलमेंट्री से भी दोनो मैट्रिक पास नहीं हैं तुम पता नहीं क्या वसंत में रजनी घुसेड़ रहे.”
खड़ी बोली को रसवर्षा में असफ़ल होता देख मैंने रोमांटिक लडीफ़ी को अभिव्यक्त करने में सबसे सशक्त भाषा उर्दू की शरण ली.
“तुम हिज़्र की बेनूर रातों में सुलगता कोई ख़याल.“
इसके पहले की उनकी दूसरी प्रेमिका के लिए मैं इसमें अगली लाइन जोड़ पाता भैया जी हत्थे से उखड़ गये.
“तुम साला मेन काम को ही केवढ़ी नेवरास कर दो. तुम लिखो हिज़्र और वो समझे …” भैया जी ने समझे के बाद के बाद एक लम्बा पॉज़ लिया और मैं तुरंत समझ गया कि उनकी ग्राम्या भोली प्रेमिकाए हिज़्र का क्या अर्थ लगा सकती थीं. Teenage Nostalgia Brajbhushan Pandey
साहित्य ने धोखा दे दिया तो मैंने सिनेजगत से पनाह माँगी.
मुझे याद आया हमारे गाँव का सबसे फ़िलमची लौंडा छून्ना हाल में ही अपने मामा के यहाँ से आशिक़ी फ़िल्म देख कर आया था और उसने कई दिनो तक माथे पर चुआ कर चिपकाई लटों को बायें हाथ से समेटते हुए हमें गा गा कर सुनाया था
“कि नज़र के सामने कि जिगर के पास कोई रहता है वो हो तुम”. हमने सोचा यही लाइन भैया जी को थमा दे. भैया जी ने इस पंक्ति को सीधे रेजेक्ट तो नहीं किया लेकिन वो थोड़े असमंजस में थे. उनको संदेह था कि इसमें तुम शब्द उनकी दोनो प्रेमिकाओं को एक साथ कवर नहीं करता.
मुझे थोड़े दिनो पहले मीडीयम वेव वाराणसी केंद्र से ख़र्र-ख़र्र की पृष्ठभूमि में सुना जैसात्मक उपमाओं से भरा गीत याद आया.
“जैसे चंचल हिरन जैसे वन में हिरन कि एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.”
भैया जी ने अबकि मेरे सर पर पीछे से ठुनका और साफ़ साफ़ चेताया .
“सुनो चुकिए.अबे एक लड़की नही है. दो हैं बे दो.”
मैंने मान लिया की मेरी रचनात्मकता बेमौत मर चुकी है. भैया जी को जिस एक क्रिस्पी लाइन की तलाश थी उसे ढूँढने में मेरा समस्त ज्ञान निष्फल हो चुका था. भैया जी ने मुझे पूरी तरह चुकी हुई सम्भावना मान कर मसी कागद अपने हाथ लिया और जिस प्रकार महान सत्य सदैव सरल सूत्रों में प्रकट हुआ करते हैं भैया जी ने लिखा –
“अर्चना और रीमा मेरी दो आँखें.”
- ब्रजभूषण पाण्डेय
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बनारस से लगे बिहार के कैमूर जिले के एक छोटे से गाँव बसही में जन्मे ब्रजभूषण पाण्डेय ने दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्चशिक्षा हासिल करने के उपरान्त वर्ष 2016 में भारतीय सिविल सेवा जॉइन की. सम्प्रति नागपुर में रहते हैं और आयकर विभाग में सेवारत हैं. हिन्दी भाषा के शास्त्रीय और देसज, दोनों मुहावरों को बरतने में समान दक्षता रखने वाले ब्रजभूषण की किस्सागोई और लोकगीतों में गहरी दिलचस्पी है.
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