जिन दिनों खेतों में हल लगाने का काम होता घर के सब बड़े लोग बच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं देते. दादाजी, दादी, माँ, चाचियाँ, ननि दादी, ठुली दादी सब कहते आज-कल सब बच्चे चुप सो जाओ. सब थके हैं. जब भी हम कथा लगाने की जिद करते दादी कहती न न बाबा इन दिनों कथा नी लगाते.
क्यों बल? – हम जिद करते. दादी बोलती बैल गुस्सा हो जाते हैं. बैल अगर गुस्सा हो गए तो वो हमारे खेतों में हल नहीं चलाएंगे. जब हल नहीं लगेगा तो फसले कैसे होंगी. फसलें नहीं होंगी तो हम खायेगें क्या?
ये बगत बैलों की थकान का होता है बाबा. हम दुखी हो जाते कि बैल बिचारे थक के सो रहे होंगे. पर कथा सुने बिना नींद ई नी आती. और फिर कथा लगा-कथा लगा की रट शुरू हो जाती. आज तू स्याल और भोले भगबान की कथा लगा. दादी कहती खूब च त जब तक तुम हुंगरे (हूँ, हूँ) दोगे तभी तक कथा लगाउंगी. अर मै लंबा हुंगरा देती हु…ऊँ…ऊँ…ऊँ.
त एक छा बल स्याल. हम कहते हूँऊँ. भारी बदमास. न कुछ काम न धाम. सबकी कमाई खाता अर अपने उडयार में ताणी मार के सोता. बण के सारे जीवों को स्याल ने इतना परेशान कर दिया कि वो सब रोते-धोते शिवजी भगवान के पास पंहुच गए. शिवजी ने कहा – उस गीदड़ को मैं ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जीवों को तंग करना भूल जायेगा.
“हे सुणणा छौ” – हमारे हुंगरे धीरे होते देख दादी कहती – “हे बाबा से गवा (सो गए क्या).” हम जोर से कहते हूँ…ऊँ…ऊँ…
तो सुनो फिर स्याल को सब पता चल गया. उसने सोचा अगर एक आध महीने के लिए खाने का जुगाड़ हो जाता तब तक सब चुगलखोरों को भी चैन हो जाता. वो अपनी आदत के अनुसार इधर चलका बलकी लगाता जा रहा था कि उसे रास्ते के किनारे एक हाथी मरा हुआ दिखाई दिया. कुत्ते, गरुड़, चील और कुछ बाकी जानवर मजे से हाथी को धधोड़ रहे थे. गीदड के दिमाग तेज चलने लगा. ये तो कई दिनों की बसर हो गयी. अगर इन सबको भगा कर अपना कब्जा हो जाये तो क्या मजा आएगा.
बस फिर क्या था तेज हुआँ-हुआँ करता सब के बीच में घुस के बोला – “हटो हटो मुझे शिवजी ने इस जंगल का नया राजा बनाया है. ये हाथी भी मैंने ही मारा है.” बेचारे गरीब, कमजोर जानबर दुम दबा के ओने-कोने दुबक गए. स्याल ने देखा की हाथी की पूँछ के नीचे से बड़ा छेद बना है. वो फ़ौरन छेद से हाथी के पेट में घुस गया.
रोज पेट भर खाता और वहीं सो जाता. इधर सारे जानबर फिर शिवजी से शिकायत करने पंहुचे और सारा किस्सा सुनाया. अब पार्वती बोली – “भगवान इस स्याल का कोई उपाय तो करना ही पडेगा. इसने तो आपको भी नहीं छोड़ा.” शिवजी ने कहा – “सोचते हैं. गीदड़ को उसकी जैसी चालाकी से ही मात देनी होगी.”
इधर क्या हुआ कि जहां तक हाथी का पेट खाली हुआ वहां तक तेज धूप से चमड़ा सूख गया. जिस छेद से गीदड़ घुसा था वो बंद हो गया. अब मची स्याल की बिलबिलाहट. वो जैसे ही किसी आने जाने वाले की आवाज सुनाता हुआँ-हुआँ करके रोने लगता. पर उस पर किसी को दया नहीं आई. उसको रोता देख सब उसकी खिल्ली उड़ाते और चल देते.
एक दिन शिव-पार्वती भी उसी रास्ते जा रहे थे. गीदड़ ने बहुत खुशामद की, हाथ जोड़े, पर वो दोनों भी उसे सबक सीखने की बात कह कर चल दिए. स्याल ने सोचा जिस दिन बाहर निकल गया न उसी दिन तुझे भी छकाऊंगा रे भगवान. दो चार दिन बाद बारिश हुई और हाथी का चमड़ा भीग कर मुलायम हो गया. स्याल उसमें छेद कर निकल भागा और सीधा पंहुच गया कैलाश पर्वत.
वहां जा कर पार्वती की सगोड़ी में एक झाड़ी में छुप गया. देखता क्या है कि गणेश की सवारी मूसा अपने बाल बच्चों के साथ सग्वाड़ी में घूम रहा है. स्याल ने दोब लगाई और मूसे राम जी के दो बच्चे चट कर गया. मूसा रोता धोता शिवजी के पास चला गया. नंदी थोड़ी दूर बैठा घाम तापते हुए ऊँघ रहा था. गीदड़ ने जोर से उसकी पुछड़ी खींच दी. जब तक नंदी उठता स्याल ये जा और वो जा चम्पत.
देखते ही देखते स्याल ने पार्वती की सग्वाड़ी उजाड दी और भाग गया. अब तो शिवजी ने ठान लिया कि गीदड़ को सबक सिखाना है.
“हैं … एक-द्वी कौड़ी का स्याल अर मुझसे पंगा” – शिवजी सोच में पड़ गए और मौका ढूँढने लगे. एक दिन घूमते-घामते शिवजी एक गांव में पंहुच गए. वहां पर किसी के वार्षिक श्राद्ध की दावत चल रही थी. शिवजी ने सोचा स्याल बहुत दिनों से छुपा हुआ है, जरूर भूखा होगा और यहाँ जूठे पत्तल चाटने जरूर आएगा. बस शिवजी ने कीड़े का रूप धरा और पत्तलों के ढेर के पीछे छिप कर बैठ गए. जैसे ही गीदड़ आएगा पट्ट पकड़ के सीधे ले जायेंगे कैलाश पर्वत. वहीं होगी स्याल की मरम्मत.
बहुत देर इंतजार करने पर शिव थकने लगे. जैसे ही पैर सीधे कर रहे थे उसी समय स्याल वहां पर पंहुच गया. पत्तलों को हिलता देख गीदड़ समझ गया, कुछ तो गड़बड़ है. वो पत्तलों से दूर बैठ कर बोला – “हे पतली दीदी ये देख. और दिन तो तू मेरे आते ही सारा खाना बटोर के मेरे सामने रख देती थी, आज तुझे क्या हुआ चुप बैठी है.”
बेचारे शिवजी ने सोचा हो सकता है पत्तल ऐसा करती हो. क्या पता आज मुझे देख के डर गयी हो. शिव ने खाना बटोर कर एक पत्तल पर रखा गीदड़ को बहुत हंसी आई. तेजी से जंगल की तरफ दौड़ पड़ा और पीछे मुड़ कर बोला – “धत्त तेरी शंकर की, बनता तो भगवान है और इतना भी नी जानता की पत्तल भी कभी खाना बटोर सकती है.” गीदड़ तो ये जा और वो जा.
शिवजी बेचारे इधर-उधर देखने लगे कहीं किसी ने देखा तो नहीं और चुपके से अपने घर की तरफ निकल लिए. मन ही मन गाँठ बाँध ली इस साले स्याल को ऐसा छकाउंगा कि इसका बाप भी याद करेगा. और एक दिन शिवजी स्याल के उडयार (गुफा) के अंदर जा के छिप गए. जैसे ही स्याल अंदर आएगा उसे पकड़ के ऐसा सबक दूंगा क़ी लोगों को तंग करना भूल जायेगा.
अँधेरा होने पर स्याल घूम-घाम के अपने उडयार के अंदर जा ही रहा था कि उसकी नजर अपने उडयार के अंदर जाते पैरों के निशान पर पड़ी. पैरों के निशान अंदर तो जा रहे थे पर बाहर आते नहीं दिखाई दिए. स्याल समझ गया अंदर शिवजी बैठे है छिप कर. उसने बारीक आवाज में धै लगाई – “हे उडियार फूफू! हे उडियार फूफू! द्वार खोल, भीतर बुला. रोज तो तू प्यार से बुलाती थी औ भीतर आ जा. आज तुझे क्या हुआ कुछ तो बोल.”
शिवजी ने सोचा जब मै अंदर आया था तब कोई दरवाजा था ही नहीं. ऐसा न हो अब दरवाजा बंद हो गया हो. वो थोड़ा डर गए. जैसे ही शिव ने बाहर झांका और बोले – “आ भीतर आ जा.” स्याल बोला – “धत्त तेरी भगवान की. कही उडियार भी बोलते हैं” और चम्पत हो गया.
शिवजी परेशान! एक दो कौड़ी का स्याल अर मुझे ठगा गया. शर्म के मारे पार्वती से भी कुछ नहीं बोल पाये. क्या करूँ, क्या जो करूँ. दिल में ममराहट मच गयी. सारे पशु-पक्षी अलग शिकायत करते, स्याल ने सबकी नाक में दम कर दी थी. कोई तो गुरु मिले गीदड़ को.
स्याल शिवजी को छका के और मदमस्त हो गया. मस्त हो कर रास्ते भर किसी न किसी को परेशान करता चलता. तभी क्या देखता है एक ब्योली सर में कलेवे की कंडी रखे रास्ते में जा रही है. स्याल रौब से बोला – “ऐ छोरी सारा कंडा चुपचाप नीचे रख और भाग यहाँ से.” स्याल ने ब्योली को बहुत डराया, धमकाया पर ब्योली कलेवे की कंडी उतारने को तैयार ही नहीं हुई.
स्याल तो शिवजी को ठगा के घमंड से चूर हो रहा था बोला – “अच्छा तू नहीं मानेगी लगाऊं एक थप्पड़.” और जोर से ब्योली के गाल में थप्पड़ मार दिया. ये क्या हाथ वहीं चिपट गया. गीदड़ का गुस्सा फ़ूटने को तैयार – “अच्छा हाथ पकड़ती है. हैं! छोड़ मेरा हाथ. लगाऊं दूसरी चपत द लै.” अर दूसरा हाथ भी ब्योली पर चिपक गया.
हुआ यूँ था कि शिवजी ने स्याल को छकाने के लिए लीसे की ब्योली बनाकर भेज दी थी. अब स्याल ने दोनों पैरों से लात मारी तो पैर भी चिपक गए. स्याल लुढ़कने लगा. उसको घिलमुंडी खाते देख सारे जानवर खुश हो गए अर स्याल लुढ़क कर खाई में गिर कर मर गया. अर बाबा बण में सब चैन से रहने लगे.
-गीता गैरोला
देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. वे काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगी.
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2 Comments
Anonymous
सियार और शिवजी?????????आनंद।
जी एस
बचपन में दादी से सुनी थी आज पढ़ कर यादें ताजा हो गई गीता जी का धन्यवाद उन्होंने फिर से दादी के निवाते (नरम -गरम) विस्तर तक पंहुचा दिया