बीती रात दीप जोशी नहीं रहे. अल्मोड़ा नगर की पत्रकारिता के पर्याय माने जाने वाले दीप लम्बे समय से ‘अमर उजाला’ अखबार के ब्यूरो प्रमुख थे. उनके जाने से समूची पत्रकार-बिरादरी स्तब्ध ह... Read more
जनान्दोलनों के संघर्ष का प्रतीक था – त्रेपन चौहान की तेरहवीं पर जगमोहन रौतेला की भावभीनी श्रद्धांजलि
उत्तराखण्ड के जनान्दोलनों व जनसरोकारों के लिए काम करने वाली धारा को गत 13 अगस्त 2020 को तब गहरा आघात लगा है, जब उत्तराखण्ड में वर्तमान दौर में जनांदोलनों के प्रतीक बन चुके व चर्चित उपन्यासका... Read more
उसके लिये मित्रों से बड़ा कोई वीआईपी नहीं होता था – स्मृति शेष दिनेश कण्डवाल
[तीन दिन पहले घुमंतू फोटोग्राफर, लेखक और वैज्ञानिक दिनेश कण्डवाल का आकस्मिक निधन हो गया था. उनकी स्मृतियों पर उनके मित्र व वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का यह आलेख हमें हमारे मित्र चंद्रशेखर त... Read more
जाने का भी क्या समय चुना यार? अलविदा इरफ़ान!
लॉकडाउन घोषित होने से तक़रीबन बारह पंद्रह दिन पहले निर्माता दिनेश विजान की फ़िल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ की स्पेशल स्क्रीनिंग में मैं बतौर गेस्ट मौजूद था लेकिन वहाँ मौजूद हिंदी फ़िल्म जगत के तमाम... Read more
राज्य के सर्वश्रेष्ठ प्रधानाचार्यों में एक महावीर सिंह चौहान नहीं रहे – असामयिक निधन
देहरादून के सर्वाधिक छात्रसंख्या वाले सरकारी माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य का असामयिक निधन हो गया है. बात इतनी-सी ही नहीं है. बात ये है कि प्रदेश के वर्तमान में कार्यरत सर्वश्रेष्ठ प्रधा... Read more
अलविदा सुरेन्द्र पुंडीर भैजी
लिखा-पढ़ी से जुड़ा उत्तराखण्ड में कौन होगा जो इस शख़्स को नहीं जानता होगा. साहित्य-संस्कृति-पत्रकारिता का कोई भी आयोजन हो पुंडीर भाई खोली के गणेश की तरह सबसे पहले स्थापित हो जाते थे. बल्कि... Read more
द गर्ल नेक्स्ट डोर की छविवाली विद्या सिन्हा नहीं रही. (Obituary to Vidya Sinha) मध्यवर्गीय कामकाजी युवती के किरदारों के जरिए उन्होंने दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ी.इंडस्ट्री में तब के चलन के... Read more
बागेश्वर जिले में शहर से डोबा-धारी-गिरेछिना से सोमेश्वर को एक पतली सी सड़क बनने से अब ज्यादातर लोग इसी मार्ग से आ-जा रहे हैं हालांकि बरसातों में सड़क बंद होने के अंदेशे से इस मार्ग में आने-ज... Read more
शमशेर सिंह बिष्ट का एक आत्मीय संस्मरण
शमशेर सिंह बिष्ट ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन को किसी नारे या मुहावरे की तरह नहीं बल्कि एक प्रखर सच्चाई की तरह जी... Read more
एक ज़माना था जब कादर खान को एक फिल्म लिखने के अमिताभ बच्चन से ज़्यादा पैसे मिलते थे. सत्तर और अस्सी के दशक में कादर खान के बिना किसी सुपर हिट फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. दुर्भाग्य क... Read more
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