तब देख बहारें होली की
अठारहवीं शताब्दी के आगरा के शायर नजीर अकबराबादी (Nazeer Akbarabadi 1740-1830) ने अपने आसपास के साधारण जीवन पर तमाम कविताएँ लिखीं. होली पर उनकी यह रचना बहुत विख्यात है. जब फागुन रंग झमकते हों... Read more
हमें अदाएँ दीवाली की ज़ोर भाती हैं
आज से कोई तीन सौ बरस पहले आगरे में एक बड़े शायर हुए नज़ीर अकबराबादी. नज़ीर अकबराबादी साहब (1740-1830) उर्दू में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं. समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी नज़ीर साहब के यहा... Read more
जन्माष्टमी पर विशेष: नज़ीर अकबराबादी की नज़्म “यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन”
आज से कोई तीन सौ बरस पहले आगरे में एक बड़े शायर हुए नज़ीर अकबराबादी. नज़ीर अकबराबादी साहब (१७४०-१८३०) उर्दू में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं. समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी नज़ीर साहब के यहा... Read more
Popular Posts
- कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
- एक थी सुरेखा