उत्तराखंड के कालिदास शेरदा
शेरदा चले गये. मेरा उनका वर्षों साथ रहा. सचमुच वे अनपढ़ थे. यदि अनपढ़ नहीं होते तो इतनी ताजी उपमाएँ कहाँ से लाते? कहाँ से वह पीड़ा लाते जो उनकी कविता के ‘हरे गौ म्यर गौं’ में व्यंजित है. कहा... Read more
जब से मैंने शेरदा की किताब ‘मेरि लटि पटि’ अपनी यूनिवर्सिटी में एमए की पाठ्यपुस्तक निर्धारित की, एकाएक पढ़े-लिखे सभ्य लोगों की दुनिया में मानो भूचाल आ गया. यह बात किसी की भी समझ में नहीं आई क... Read more
सन् 1971 में जब मैंने हाईस्कूल पास किया तब अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक में सरोजनी नायडू की एक कविता थी- ‘वीवर्स’ यानि बुनकर. कवियित्री बुनकरों से पूछती है- यह प्यारा-सा कपड़ा किसके लिए बुन रहे हो?... Read more
शेरदा अपनी जगह पर बने रहेंगे – अद्वितीय
पहली बार नैनीताल के एक शरदोत्सव में हुए कुमाऊंनी कवि सम्मलेन में शेरदा को कविता पढ़ते सुना. कुमाऊं के उस बेजोड़ शोमैन का मैं तुरंत दीवाना हो गया था. बीस-तीस और कविगण भी मंच पर शोभायमान थे और... Read more
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