“मुक़र्रर (मुकद्दमे) की तारीख़ पड़ी थी पंद्रह, सोलह को यहाँ रेंजर सैप आने वाले थे. कचहरी में ही शाम हो गई. मैंने पिरदा से कहा-लौट चलते हैं घर, रात-बिरात पहुँच ही जाएँगे. अँधेरी रात थी, भादों का महीना. अल्मोड़ा से चले तो रैलकोट आते-आते अँधेरा हो गया. हवाल बाग़ के पुल से गाड़ी-सड़क पकड़ी. सड़क के नीचे कोसी का सुसाट-भुंभाट हो रहा था.
(Shekhar Joshi Story Kissago)
पिरदा आगे, मैं पीछे. बात भी करें तो कोसी की सुसाट-भुंभाट में कुछ सुनाई न दे. चुपचाप चले आ रहे थे. पथरिया के मोड़ पर मुझे लगा, पीछे-पीछे कोई छुन-छुन की आवाज़ कर रहा है. गर्दन मोड़कर देखा एक बकरी का छौन चला आ रहा है. एक पैर में शायद धुंघरू बँधा था.
मैंने पिरदा से कहा-पारगाँव में किसी का होगा, डार से बिछुड़ गया है. मनसयान लगी तो साथ लग गया है. कहाँ तक चल पाएगा! बच्चा ही तो है. हम चलते रहे, चलते रहे. एक बार रुन-झुन कुछ थमी तो पीछे मुड़कर देखा. वह छौना भोटिया बकरे के आकार का हो गया था और खरामा-खरामा पीछे चला आ रहा था. मुझे खटका लग गया था, मैंने पिरदा से कुछ नहीं कहा.
(Shekhar Joshi Story Kissago)
वह ठहरा कमज़ोर दिल का आदमी. उसकी घिग्घी बँध जाती और उस अँधेरी सुनसान रात में मेरे लिए उसे सँभालना मुश्किल हो जाता. मैंने मन ही मन गायत्री-पाठ शुरू कर दिया. अगले मोड पर मुड़कर देखा, वह ऊँचा झबरीला बैल बन गया था. पूरे शरीर पर ये लंबे-लंबे बाल, बड़े-बड़े गोल-सींग, अंगार-सी सुलगती आँखें और वैसे ही खरामा-खरामा पीछे चला आ रहा था.
ताज्जुब की बात थी, उसके खुरों की टाप नहीं सुनाई दे रही थी. घुंघरू की आवाज़ तो पहले ही बंद हो चुकी थी. पिरदा ने पूछा-छौना पीछे छूट गया? मैंने हामी भर दी लेकिन कुछ और नहीं बताया. पिरदा उसे न देखता तो अच्छा होता लेकिन अगले मोड़ पर सामने लीसे का टाल था, उसके लैंप की धीमी रोशनी दिखाई देने लगी थी. तभी वह अलच्छन डकरते हुए तेजी से आगे आया और उसने छप्प से कोसी में छलाँग लगा दी. टाल के मुंशी ने हाँक दी तो हम दो घड़ी उसके पास बैठ गए. यही ग़लत हुआ.
मुंशी ने खुलासा कर दिया-आप लोगों ने ग़लती की, पथरिया के दुकानदार से छिलके की मशाल ले लेते, आग से अलबत्ता डरता है. पिरदा तब से जो गुमसुम हुआ फिर आख़िर तक गुमसुम ही रहा. झाड़-फूंक, जागर-पूजा कुछ काम नहीं आए.”
(Shekhar Joshi Story Kissago)
शेखर जोशी की कहानी ‘किस्सागो’ का हिस्सा
![Shekhar Joshi, Kosi ka Ghatwar](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/02/shekhar-joshi-150x100.jpg)
शेखर जोशी का जन्म 10 सितंबर 1932 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ओलिया गांव में जन्म हुआ. अनेक सम्मानों से नवाजे जा चुके हिन्दी के शीर्षस्थ कहानीकारों में गिने जाने वाले शेखर जोशी के अनेक कहानी संग्रह प्रकाशित हैं. उनका पहला संग्रह था ‘कोसी का घटवार’ जो 1958 में छप कर आया था. इसी शीर्षक की उनकी कहानी ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई.
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