कला साहित्य

मटियानी का सूबेदार नैनसिंह और उसकी सूबेदारनी

मेरे लिये बड़ी कहानी या कविता वही है जिसे पढ़कर कुछ समय के लिये बस चुप रहने का मन करे. आँखों में नमी, होठों पर हल्की मुस्कान, हंसी से लाल गाल, गरम कान, लम्बी गहरी सांस, रोंगटे खड़ेकर शरीर को कुछ देर के लिये ठंडा कर सके, वही मेरे लिये बड़ी कहानी या कविता है. Shailesh Matiyani

और इस पैमाने पर मुझे शैलेश मटियानी से बड़ा कहानीकार हिन्दी में कोई नहीं दिखता. ‘उसने तो नहीं कहा था’ की लछिमा पूरे हिन्दी साहित्य में मटियानी के अलावा और कहाँ मिलेगी? उनकी कहानी के अलावा कहीं और न जसवंत सिंह होगा न कुंवरसिंह.

हमेशा से ‘उसने तो नहीं कहा था’ और ‘अर्द्धांगिनी’ में मेरे लिये एक को चुनना मुश्किल रहा है इसके बावजूद ‘अर्द्धांगिनी’ उनकी लिखी मेरी सबसे पसंदीदा कहानी है.

टनकपुर से पिथौरागढ़ की सड़क से कहानी बुनते हुए मटियानी, पहाड़ के फौजी दम्पति के जीवन के हर उस पहलू को छूते हैं जिसे फौजी की महीने दो महीने की छुट्टी में वह जीते हैं.

टनकपुर से पिथौरागढ़ जा रहे नैनसिंह के पास वीआईपी अटैची है जिसमें एकसाथ हाट कालिका मइया के लिये चमचमाता डेढ़ मीटर लाल साटन और थ्री एक्स रम है. चम्पावत के ढाबे में भुटुवा और शिकार भात है. मइया के यहां जागर है. बेटों के जन्म की भेंट है बेटी के जन्म की कामना है.

गांव में चौमास की ककड़ी का रायता है, गड़ेरी का भंग पड़ा रसदार साग और पूरी है, मुट्ठी भर लहसुन पड़ी और घी में जम्बू से छौंकी मसूर की दाल है और ऊखलकुटे घर के चावल का भात.

उसके पास टू इन वन टेप रिकार्डर, चार बैटरी वाला टार्च और एक फोटू कैमरा है. वो सब है जिसे फौजियों का परिवार पहली बार देखकर उसका फ़ालतू खर्चा समझता है और फिर बड़ी सान से गाँव के लोगों को दिखाता है.

नैनसिंह टेप रिकार्ड में बाबू की गायी सभी जागर और घरवाली की गायी सभी न्यौली रिकार्ड कर लेना चाहता है. फोटू कैमरे में अपनी रूक्मा की ढेरों तस्वीरें कैद कर लेना चाहता है.

नैनसिंह के अंदर सूबेदार वाला पूरा नक्सा है उसके पास फौजियों वाली अंग्रेजी है जिसे रूक्मा लालपोकिया बानरों जैसी बोली कहती है. इस सबके अलावा नैनसिंह के भीतर अपनी पत्नी के लिये अनन्य प्रेम और सम्मान का भाव है. मटियानी की एक पंक्ति ‘फौजी गुजरता है तो सिर्फ एक तार ही देखने को मिलता है’ इस देश के लाखों फौजियों की सम्पूर्ण कहानी है. Shailesh Matiyani

कहानी के अंत में नैनसिंह की रूक्मा जब उसे छोड़ने पक्की सड़क तक उसकी अटैची और हालडोल सिर पर रखकर लाती है तो उसकी आंखें नम होती हैं. कुली मिलने पर जब नैनसिंह अपनी रूक्मा के हाथों में एक-एक रुपयों के नोटों की एक नई गड्डी जर्सी से निकाल कर रखता है तो वह हंसकर कहती है –

इतनी ज्यादा रकम दे रहे हो मजदूरी में – अगली बार भी हम ही लायेंगे साहब का सामान.

प्यारे शैलेश मटियानी को गुजरे आज 19 साल हो गये हैं

-गिरीश लोहनी

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

4 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

6 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago