जर्मनी के महान वैज्ञानिक और भौतिक शास्त्र में नोबल पुरुस्कार विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन को सारी दुनिया जानती है. उन्होंने प्रकाश विद्युत प्रवाह की क्वांटम सिद्धांत पर व्याख्या करके विज्ञान की दुनिया में तहलका मचाया था. इस नाते उन्हें देश-विदेश के वैज्ञानिक संस्थानों में व्याख्यानों के लिए आये दिन जाना होता था.
कहते हैं कि डॉक्टर के साथ रहते रहते कम्पाउण्डर भी आधे से अधिक डॉक्टर हो जाते हैं. कुछ इसी तरह आइंस्टीन का ड्राईवर भी उनके साथ दिन रात रहते वैज्ञानिक हो गया. वो उनके सहायक का काम भी करता था. एक दिन ड्राइवर ने दिल की बात कही – जनाब जिस तरह आप व्याख्या करते हैं, मैं भी कर सकता हूं. चाहें तो कभी आज़मा कर लें.
आइंस्टीन को यकीन नहीं हुआ कि ड्राईवर सच बोल रहा है. साथ गुस्सा भी आया कि एक मामूली पढ़ा-लिखा ड्राइवर मुझसे मुक़ाबला कर रहा है. उन्होंने कहा तो कुछ नहीं मगर तय कर लिया कि ड्राईवर को उसकी औकात याद दिला कर रहेंगे.
एक दिन आइंस्टीन को एक ऐसे संस्थान से बुलावा आया जहां आइंस्टीन को कोई पहचानता नहीं था. वो अपने ड्राईवर को उसकी औकात याद दिलाने की बात भूले नहीं थे. उन्होंने अपनी ड्रेस ड्राईवर को पहना दी और स्वयं ड्राईवर वाली पहन ली. और बोले – आज तुम्हारे इम्तेहां का वक़्त है. यह कह कर आइंस्टीन खुद दर्शकों के बीच जाकर बैठ गए. ड्राईवर ने चुनौती क़ुबूल की। सभागार में बड़ी शान से आइंस्टीन के रूप में खुद को प्रेजेंट किया.
आइंस्टीन को बड़ी हैरानी हुई कि उनके ड्राईवर ने बड़ी खूबी से भौतिक विज्ञानं पर उन्हीं की तरह विश्वसनीय व्याख्यान दिया. और अपने द्वारा स्थापित सापेक्षावाद, प्रकाश विद्युत प्रवाह का क्वांटम सिद्धांत और ऊर्जा-द्रव्यमान संबंध की धाराप्रवाह व्याख्या की. हाल में तालियां ही तालियां.
आइंस्टीन भौंचक्के थे कि यह हो क्या रहा है. उन्हें लगा कि असली आइंस्टीन वो नहीं उनका ड्राईवर है. अचानक एक मुश्किल मोड़ आ गया. एक विद्वान ने एक मुश्किल प्रश्न पूछा जिसका उत्तर कोई सिद्दांतों का ज्ञाता ही दे सकता था, ड्राईवर जैसा रटूं तोता नही. सच में ड्राईवर को इसका ज्ञान नहीं था.
लेकिन आइंस्टीन स्तब्ध रह गए जब उनका ड्राईवर कतई विचलित नहीं हुआ. उसने तुरंत और पूरे यकीन के साथ जवाब दिया – इतनी छोटी सी बात और आपको मालूम नहीं. आप दूसरों को क्या शिक्षा देते हैं. मुझे हो हैरानी रही है. इस आसान सवाल का जवाब तो मेरा ड्राईवर भी दे सकता है.
ड्राईवर को भंवर से निकालने तब असली आइंस्टीन दर्शकों के बीच से उठ कर आये और उस विद्वान के प्रश्न का संतोषजनक उत्तर दिया.
अल्बर्ट आइंस्टीन उस दिन अपने हाजिरजवाब अनोखे ड्राईवर से बहुत खुश थे.
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