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हिन्दी फिल्मों की द गर्ल नेक्स्ट डोर थीं विद्या सिन्हा

द गर्ल नेक्स्ट डोर की छविवाली विद्या सिन्हा नहीं रही. (Obituary to Vidya Sinha)

मध्यवर्गीय कामकाजी युवती के किरदारों के जरिए उन्होंने दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ी.
इंडस्ट्री में तब के चलन के हिसाब से उनका लुक न तो अनिंद्य सौंदर्य वाली स्टार तारिकाओं की तरह था, न कला-सिनेमा की गंभीरतापूर्ण सादगी लिए हुए.

सीधी-सादी मध्यवर्गीय युवती, , जिसमें संपूर्ण हिंदुस्तानी सौंदर्य झलकता हो. माथे पर बिंदी, पोलका डॉट्स साड़ी, कंधे पर लेडीज बैग, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करती हुई गरिमामयी युवती. उनका यही गुण उन्हें दर्शकों की नजरों में सबसे खास बनाता था.

राजा काका (1974) उनकी डेब्यू फिल्म थी. लेकिन उन्हें पहचान मिली उसी साल आई फिल्म रजनीगंधा से. इस फिल्म में वह एक महानगरीय लड़की के किरदार में थी, जिसका संजय (अमोल पालेकर) से अच्छा परिचय रहता है. यहाँ तक कि वह उसके प्रति मन में कोमल भाव भी रखती है.

संजय खुशमिजाज है, एक मध्यवर्गीय युवक में जो- जो होना चाहिए, उसमें सब कुछ है. बस थोड़ा सा लापरवाह है.

इस बीच दीपा(विद्या सिन्हा) को नौकरी के सिलसिले में बंबई जाना पड़ता है. वहाँ उसकी मुलाकात नवीन (दिनेश ठाकुर) से होती है. वह संजय के बिल्कुल उलट स्वभाव वाला रहता है. एकदम पंक्चुअल, बेहद केयरिंग. बस उसका बौद्धिक झुकाव थोड़ा ज्यादा रहता है.

यहीं से युवती के मन में अंतर्द्वंद्व उपजता है. विद्या सिन्हा ने विकल्पों के चुनाव में उलझी युवती के अंतर्मन के भाव बेहद संजीदगी से निभाए.

फिल्म बेहद सफल रही. यहीं से हिंदी में मिडिल सिनेमा की शुरुआत मानी जाती है.

फिल्म मन्नू भंडारी की कहानी ‘यही सच है’ पर आधारित थी. बस इसमें शहरों के नाम कानपुर-कलकत्ता से दिल्ली-बंबई बदल दिये गये.

वासु चटर्जी निर्देशित ‘छोटी सी बात’ में विद्या सिन्हा एक कामकाजी लड़की टाइपिस्ट प्रभा नारायण के किरदार में नज़र आई.

यहाँ पर असरानी और अमोल की जबरदस्त प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलती है.

एक महीने की ट्रेनिंग करके अरुण जबरदस्त रुपांतरण करके लौटताहै.

रोजमर्रा की जिंदगी में मध्यवर्गीय लड़की की कशमकश इस फिल्म में बड़ी खूबसूरती से दिखाई गई है. वर्किंग वुमन के किरदार को विद्या ने बेहद खूबसूरती से निभाया.

‘पति पत्नी और वो’ में विद्या सिन्हा एक गृहणी के किरदार में नजर आई, जिसका पति(संजीव कुमार) विवाहेत्तर संबंधों की तरफ जाने की कोशिश करता है.

वह स्वाभिमानी स्त्री ये सब सहन नहीं करती. मैं बीए पास हूँ कहकर उसे आड़े हाथों लेती है और पति को सही रास्ते पर लाने के लिए सभी संभव उपाय तलाशती है.

उन्होंने कुछ और फिल्मों में भी काम किया. लंबे समय बाद वे टीवी सीरियल्स में नजर आईं.

मिडिल क्लास सिनेमा की सदाबहार तारिका विद्या सिन्हा को विनम्र श्रद्धांजलि.

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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