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क्या चैंपियन को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है

भारत विश्वकप में चैंपियन होते-होते रह गया लेकिन उत्तराखंड के विधायक कुँवर प्रणव सिंह बिना खेले सिर्फ शराब पीकर ही चैंपियन हो गए. नायिका रूपी उत्तराखंड, राणा रूपी चैंपियन से उनके विधायक चुन लिए जाने के लिए शायद गाना गाकर माफ़ी माँग रहा है लेकिन चैंपियन तो चैंपियन हुए उन्हें आजतक कौन हरा सका. चैंपियन जब कांग्रेस में थे तब भी चैंपियन थे और जब भाजपा रूपी गंगा में डुबकी लगाकर अपनी वैतरणी पार लगाने की कोशिश की तब भी चैंपियन ही रहे. चैंपियन का चैंपियन डाँस देखकर वेस्टइंडीज़ के क्रिकेटर डीजे ब्रावो चाहें तो अपने गाने में सुधार कर ‘चैंपियन इज ए चैंपियन’ लाइन जोड़ सकते हैं.

चैंपियन ने अपने ऐतिहासिक विधायकी युग में यह पहला चैंपियन काम किया हो ऐसा नही है. इससे पहले भी वह अपने ऑफ़िस में अप्सरा को नचा कर स्वयं विधायकों का देवता वाला सुखद अहसास ले चुके हैं. मुख्यमंत्री के मुँह में अपने अमृत रूपी थूक को फैंकने की मधुर धमकी भी वह दे चुके हैं. एक पत्रकार पर अपने वर्जिश किये सोलह इंची डोले और ढाई किलो के हाथ से परम दयालु चैंपियन पहले ही ज़ोरदार वार कर चुके हैं और गंदी गालियॉं दे चुके हैं.

चैंपियन का रसूख राज्य सरकारों के सामने ऐसा रहा है कि वह कई बार सरकार रूपी लंका में कुछ विधायक रूपी वानरों को साथ लेकर आग लगाने निकल पड़े हैं. कई बार मनचाहा पद न मिलने के कारण सरकार गिराने व ईंट से ईंट बजा देने की कहावत को सिद्ध करने की धमकी भी दे चुके हैं. चैंपियन ने इन्हीं सब महान कृत्यों के चलते शायद अपने नाम के साथ चैंपियन जोड़ा हो. उत्तराखंड की राजनीति में जब भी चैंपियन के नाम की चर्चा हुई तो सिर्फ उनके बाहुबल और संख्याबल (विधायक तोड़ने) के लिए. अब तक चैंपियन पर लगभग दो दर्जन मामले दर्द हो चुके हैं जिसका उन्हें कोई मलाल नहीं है. हर आपधारिक मामले के साथ चैंपियन को यही एहसास हुआ कि जैसे उनकी पदक तालिका में बढ़ोत्तरी हुई हो.

निजी आवास में शराब पीना चैंपियन का निजी मसला हो सकता है. लेकिन कैमरे में शराब की नुमाइश करना और उस पर तीन पिस्टल और एक बंदूक़ का तड़का लगाना और वीडियो का वायरल हो जाना ही चैंपियन को चैंपियन बनाता है.

ऐसा नहीं है कि वीडियो ग़लती से लीक हुआ हो. सत्ता की हनक चैंपियन पर इतनी हावी है कि पहले भी वह ऐसे कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं.

इंसानों को गाली देने की कला में निपुण चैंपियन ने इस बार एक लंबी छलाँग लगाते हुए पूरे उत्तराखंड को ही मॉं-बहन की गाली दे डाली है. गालियों की अगर प्रतियोगिता हो जाए तो चैंपियनों में भी चैंपियन ही अव्वल आएँ. चैंपियन आम बोलचाल में भी गालियों का प्रयोग स्वादानुसार करते रहते हैं और दो घूँट मदिरा पान के बाद तो वह गालियों से बनी रैसिपी ही आपकी थाली में परोस दें. चैंपियन की यूएसपी उनकी अकड़, रौब, बाहुबल, धनबल व गालियों से भरा कंठ है. एक दिन गालियों के उच्चतम शिखर पर पहुँच कर वह अपने कंठ को गालियों के विष से भर लेंगे और ‘गालीधर चैंपियन’ की उपाधि से नवाजे जाएँगे.

अब जाकर शायद खानपुर की जनता को एहसास हो रहा हो कि जिस व्यक्ति को उन्होंने विधायक चुना है असल में वह चुनने लायक़ नही बल्कि स्थापित करने लायक़ है. चैंपियन जैसे विधायकों को राज्य से निकालकर किसी अखाड़े में स्थापित किया जाना चाहिये. अगर असल में राज्य के लोग खुद का विकास देखना चाहते हैं तो उन्हें पहले चैंपियन जैसे लोगों का राजनीतिक विकास रोकना होगा अन्यथा चैंपियन जैसे विधायकों के लिए जनता 5 साल में वोट देने वाले एक रोबोट से ज़्यादा कुछ भी नहीं है. और वह रोबोट भी ऐसा है जो एक पव्वे और 250 ग्राम मुर्ग़े के लिए अपना वोट चैंपियन जैसे लोगों को बेच देता है. अंत में चैंपियन जैसे विधायक जाँघों में शराब का गिलास रख कर और हवा में पिस्टल लहराकर राज्य और वोटरों को गालियों का गुलदस्ता पकड़ा कर अपनी सनक दिखाते रहते हैं.

हालाँकि सुनने में आ रहा है कि चैंपियन को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है लेकिन अब यह दारोमदार उत्तराखंड की जनता पर है कि वह चैंपियन को राजनीति और सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाए.

– कमलेश जोशी

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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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