हैडलाइन्स

पिथौरागढ़ के छात्र आंदोलन में कहां खड़े हैं राजनैतिक पार्टियों से जुड़े छात्रसंगठन

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ महाविद्यालय में 4 हफ्तों से एक आंदोलन चल रहा है जिसकी गूंज राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया तक पहुंच चुकी है. छात्रों द्वारा चलाये गए इस आंदोलन के समर्थन में अभी तक राजनैतिक पार्टियों से जुड़ा कोई छात्र संगठन सक्रिय रूप से सामने नहीं आया है न ही उनकी तरफ से कोई आधिकारिक समर्थन पत्र ही लिखा गया है. (pithoragrah student fighting for books)

एक दौर था जब छात्र राजनीति का एक अपना दबदबा था. छात्रों द्वारा बड़े-बड़े आंदोलन किये जाते थे और पिछले दशक तक के राष्ट्रीय नेताओं की एक बड़ी संख्या छात्र राजनीति की ही उपज है. उत्तराखंड राज्य की स्थापना में छात्रों और छात्र राजनीति की अग्रणी भूमिका रही है. पर ये सब 2 दशक पुरानी बातें हैं. (pithoragrah student fighting for books)

वर्तमान समय में छात्र राजनीति बस नाम की ही रह गयी है. छात्रों द्वारा आंदोलन की बात सोचना ही दूर की कौड़ी हो गया है करना तो खैर. 2 दिन पूर्व जब उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का बयान आया कि आंदोलन को बाहरी लोग चला रहे हैं और इसकी जांच होगी तो मुझे कोई अचरज नहीं हुआ क्योंकि धन सिंह रावत खुद छात्र राजनीति की ऐसी ही परम्परा से निकले हैं जिसमें सभी छात्र नेताओं को सरकारों और मुख्यधारा के राजनितिक दलों के पिछलग्गू बने रहने की मज़बूरी है.

आंदोलन करना आज की छात्र राजनीति में असंभव सा बन गया है ये राजनेता अच्छी तरह जानते हैं. इसका एक बड़ा कारण लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें हैं पर ये सब कुछ साजिशन किया जा रहा है ताकि राजनीतिक पार्टियों के लिए छुटभैये पैदा किए जा सकें, छात्रनेता नहीं.

धन सिंह रावत का जब यह बयान आया तब वे रुद्रपुर कॉलेज में थे और वहीं पर एक घटना और घटी. अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन दे रहे एबीवीपी के पदाधिकारियों को धन सिंह रावत ने यह कह दिया कि ये सब आप लोग चुनाव के समय ही करते हैं. जाहिर है इतने बड़े छात्र संगठन की तरफ से इस बयान की कोई प्रतिक्रिया आने की खबर राज्य में कहीं से भी नहीं सुनाई दी. इसी से आप छात्र राजनीति और छात्र संगठनों कि वर्तमान स्थिति को समझ सकते हैं. एक ही अनुसांगिक संगठन का हिस्सा होने के कारण जाहिर है कि भाजपा की सरकार के ख़िलाफ़ एबीवीपी के छात्रनेताओं की चूं करने तक की हैसियत वर्तमान छात्र राजनीति में नहीं है.

जब पिथौरागढ़ का आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर इतनी सुर्खियां बटोर रहा है और आंदोलन के पूरे राज्य भर में फैलने की गुंजाइश है तो जिले के ही ये छात्र संगठन चुप क्यों हैं इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है. एबीवीपी का प्रदेश मंत्री यहां से होने के बावजूद पिथौरागढ़ एबीवीपी का शिक्षक पुस्तक छात्र आंदोलन को लेकर क्या पक्ष है?

आखिर एबीवीपी के छात्रनेता आंदोलन के समर्थन में आगे क्यों नहीं आ रहे? क्या उनको शिक्षकों और पुस्तकों की ये मांग उचित नहीं लगती ?

ज़ाहिर है लगती होंगी पर चमचागिरी में आकंठ डूबे ये छात्रनेता अपने आकाओं के विरोध में कुछ बोल नहीं सकते.

एनएसयूआई की इस आंदोलन को लेकर क्या जिम्मेदारी है? क्या अभी तक एनएसयूआई को इस आंदोलन के समर्थन में राज्यव्यापी आंदोलन नहीं करना चाहिए था? क्या अभी तक राज्य भर के छात्र संगठनों और छात्रसंघों द्वारा इस मुद्दे को लेकर अपने अपने महाविद्यालयों में शिक्षक-पुस्तक आंदोलन शुरू नहीं करना चाहिए था?

इससे इन छात्रसंगठनों की समझ और सांगठनिक खोखलेपन पर भी प्रश्न उठना लाजमी है. राज्य बनने के 19 साल बाद भी जब प्रदेश की उच्च और माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था खस्ताहाल है और प्रदेश के सभी महाविद्यालयों को शिक्षक-पुस्तक आंदोलन की जरूरत है तो ये सभी राजनैतिक पार्टियों से सम्बद्ध छात्र संगठनों और प्रदेश के सभी छात्रसंघों के लिए चुनौती है और प्रश्न भी कि ऐसा आंदोलन अन्य जिलों और राज्य के अन्य महाविद्यालयों में तेजी से क्यों शुरू नहीं हो रहा ?

इस आंदोलन के समर्थन में जहाँ जगह-जगह से आम छात्रों की आवाज उठ रही है उससे यही स्पष्ट होता है कि निकट भविष्य में राजनैतिक दलों से संबद्ध छात्र संगठनों को दरकिनार करते हुए एक नया छात्र आंदोलन उठने वाला है.

-प्रदीप गड़कोटी

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

प्रदीप गड़कोटी पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं. प्रदीप ने वर्ष 2018 में पिथौरागढ़ महाविद्यालय से इतिहास विषय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • आपने abvp के बारे में लिख दिया , आपके सोर्स क्या हैं जिनकी सहायता से आप कह रहे है कि
    abvp ने पुस्तको की मांग नही की या समर्थन ?
    रुद्रपुर में कुछ नही किया ?
    Abvp किसकी अनुशांगिक संगठन है?

    अब आप एक बात और साफ कीजिए
    क्या ये मुद्दा राजनीति के लिए है ?
    क्या ये मुद्दा चुनावी है ?
    नही तो आप छात्रों के सहयोग पर बात कीजिए संगठनों के नही
    जिस तरह कांग्रेस bjp के नेताओ के साथ बात व समर्थन लीया जा रहा है वही 7 हज़ार बच्चो में मात्र 100 से 300 बच्चा इस मुद्दे पर लड़ रहा है
    तो आप क्या कहते हैं
    बाकी बच्चे राजनैतिक पार्टियों के गुलाम है ??????

Recent Posts

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

13 hours ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

2 days ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

2 days ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

3 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

3 days ago

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

4 days ago