हिंदी की एक बहुत प्रचलित कहावत है – बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता. इस बात की सत्यता को लेकर संदेह करने की जरा भी गुंजाइश नहीं. लेकिन सवाल यह है कि ऐसी कहावत बनी और प्रचलित क्यों हुई? क्या आपने कभी गौर किया? मैंने इस पर ध्यान दिया तो मुझे समझ आया कि असल में दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है, जो स्वर्ग भी देखना चाहते हैं और मरना भी नहीं चाहते. कामयाब भी होना चाहते हैं और मेहनत भी नहीं करना चाहते. पैसा भी कमाना चाहते हैं और काम भी नहीं करना चाहते. इसी क्रम में आगे चलें, तो हमें ऐसे लोग भी मिलते हैं, जो अपनी समस्याओं को सुलझाना भी चाहते हैं और दिमाग भी नहीं लगाना चाहते. बात को थोड़ा बेहतर समझने के लिए पहले आप यह कहानी पढ़ें (Mind Fit 20 Column) –
एक बार एक पहुंचे हुए ज़ेन गुरु के शिष्य ने गुरु से पूछा, ‘मैं अपने दिमाग को कैसे शांत कर सकता हूं?’
गुरु ने जवाब दिया,‘अभी मैं किसी काम में बहुत व्यस्त हूं, तुम क्यों नहीं यह सवाल अपने पहले धर्म भाई से पूछते.’
शिष्य गुरु का कहना मान पहले धर्म भाई के पास पहुंचा. उसने उससे यही सवाल किया –
‘मैं अपने दिमाग को कैसे शांत कर सकता हूं?’
‘अभी मेरे सिर में बहुत दर्द है. मैं अभी तुमसे बात नहीं कर पाऊंगा. तुम क्यों नहीं यही सवाल दूसरे धर्म भाई से पूछ लेते’, पहले धर्म भाई ने जवाब दिया.
शिष्य जब दूसरे धर्म भाई के पास पहुंचा, तो उसने कहा – मेरे पेट में बहुत दर्द है. मैं बात नहीं कर सकता.
अब शिष्य निराश होकर फिर से उस ज़ेन गुरु के पास पहुंचा. उसने गुरु से शिकायत की –
‘मुझे किसी ने नहीं बताया कि क्या करूं. मेरे सवाल का किसी ने जवाब नहीं दिया.’
गुरु ने उसे बेतरह झिड़कते हुए कहा, ‘तुम सच में बहुत बड़े उल्लू हो. सबने तुम्हें जवाब दिया, पर तुम समझ ही नहीं पा रहे.’
कहते हैं कि गुरु की इस झिड़क में छिपे संदेश को शिष्य समझ गया और जल्दी ही वह प्रबोधन यानी परम ज्ञान ज्ञान को प्राप्त हुआ. (Mind Fit 20 Column)
क्या आप बता सकते हैं गुरु की झिड़क में ऐसा क्या संदेश छिपा हुआ था, जिसे समझकर शिष्य ज्ञान को प्राप्त हुआ.
दरअसल शिष्य को गुरु का यह संदेश समझ आ गया कि अपने दिमाग की शांति के लिए उसे खुद ही काम करना पड़ेगा, कोई दूसरा उसके दिमाग की शांति के लिए कोई उपाय नहीं करेगा.
तुम्हारे जीवन में जो भी समस्या है, चाहे वह कैसी भी है, छोटी या बड़ी, उसे कोई दूसरा हल नहीं कर सकता. यह काम तुम ही कर सकते हो. वह तुम्हारा दिमाग है, जो अशांत है. तुम्हें एकाग्र होना पड़ेगा. तुम्हें जानना होगा कि तुम में कितनी इच्छाशक्ति है, तुम्हारी क्या चाहते हैं, क्या इच्छाएं हैं, तुम्हारा दिमाग कितना ताकतवर है? तुम्हें अपने समूचे अस्तित्व को जानना और समझना होगा. इस बात को ठीक से समझ लो कि तुम्हारे साथ जो भी होता है, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ तुम ही जिम्मेदार होते हो. अच्छा होता है, तो भी और बुरा होता है, तो भी. हमारे साथ अच्छा-बुरा होता है, क्योंकि हम सही-गलत फैसले लेते हैं. (Mind Fit 20 Column)
जीवन में हर पल हमारे सामने कई विकल्प खुले रहते हैं. जैसे एक कॉलेज के छात्र के लिए एक ही समय में कई विकल्प हो सकते हैं – वह पढ़ाई कर सकता है, ज्यादा भोजन करके सोया रह सकता है, सिनेमा देखने जा सकता है, दोस्तों से गप्प मार सकता है. हम क्या विकल्प चुनते हैं, इसी से हमारे जीवन की स्थिति तय होती है. हम किसी क्षण में अपने साथ क्या करते हैं, इसके लिए हम दूसरों से निर्देश नहीं लेते, इसलिए अपने जीवन की स्थिति को लेकर हम दूसरों को कैसे जिम्मेदार मान सकते हैं. हमें अपने प्रति जिम्मेदारी निभाने से हमारे खुद के अलावा कोई नहीं रोक सकता. बस, इतनी-सी बात समझनी है. जब समझ आ जाए, बस तभी से परम ज्ञान की राह पर चलना शुरू हो जाएगा.(Mind Fit 20 Column)
-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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