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8 Comments

  1. Ganesh Joshi

    आलेख पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। यादें ताजा हुई। जबरदस्त

  2. हरीश पांडे

    हरीश पांडे
    नैनीताल एक्सप्रेस का लेख दिल को छू गया । हम लोग जिन्होंने अपने बचपन व जवानी के 30 साल लखनऊ में बिताए हैं उनके लिए लखनऊ से जुड़ी हर याद अद्भुत है ।मुरली नगर की रामलीला, रवींद्रालय का रंगमंच ,बोटैनिकल गार्डन में लगने वाली फूलों की नुमाइश ।आज भी दिल पहाड़ से ज्यादा लखनऊ के लिए धड़कता है ।

  3. चन्द्र शेखर लिंगवाल

    उत्तराखंड की सुनहरी याद ताजा करने के लिए आपका धन्यवाद

  4. पंकज सिंह महर

    इसी रेल ने मुझे भी लखनऊ पहुंचाया। जब इम्तहान देने इलाहाबाद या दिल्ली जाते समय यह जंक्शन के प्लेटफार्म नम्बर 6 पर खड़ी होती तो ईजा की याद दिला देती थी यह रेल। इस ट्रेन में हम पिथौरागढ़ वालों के लिए s 7 कोच आरक्षित होता, जिसका रिजर्वेशन पिथौरागढ़ रोडवेज करता था, 6.30 बजे यह टनकपुर से चलती और 8.30 पर पीलीभीत छोड़ देती। इसके तीन डिब्बे रात 12 बजे तक खड़े रहते, जब नैंताल एक्सप्रेस आती तो फिर सफर शुरू होता। बड़ी मोहिली यादें हैं, बेरोजगारी, घी के डब्बे बचाना, भट्ट गहत से लदे हमारे बैग…. यही रेल है, जिसने मुझे दुनिया दिखाई।

  5. मृगेश

    वाह. जै जै.

  6. संजय कबीर

    यादें …..सुनहरी यादें ।
    सुंदर संस्मरण के लिए आभार

  7. RAHUL KHURANA

    14 अगस्त 2021 ………रोजाना की तरह नीद से उठने के बाद खुद की नज़रों का घर के मुख्य द्वार के पास अखबार को तलाशना शुरू हो गया l तीन मिनट तक आंगन के हर कोने को तलाशने के बाद ही मन मान पाया कि अभी अखबार नही आया खैर अब तो अखबार वाले का इंतज़ार ही करना था और क्या ?

    इंतज़ार करने का वक़्त गुजारना तो आप समझते ही होंगे हम इंसानों के लिए कितनी बड़ी मुसीबत है अब आगे तो शायद आप जान ही रहे होंगे कि क्या होना था

    जी हां वक्त गुजारने के लिए हाथ जैसे खुद बखुद सामने मेज़ पर पड़े मोबाइल की तरफ बढ़े और मोबाइल हाथ मे आते ही फेसबुक खोलते ही हमारे प्रिय “नवीन जोशी” जी का लेख

    ‘दिल ढूंढता है फिर वही नैनीताल एक्सप्रेस’

    अब क्या होना था अखबार का इंतज़ार मानो खत्म सा
    हम भी इसी ट्रेन में नवीन जी आपके साथ हो लिए सवार

    इस सफर में इतना आगे निकल आया मानो आपके साथ एक ही कोच में सवार हूँ……ट्रेन के अंतिम स्टेशन तक आते आते आंखों में नमी भी सफर में साथ हो ली थी

    फिर खुद से एक सवाल कि ये क्या हुआ तुझे भाई इतना कमजोर कैसे

    नवीन जी सत्य बात तो यह है कि मेरा नैनीताल एक्सप्रेस से कभी कोई वास्ता ही नही रहा परन्तु आपके लेख में मैंनेआपके सारे जीवन को जी लिया….एक पहाड़ी गांव में रहने वाले व्यक्ति के जीवन की परेशानी को मैंने जाना

    आपके इस लेख ने मेरे बचपन से आज तक के सफर को याद दिलाया है …नवीन जी बहुत ही प्यारी लेखन शैली आपकी.. हर बात को दिल की गहराई से हम लोगो के समक्ष प्रस्तुत किया आपने

  8. RAHUL KHURANA

    लेखन शैली बहुत खूबसूरत लगी

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