मामू कबाड़ी बस इतना ही परिचय काफी है इनका. मामू कबाड़ी को नैनीताल का हर बाशिंदा जानता है. कबाड़ बेचकर लोगों के बीच इतनी लोकप्रियता बटोरने के पीछे किताबों के प्रति उनका लगाव है. इसी की बदौलत शहर ही नहीं, हल्द्वानी, नैनीताल, रानीखेत आदि दूरस्थ क्षेत्र के अध्ययनशील छात्र नैनीताल आने पर इनके स्टोर से किताबें खरीदना नहीं भूलते. अगर कोई किताब किसी बुक स्टोर में उपलब्ध नहीं है तो दोस्त मामू कबाड़ी के स्टोर पर जाने की सलाह आपको अवश्य दे डालेंगे. 32 सालों से ये काम कर रहे मामू कबाडी को आज नगर का बच्चा-बच्चा जानता है. इतना ही नहीं कबाड़ का काम करने के बावजूद इनके इस जूनून ने राष्ट्रीय मीडिया में भी इनको हीरो बना दिया. वर्ष 2015 में जी न्यूज ने इन पर बकायदा कार्यक्रम प्रसारित किया. (Mamu Kabadi Nainital)
जिन्दगी के 60 बसन्त देख चुके राशिद अहमद को असल नाम से बहुत कम ही लोग जानते हैं, लेकिन मामू कबाड़ी हर एक की जुबान पर रहता है. मूलरूप से धामपुर उ.प्र. के निवासी राशिद अहमद ने कक्षा 6 तक की पढ़ाई जूनियर हाईस्कूल धामपुर से ही की. इनका परिवार पूरा परिवार अभी भी धामपुर में ही रहता है, जब कि ये अपनी बड़ी बहिन व भान्जों के साथ नैनीताल में रहते हैं. शादी न करने के सवाल पर किसी के द्वारा घोखा देने की बात कहकर वे सवाल टाल जाते हैं.
स्कूली शिक्षा कम होने के बावजूद ये हर स्तर की किताबों के बारे में पूरी जानकारी रहती है. उनके स्टोर में रखी कौन सी किताब किसके मतलब की है इन्हें ठीक से मालूम है. कबाड़ के साथ किताब खरीदते समय उनकी जानकारी इतनी अपडेट रहती है कि इन्हें पता होता है कौन सी किताब अभी कोर्स में चल रही है और कौन सी अब कोर्स से बाहर हो चुकी है. खरीदते समय ही किताबों को अलग छांटते हुए वे काम की किताबें एक तरफ कर शेष को रद्दी के भाव खरीद लेते हैं और जो किताब उन्हें जंचती है, यानि पाठक इन्हें खरीदेंगे उसे अलग कर उसका दाम तय करते हैं. अलग किताब अच्छी हालत में है तो छपे मूल्य की चौथाई कीमत में खुशी-खुशी खरीद लेते हैं और फिर यदि पुस्तक कटी-फटी हो तो उसमें स्वयं कवर चढ़ाकर बड़े यत्न से उसे संभाल कर रखते हैं. ग्राहकों को छपे मूल्य की आधी कीमत पर पुस्तक प्राप्त करने यह एक लोकप्रिय अड्डा बन चुका है. कबाड़ी ऐसे कि जो कबाड़ कोई भी कबाड़ी लेने से इन्कार कर दे, लेकिन मामू कबाड़ी की डिक्शनरी में किसी कबाड़ के लिए ना शब्द नहीं है. जान-पहचान ऐसी कि किसी भी कार्यालय का छोटे छोटे मुलाजिम से लेकर अधिकारी तक इनको बकायदा नाम से जानते हैं. इनकी लोकप्रियता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे कि माननीय भगतसिंह कोश्यारी जब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री थे तो अपने कार्यकर्ताओं तथा दर्जा राज्यमंत्री शान्ति मेहरा के साथ स्वयं इस स्टोर पर आये और उन्हें इस कार्य के लिए बधाई दी.
![Mamu Kabadi Nainital](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2020/01/Mamu-Kabadi.jpg)
इसे एक व्यवसाय से ज्यादा मिशन मानकर मामू कबाड़ी का किताबों का रेट भी कोई फिक्सड नहीं रहता. ग्राहक के पास यदि पूरे पैसे नहीं हैं, तो जो दे वही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं तथा गरीब घरों के बच्चों को निःशुल्क भी पुस्तकें वितरित करते हैं. गरीब बच्चों को निःशुल्क वितरित करने वाली पुस्तकों का कोना उनके स्टोर में अलग से बना हुआ है. प्रायः बच्चे स्वयं ही उनके स्टोर पर किताबें खरीदने आते हैं, वे बताते हैं कि मैं शक्ल से भांप लेता हूं कि कौन बच्चा पढ़ाई के ट्रैक से बाहर जा रहा है. वे कहते हैं कि ऐसे बच्चों को वे सीधे सीधे किताबें नहीं देते बल्कि उन्हें बोल देते हैं कि अपने पिता जी को साथ लाना, तब किताब दूंगा. जब पिता जी आते हैं तो उन्हें अकेले में बच्चे के भटकने से वाकिफ करा देते हैं. इस प्रकार बाल मनोविज्ञान को पढ़ने का भी गजब इल्म रखते हैं मामू कबाड़ी.
![Mamu Kabadi Nainital](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2020/01/Mamu-Kabadi-in-book-store--486x1024.jpg)
नर्सरी से लेकर विश्वविद्यालयों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकों का स्टोर बड़ी शिद्दत के साथ सलीकेवार रखा गया है मामू कबाड़ी के बुक स्टोर में. लगभग 10 हजार से अधिक पुस्तकों को क्रमवार इस तरह लगाया गया है कि आप उनसे बोलें मुझे अमुक विषय की पुस्तक चाहिये, वो चन्द सेकेंडों में ही आपके सामने हाजिर कर देंगे. जो किताब शहर के किसी बुक स्टोर पर उपलब्ध न हो तो छात्रों की अन्तिम आस रहती है – मामू कबाड़ी के बुक स्टोर पर. यह पूछने पर कि आप अंग्रेजी पढ़ लेते हैं? “बताते हैं कि अब थोड़ी थोड़ी बहुत सीख रहा हूं.” सत्र की समाप्ति पर किताब बेचने वाले तथा सत्र के प्रारम्भ में किताब तलाशने वाले युवाओं का तांता यहां सुबह-शाम लगा रहता है. दिन के समय वह प्रायः नगर के विभिन्न क्षेत्रों में कबाड़ की तलाश में अपना समय व्यतीत करते हैं.
इनकी दिनचर्या भी गजब की है. सुबह पौ फटते ही अपने बुक स्टोर पर तैनाती, किताबों का रखरखाव, आये ग्राहकों को निबटाना, 9 बजे बाद क्षेत्र भ्रमण और शाम में वही अपने बुक स्टोर पर तैनाती. इस जुनून के चलते उन्होंने शादी कर अपना घर बसाने की कभी सोचा ही नहीं, खाने को रिश्तेदार का चूल्हा ही अपना बना लिया. गर्मी हो, बरसात हो अथवा कंपकंपाती सर्दी इनका वही कुर्ता-पायजामा पहनावा है, ज्यादा से ज्यादा सर्दी ज्यादा पड़ने पर एक हाफ स्वेटर से काम चला लेते हैं.
![Mamu Kabadi Nainital](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2020/01/Mamu-Kabadi-book-store.jpg)
तल्लीताल नैनीताल के पिछाड़ी बाजार में जब आप हल्द्वानी रोड को उतरते हैं तो दाई ओर 10-15 दुकानों के बाद एक सीढ़ी दो मंजिले को जाती है, वहीं पर इन्होंने अपना बुक स्टोर बनाया है. न कोई स्टोर का नाम और न पब्लिसिटी के नाम पर कोई ताम-धाम फिर भी बुक स्टोर पर उनका हाथ खाली नहीं दिखता. बहुत कम लिखे-पढ़े होने के बावजूद किताबों के प्रति उनका यह लगाव वास्तव में काबिले तारीफ है.
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं
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1 Comments
Santosh
मामू कबाड़ी के वहा से हमने बहुत किताबे खरीदी है