अल्मोड़ा से छः किलोमीटर दूर कसारदेवी पिछले पांच दशकों से अधिक समय से दुनिया भर के यात्रियों-संगीतकारों-दार्शनिकों-अध्येताओं और साहित्यकारों को आकर्षित करता रहा है. 1960 के हिप्पी आंदोलन के दौरान इस जगह की ख्याति एक बार फैलना शुरू हुई तो उसके बाद से आज तक यहाँ विदेशी पर्यटकों की अच्छी खासी आवाजाही लगी हुई है.
यहाँ आकर लम्बे समय तक रहना विदेशी पर्यटकों को भाता है और उनमें से कई तो यहाँ महीनों तक किराए पर घर लेकर रहने को साल-दर-साल आया करते हैं. डी. एच. लॉरेंस से लेकर बॉब डिलन और उमा थर्मन से लेकर तिजियानो तेरजानी जैसे लोग यहाँ आने वालों की लिस्ट में शुमार हैं.
सूचना क्रान्ति के विस्तार के साथ ही पिछले कोई दस वर्षों में कसारदेवी के बारे में हमारे देश के यात्रियों की भी इस जगह में दिलचस्पी बढ़ी है जिसके मद्देनजर यहाँ एक के बाद एक अनेक होटल और रेस्तरां खुल गए हैं. यहाँ के एक मशहूर होटल मोहन्स के बारे में हमने एक आलेख पहले भी प्रकाशित किया था.
इसी कसारदेवी से बिनसर की तरफ जाने वाली सड़क पर जाएं तो डीनापानी के बिल्कुल नजदीक सड़क के ठीक नीचे एक बहुत छोटा सा रंगबिरंगा मकान आपकी निगाह खींचता है. पीले रंग के बैकग्राउंड वाले बोर्ड पर लाल रंग के पेंट की मदद से हाथ से लिखी इबारत इसका नाम बताती है – हिमालयन हिप्पीज फोक आर्ट गैलरी एंड कैफे.
इस इलाके में नियमित आते रहने के कारण मुझे पता है कि इसे बने हुए बहुत समय नहीं हुआ है. यह छोटा सा एक-डेढ़ कमरे का पहाड़ी मकान पहले किसी गौशाला जैसा दिखाई देता था. छोटे बच्चों के किसी खेल जैसा आकर्षक दिख रहे इस कैफे अंदर से देखने की इच्छा होती है.
भीतर चारु मेहरा से मुलाक़ात होती है – पूरा नाम है चारु चन्द्र मेहरा.
नजदीक के माट गाँव से वास्ता रखने वाली चारु इस कैफे-कम-गैलरी की मालकिन हैं. वे बताती हैं कि उन्होंने जीवन में बहुत सी बातें अपने दादाजी से सीखीं. विशेष रूप से यह कि विदेशियों के साथ किस तरह रहना होता है और कैसा व्यवहार करना होता है. चारु अपने दादाजी से बहुत प्रेरित हैं जिन्होंने घर में बहुत बड़ी लाइब्रेरी बनाई हुई है.
एक बार किसी ने चारु को बताया था कि उनके दादाजी की बॉब डिलन को व्यक्तिगत जान-पहचान थी और यह भी कि बॉब जब यहाँ आये थे तो उन्होंने अपनी पहली किताब उन्हीं के साथ बैठकर लिखी थी. उस दिन चारु को पहली बार पता चला कि अपने जिन दादाजी को वह केवल एक रिटायर्ड स्कूलटीचर समझती थी वे कितने बड़े आदमी हैं.
चारु खुद एक कलाकार हैं और उन्होंने हल्द्वानी से इंटर करने के बाद अल्मोड़ा के डिग्री कॉलेज से फाइन आर्ट्स में मास्टर्स की डिग्री ले रखी है. खाना बनाने का भी उन्हें शौक है तो उन्होंने तय किया कि क्यों न इन दोनों प्रतिभाओं का सही इस्तेमाल करते हुए कुछ रोजी-रोटी का प्रबंध भी हो और स्थानीय कला को प्रोत्साहन मिले. पांच महीने पहले चारु ने इस जगह को दो हजार रुपये प्रतिमाह के हिसाब से पांच साल की लीज पर ले रखा है. अपने दोस्तों से पैसा उधार लेकर उसने फिलहाल एक साल का किराया जमा करा रखा है.
पांच महीने बाद फिलहाल इस लड़की को कैफे को चलने के अलावा एक बड़ी लड़ाई गाँव में लड़नी पड़ रही है. उसे शिकायत है कि लोग उसके बारे में बहुत गंदी-गंदी बातें बोलने लगे हैं और उसके परिवार को समझा रहे हैं कि लड़की की शादी कर दो कहाँ होटल लाइन में, बर्तन धोने के काम में लगा रखा है. यह कहती हुई चारु बहुत उदास हो जाती हैं लेकिन आत्मविश्वास के साथ कहती हैं कि वे जानती हैं कि आगे आने वाली लड़कियों को उनके इस काम से बहुत ताकत मिलेगी क्योंकि पहली बार किसी काम को करने वाले को हमेशा ऐसा ही विरोध झेलना पड़ता है.
इस काम में उनकी मदद उनका एक दोस्त कर रहा है और चारु को लगता है कि अब लोगों की समझ में धीरे-धीरे आ रहा है कि यह लड़की पीछे हटने वाली नहीं है.
चारु के पापा हल्द्वानी में एक प्राइवेट जॉब करते हैं और घर में दादी और मम्मी के अलावा उसकी तीन बहनें और हैं. दादाजी यानी बिशन सिंह मेहरा अब इस दुनिया में नहीं हैं. वह सबसे बड़ी है और उसका मन है कि वह घर परिवार की जिम्मेदारी में अपना हिस्सा भी दे.
उसके छोटे से कैफे में स्थानीय लोगों के अलावा खुद सारे विदेशी ग्राहक भी आते हैं. इजराइली और कुमाऊनी खाना बनाने में विशेषज्ञता रखने वाली चारु के कैफे की सबसे लोकप्रिय रेसिपी है मडुवे का पैनकेक.
उनकी संगीत में भी दिलचस्पी है और वे खुद डफली बजा लेती हैं और ऑस्ट्रेलियाई वाद्य डिजेरीडू बजाना सीख रही हैं. कभी कभार उनके छोटे से परिसर में स्थानीय और विदेशी संगीतकारों के बाकायदा जैमिंग सेशन भी होते हैं.
अपने आसपास के पर्यावरण के लिए सचेत चारु प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग को भी बहुत महत्वपूर्ण मानती हैं और अपने मित्रों के साथ इस दिशा में चल रहे एक प्रोजेक्ट में नियमित हिस्सा ले रही हैं.
छोटे से इस कैफे में सब कुछ जुगाड़ से बनाया गया है. इसके लिए कोई भी औपचारिक फर्नीचर नहीं खरीदा गया है. आप चाहें तो बाहर बरामदे में बैठ जाएँ या भीतर के कमरे में. नीचे गद्दियों पर बैठने की व्यवस्था है, तो कहीं पर एकाध बेंचें हैं. दो-चार मोढ़े भी धरे हुए हैं और चारु ने कोशिश की है कि अपने इस छोटे से ठिकाने की जितनी सज्जा कर सके करे. बेहद छोटे से कमरे के भीतर चारु ने अपनी बनाई पेंटिंग्स की गैलरी लगा रखी है.
बाहर धरे गलीचे पर लेटी उसकी छोटी सी बिल्ली धूप में अलसा रही है और उसकी बगल में वैसा ही अलसाया बैठा उसका कुत्ता हमें ताक रहा है. इस छोटे से परिसर में जहां जहां हमारी निगाह जाती है, वहां चारु ने कुछ न कुछ पेंट किया हुआ है – कहीं बॉब मारले का स्केच तो कहीं बॉब डिलन की कोई पंक्ति! हमारे आर्डर देने के पांच मिनट में चारु हमें मडुवे का बना अतुल्य पैनकेक और माल्टे का जूस प्रस्तुत करती है.
अभी ये उसके काम के शुरुआती दिन हैं और उसे अपने पुरुष-प्रधान परिवेश से लड़ते हुए बहुत सारे सबक सीखने हैं लेकिन उसकी सफलता तय है. उसकी आँखों में भरा आत्मविश्वास भी मेरी इस दुआ पर मोहर लगाता है!
ऑल द बेस्ट हिमालयन हिप्पीज फोक आर्ट गैलरी एंड कैफे! ऑल द बेस्ट चारु!
इसे भी देखें: कसारदेवी का मोहन्स – हौसला हो तो पहाड़ में रहकर क्या नहीं हो सकता
-अशोक पाण्डे
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3 Comments
एक सफर
सर कितना टाइम हो गया ब्लाग को
Kafal Tree
सर ग्यारह मंथ्स हो गया साइट को
Govind Bisht
Can u provide charu’s number and details about her village