अल्मोड़े के पास एक गांव में अल्पबुद्धि और दीर्घबुद्धि नाम के दो दोस्त हुआ करते थे. अल्पबुद्धि, नाई और दीर्घबुद्धि, पंडित थे. दोनों निहायत आलसी और खदवे. दोनों का घर पत्नियों की मेहनत से चलता. पत्नियाँ दिन भर पड़ोसियों के घर चूल्हा चौका करती, चक्की पींसकर किसी तरह बच्चों और पतियों का पेट भरती.
(Folk Stories Uttarakhand)
दोनों दोस्त दिन भर भांग फूंकते. पत्नियों से लड़कर उनसे पैसे भी लेते. जब पत्नियां उनसे काम पर जाने को कहती तो कहते – जिसने दिया तन को, वही देगा कफन को. हाथी को मन-भर, चींटी को कन-भर जो देता है, वही जब देना होगा तो सांकल खटखटा के जगाएगा.
पर कभी किसी चोर ने तक उनके घर की सांकल नहीं खटखटाई.
दोनों के निक्कमे और खदवेपन से तंग आकर पत्नियों ने तय किया कि कुछ भी हो जाये जब तक वो काम धंधा नहीं शुरु करेंगे निक्कमों को भूखा ही रखा जायेगा. पत्नियाँ काम पर बच्चों को साथ ले जाती वहीं ख़ुद भी खा आती और बच्चों को भी खिला लाती. दोनों दोस्त लड़-झगड़ पर भी कुछ न ले सके.
चार दिन भूखे रहने के बाद दोनों की अक्ल ठिकाने आई और सोचा घर पर भूखे मरने से अच्छा बाहर निकल चलते हैं. बासी, झूठा कुछ तो मिल ही जायेगा. दोनों दोस्त मिलकर बड़े शहर को चले. शहर जाते ही देखा एक जगह ब्राह्मणभोज लगा था. अल्पबुद्धि ने दीर्घबुद्धि से कहा- देखो दोस्त, आज तो दोस्ती सफ़ल हो गयी. जाकर माल-पुवा मेरे लिये भी लेते आना.
दीर्घबुद्धि गया और छककर माल-पुवा, खीर ठूंस आया और कुछ माल-पुवा दुप्पटे में बाँध लाया. लौटते हुए उसका ज़ी ललचाया और दुप्पटे में बंधा पाल पुवा ख़ुद ही खा गया. पंडित को देख अल्पबुद्धि बोला – यार, भूख से मरा जा रहा हूँ, जल्दी से माल पुवा खिला दे.
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पंडित बोला – अरे यार, बड़े ही कंजूस के यहां भोज था, कुछ न मिला खाने को. लौटते हुए यह फूल पत्ती संग दो बताशे दिये, लो आशीष संग एक बतासा तुम भी ले लो. भगवान भला करें.
अल्पबुद्धि बोला – भगवान तो जब करेंगे तब की बात लेकिन तेरा बताशा तू ही रख. माल-पुवा खाककर मुझे बताशा दिखाता है, आगे से तुम अपने रस्ते मैं अपने.
यह कहकर दोनों दोस्तों अपने-अपने रास्ते हो लिये. अल्पबुद्धि नगर के उत्तरी सिरे को गया. वहां शहर के एक सेठ के बेटा किसी मसाण से बहुत परेशान था. जब भी सोता तो मसाण उसकी चुटिया पकड़कर उठा देता. रात-भर न सोने से वह दिन पर दिन अस्वस्थ रहने लगा. हालत यह हो गयी की वह अब मरा-सा हो चला था.
सेठ ने शहर भर में ढिंढोरा पिटवा रखा था – जो उसके बेटे के मसाण को भगाएगा, उसे पांच सौ अशर्फियां इनाम देगा.
ढिंढोरा, अल्पबुद्धि के कानों तक भी पहुंचा. वह सेठ के पास जाकर बोला- सेठ मसाण को मैं भगा दूंगा, पर यह कृष्ण पक्ष है जो मसाणों का पक्ष है, दोगुने तंत्र-मंत्र लगते हैं, इस पक्ष में भगाऊंगा तो हजार अशर्फियां लगेंगी.
सेठ बोला- भाई शुक्ल पक्ष का इंतजार न होगा, तुम हजार अशर्फियां ले लो और मसाण भगा दो.
रात को अल्पबुद्धि सेठ के बेटे के सिरहाने बैठ गया. बोला – तुम चिंता न करो, गहरी नींद में सो जाओ, मसाण जब आयेगा तो उसे मैं उसे भगा दूंगा. पर यह बता दो मसाण तुम्हें सताता कैसे है?
सेठ का बेटा बोला – मसाण रात में उसकी चुटिया पकड़कर सताता है. अल्पबुद्धि ने उसके सिर के बाल साफ़कर दिये और दोनों निश्चिंत होकर सो गये. रात को मसाण आया.
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उसने सेठ के बेटे की चुटिया पकड़नी चाही मगर उसके सिर पर कुछ था ही नहीं. मसाण बोला- आज न जाने सेठ का बेटा कहां सोया है. मसाण की आवाज सुनकर अल्पबुद्धि जाग गया और बोला – उसे तो एक मसाण ने सताकर शमसान पहुंचा दिया, उसी मसाण को मारने के लिये गुरु गोरखनाथ ने मुझे भेजा है. मैं उसी का इंतजार कर रहा हूं. यह सुनकर मसाण डर गया और वहां से खिसक गया.
अगले दिन सेठ का बेटा खुश होकर उठा और सेठ ने अल्पबुद्धि को हजार अशर्फियां दी. अल्पबुद्धि अपने घर लौट आया और पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन जीने लगा, वहीं दीर्घबुद्धि नगर में ही भीख मांगता रहा.
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