Folk Stories of Uttarakhand

काफल तोड़ने वाले लड़के और बूढी चुड़ैल की लोककथा

एक इन्दरू मोल्या था. उसके माँ बाप नहीं थे. वह गायों के साथ रहता था. एक दिन वह गाय चरा…

3 years ago

दो सैंणियों वाले कव्वे की रीस: उत्तराखंडी लोककथा

एक कव्वा था. उसकी दो सैंणियाँ थीं. एक नई जवान देखणंचाणं थी, दूसरी उतनी सुन्दर तो नहीं थी. पर होशियार…

3 years ago

एक तगड़े शर्मीले डोटियाल की कथा

नेपाल के डोटी गाँव से आया एक प्यारा-सा तगड़ा शरमीला किशोर ग्रामीण सोर घाटी में मजदूरी करता था. बोझा वह…

3 years ago

लोककथा : शेरू और श्याम

सावित्री ने आज घर पर ही रहने का फैसला किया. थकाऊ खेती के काम से आज उसे फुरसत मिली थी.…

3 years ago

लोककथा : ह्यूंद की खातिर

पुरानी बात है जब दो वक्त की रोटी जुटाना ही बड़ी बात थी. उन्नत बीज और सही जानकारी न होने…

3 years ago

लोककथा : दुबली का भूत

सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में स्थायी निवास के साथ-साथ प्रायः एक अस्थाई निवास बनाने का चलन है, जिसे छानी या खेड़ा…

3 years ago

जिंदे को लात, मरे को भात: एक उत्तराखंडी लोककथा

एक गांव में एक बहुत बूढ़ा अपने छोटे लड़के, बहू और अपनी औरत के साथ रहता था. उसके दो लड़के…

4 years ago

अल्मोड़े के दो खदवे दोस्त और चुटिया खींचने वाले मसाण की लोककथा

अल्मोड़े के पास एक गांव में अल्पबुद्धि और दीर्घबुद्धि नाम के दो दोस्त हुआ करते थे. अल्पबुद्धि, नाई और दीर्घबुद्धि,…

4 years ago

चट्टान से गिरकर अकाल मृत्यु को प्राप्त पहाड़ी घसियारिनों को समर्पित लोकगाथा ‘देवा’

बहुत सुन्दर गाँव था. खूब गधेरा पानी. अपनी बंजाणी घना जंगल और थी उसी गाँव में एक सुन्दर निर्मल झरने…

4 years ago

तिगमुल्या : सूरज से अपनी रोटी के लिये लड़ने वाले भोले पहाड़ी बालक की लोककथा

एक छोटा बालक था. उसकी दादी उसे रोज एक रोटी उसके ज्योज्याग (कमरबन्द) में बांधकर उसे भेड़ चराने भेजती थी.…

4 years ago