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सबसे खतरनाक है कामयाब लोगों का अलगाववाद

उन्हें इस देश की सड़कें नापसंद हैं. वो ज्यादातर सफर हवाई जहाज से करते हैं और हो सके तो हवाई जहाज से सिटी सेंटर तक आने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तमाल करते हैं. भारत में दुनिया के लगभग सारे लक्जरी ब्रांड मिलने लगे हैं लेकिन वो शॉपिंग के लिए लंदन, पेरिस और न्यूयॉर्क से लेकर सिंगापुर, दुबई तक का सफर करते हैं. दुनिया के काफी लोग सैरसपाटे के लिए भारत आते हैं पर वो अपनी हर छुट्टी ससेल्स, दक्षिण अफ्रीका, बहामास, मोनैको, बाली या अलास्का में बिताना चाहते हैं. भारत बेशक यूरोप और अमेरिका के गरीब और मध्यवर्गीय लोगों के लिए इलाज कराने का बड़ा ठिकाना बन गया है लेकिन वो इलाज के लिए यूरोप या अमेरिका ही जाते हैं. उनके बच्चे या तो विदेश में पढ़ते हैं या भारत में रहकर ही स्कूली सर्टिफिकेट किसी विदेशी स्कूल बोर्ड का ही लेते हैं ताकि हायर एजुकेशन के लिए विदेश जाने में दिक्कत न हो. उनकी सुविधा के लिए अब देश में ही कई इंटरनेशनल स्कूल खुल गए हैं जो विदेशी स्कूल बोर्ड का एक्जाम लेकर वहीं का सर्टिफिकेट देते हैँ. वो सिर्फ अपने नौकर चाकर से भारतीय भाषाओं में बात करते हैं. उनके घर विदेशों में भी हैं, जहां वो अक्सर छुट्टियां बिताने के दौरान जाते हैं. वो विदेशी पहनते हैं, विदेशी शराब पीते हैं, विदेशी ख्वाब जीते हैं.

जी हां, मिलिए भारतीय कामयाबी के नए सितारों से. ये ग्लोबल इंडियन हैं. ये भारतीय हैं क्योंकि इनकी रगों में भारतीय खून है, वरना इनकी जिंदगी में अब भारत नाम मात्र का ही बचा है. खून में भारत है इसलिए भारत इनकी मजबूरी है. कभी कभार ये देशभक्त भी बन जाते हैं, खासकर विदेशों में होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान, जहां आप इन्हें भारतीय झंडा लहराते देख सकते हैं. ऐसे और ऐसे ही कुछ चुने हुए मौकों पर वो अपनी देशभक्ति दिखा सकते हैं. भारत से उन्हें प्यार नहीं है. देश का उनके लिए खास मतलब ही नहीं है. उनमें से कई ने खुद विदेशी नागरिकता ले ली है. कई के बाल-बच्चों ने भी ऐसा ही किया है. भारत के लिए वो दुलारे हैं इसलिए उन्हें भारत की भी नागरिकता मिली है.

देशप्रेम हो या न हो लेकिन भारत से उन्हें मतलब जरूर है. भारत के संसाधनों से उन्हें प्यार है. भारत से वो अपना धन अर्जित करते हैं. भारत के कायदे कानून उनके लिए झुकने से परहेज नहीं करते हैं. भारत की राजनीति से लेकर नौकरशाही उनके कदमों में बिछी होती है. देश के संसाधनों का ये सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं लेकिन देश का इनके लिए कोई मतलब नहीं है. किसी विदेशी एयरपोर्ट पर भारतीय या एशियाई होने के कारण अपमानित होने पर इनका देशप्रेम जगता है. इसके बाद वो नस्लभेद की शिकायत करते हैँ. देश के करोड़ों लोगों के हित का इनके लिए कोई मतलब नहीं है. पुराना इलीट भी पैसे कमाता था लेकिन साथ ही धर्मशालाएं बनवाता था, मंदिर बनवाता था, प्याऊ बनवाता था, स्कूल चलाता था. नया इलीट भूलकर भी ये सब नहीं करता. देश को लेकर भावुक होना उसकी फितरत नहीं है.

ये लोग भारत से आजाद हैं. ये कामयाब लोगों की आजादी है. भारतीय इलीट का एक छोटा सा हिस्सा ही इस सुपर अमीर क्लब का सदस्य है. इसके अलावा भी अमीरों और धनाढ्य लोगों की एक जमात है जिसका देश से रिश्ता लगातार कमजोर हो रहा है. इस तबके के जीवन का एकमात्र लक्ष्य सुपर अमीरों के क्लब में शामिल होना है. ये उस क्लब के संभावित सदस्य हैं. सुपर अमीर क्लब के सदस्य और वेटिंग लिस्ट में शामिल लोगों से मिलकर ही भारत के कामयाब लोगों की जमात बनती है. आप दक्षिण दिल्ली के सैनिक फॉर्म को इस जमात की मॉडल कॉलोनी मान सकते हैं. दिल्ली के तेजी से अमीर हुए लोगों ने इस कॉलोनी को बसाया है. और जो इलीट कॉलोनियां गैरकानूनी नहीं हैं वहां भी सुरक्षा के बंदोबस्त तो लोगों ने खुद ही कर लिए हैं. ज्यादातर कॉलोनियों में एंट्री और एक्जिट गेट के जरिए होती है, जहां प्राइवेट गार्ड तैनात होते हैं. घरों के गेट पर भी गार्ड होते हैं. क्लोज सर्किट टीवी कैमरा, और वीडिया कॉल बेल और तरह-तरह के अलार्म अब आम हैं. सुरक्षा उपकरणों का तेजी से बढ़ता बाजार बता रहा है कि अपनी सुरक्षा को अब समर्थ लोग सरकार की जिम्मेदारी मानकर निश्चिंत नहीं होते.

इस समुदाय का बहुत कुछ बाकी देश से अलग है. इनके मनोरंजन का अंदाज अलग है. इनकी पार्टियों का ढंग अलग है. जीवन का तनाव कम करने के लिए ये रेव पार्टी करते हैं. उसके किस्से ऊंची चारदीवारों के बाहर कभी छनकर आते भी हैं तो आम लोग – बड़े लोग-बड़ी बातें-कहकर नजरें फेर लेते हैं. कामयाब लोगों के इस अलगाववाद से देश को कौन बचाएगा?


-दिलीप मंडल

 

इंडिया टुडे के पूर्व एडिटर, दिलीप देश के प्रमुख पत्रकार हैं.  वह कुछ मीडिया घरानों का नेतृत्व कर चुके हैं और दलितों के मुद्दों के जानकार रहे हैं.  मिडिया पर उनके द्वारा कुछ पुस्तकें भी लिखी गयी हैं. वह एक दशक से rejectmaal.blogspot.com ब्लॉग चला रहे हैं.

 

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  • सोलह आने सही! .. और मुझे तो लगता है इनकी जमात बढ़ती ही जाएगी। आपने सवाल किया इनसे देश को कौन बचाएगा, जवाब है नफरत! इन जैसों के तौर-तरीकों को घिनौना मानना, गंदा समझकर नफरत करना और अपने बच्चों को प्रशिक्षित करना है कि वे भी इसे हर कीमत पर गंदा और घिनौना ही मानेंं।

  • सारे elites को एक रंग में एक ही ब्रुश से रंगना सही नही। जरूरी नही सब रेव पार्टीज ही करते हों या पश्चिम परस्त हों।

  • सारे elites को एक रंग में एक ही ब्रुश से रंगना सही नही। जरूरी नही सब रेव पार्टीज ही करते हों या पश्चिम परस्त हों।

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