कर्नल अजय कोठियाल ने आज आखिर सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर ही लिया. 2018 से ही सक्रिय राजनीति में उनके प्रवेश की चर्चा जोरों पर थी. पिछले लोकसभा चुनावों में उनके और भाजपा के बीच की नजदीकियां इस कदर बड़ गयी थी कि उन्हें पौड़ी लोकसभा सीट से भाजपा का उम्मीदवार माना जा रहा था. पर भाजपा ने टिकट अपने पुराने नेता तीरथ सिंह रावत को ही दिया.
(Colonel Ajay Kothiyal join AAP)
52 बरस के कर्नल अजय कोठियाल भारतीय राजनीति की शब्दावली के अनुसार एक युवा नेता हैं. जिसपर दाव आम आदमी पार्टी (आप) खेल चुकी है. दरसल दाव आम आदमी पार्टी और कर्नल साहब दोनों के द्वारा ही खेला गया है. जहां आप को 2022 के चुनाव के लिये एक चेहरा मिला है वहीं कर्नल साहब के लिये पार्टी में भीतरघातियों की संख्या नहीं के बराबर रहेगी.
जो जगह भाजपा और कांग्रेस के भीरत कर्नल अजय कोठियाल को बनाने में वर्षों लगते वह आम आदमी पार्टी में बनी बनाई मिलेगी. करीब 3-4 महीनों की लम्बी बातचीत के दौर के बाद कर्नल अजय कोठियाल आम आदमी पार्टी में शामिल हुये हैं. संभव है कि वह आम आदमी पार्टी की ओर से उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी हों.
(Colonel Ajay Kothiyal join AAP)
कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाकर आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में कई मामलों में भाजपा और कांग्रेस से बढ़त ले लेगी. मसलन फेस पॉलिटिक्स के इस दौर में भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास कोई चेहरा नहीं है. कर्नल अजय कोठियाल की छवि के सामने ऐसे ही किसी का भी चेहरा काम न आएगा. कर्नल साहब के नेतृत्व में राज्य भर में गद्दार का तमगा झेल रही आम आदमी पार्टी पर यह दाग लगाना इतना आसान नहीं होगा. राज्य में सेना के लोगों की जो आबादी है यदि उसे कर्नल साहब अपनी ओर करने में सफ़ल रहे तो भाजपा और कांग्रेस के लिये बड़ी मुश्किल हो जायेगी.
कांग्रेस और भाजपा के 20 सालों के अनुभव राज्य की जनता के लिये बेहद खराब रहे हैं. कर्नल अजय कोठियाल सोशियल मिडिया में चल रही उनकी हवा का 10 प्रतिशत भी जमीन पर उतार पाये तो राज्य की जनता आम आदमी पार्टी को तीसरे विकल्प के रूप में जरुर देखेगी. हालांकि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं है लेकिन कर्नल अजय कोठियाल को अपने पाले में कर आम आदमी पार्टी ने राजनैतिक तापमान में वृद्धि जो जरुर की है.
(Colonel Ajay Kothiyal join AAP)
–देहरादून से अजय नेगी
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समाज मे हर वह व्यक्ति या समूह जो सामाजिक मुद्दों के प्रति जिम्मेदार होने का दावा करता है , तब चाहे वह कोई राजनैतिक दल हो अथवा मीडिया प्लेटफॉर्म , यदि एकतरफा संवाद को ही सुविधाजनक मानता है तो वह कभी भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकता । यह स्थिति फासिज्म के बहुत निकट है। उदाहरणार्थ आपके प्लेटफॉर्म को ही ले लें । व्हाट्सएप्प पर ही उपलब्ध इस पत्रिका का अधिकतम संवाद एकतरफा ही है अतः मेरा मानना है कि यह बिल्कुल भी लोकतांत्रिक नहीं है। उदाहरणार्थ आपके इसी कर्नल कोठियाल संबंधी आर्टिकल को ले लें। अब उनके बारे में जो भी आप परोस रहे हैं उसे सच मान लेना आपके प्रसंशकों की बाध्यता है। यही प्रैक्टिस बड़े स्तर पर बड़े राजनैतिक दल कर रहे हैं । वे भी मीडिया को मैनेज कर के मन माफिक नैरेटिव बनाने का प्रयास करते हैं। तो क्यूँ न यह मान लिया जाय कि कर्नल कोठियाल के बहाने काफल ट्री भी राजनैतिक लोगों के हाथों में खेल रहा है।