कुमाऊँ के पूर्वी क्षेत्र के जिले चम्पावत में पूजी जाने वाली देवी है, चम्पवाती देवी. वे चम्पावत के आम जन के साथ ही कत्यूरी व चन्द शासकों की कुलदेवी भी हैं. इनका पूजास्थल चन्द शासकों द्वारा स्थापित बालेश्वर मंदिर के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में है. इस मंदिर में देवी की प्रतिमा का मुंह पूर्व की ओर है. झागुला पहने देवी के हाथों में कटार व त्रिशूल है. देवी की प्रतिमा के पास ही उनका वाहन सिंह भी है.
कहा जाता है कि कभी चम्पावत के शाह लोग अपनी कुलदेवी के रूप में स्वयं इन्हें पूजा करते थे. फिलहाल देवी की पूजा-अर्चना का काम बालेश्वर मंदिर के पुजारी द्वारा ही संपन्न किया जाता है.
नन्दाष्टमी के दिन होने वाली पूजा में देवी को कुमाऊनी वेशभूषा, घाघरा-पिछौड़ा व आभूषणों, से अलंकृत किया जाता है. इस मौके पर देवी को सुहाग की सामग्री भी अर्पित की जाती है. बताया जाता है कि कभी इस मौके पर धार्मिक अनुष्ठान के बाद देवी को डोले पर बिठाकर गाजे-बाजे के साथ शोभा यात्रा भी निकाली जाती थी. यह शोभायात्रा नागनाथ मंदिर तक पहुंचती थी और पुनः देवी मंदिर पर आकर ही संपन्न हुआ करती थी. वक़्त बीतने के साथ अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है.
इष्टदेवी के रूप में चम्पावती देवी की मान्यता चम्पावत के अलावा काली नदी के तटवर्ती नेपाली क्षेत्रों में भी है. इस सम्बन्ध में मान्यता है कि चम्पावती मूलतः विदिशा के राजा नागराजा की बेटी थी. जिसने चम्पावत के निकट कूर्म शिखर पर तपस्या की थी.
चम्पावत में देवी का मंदिर बालेश्वर मंदिर समूह के अन्दर है. मंदिर के मणि भाग में देवी को हाथ में कमलनाल धारण किये हुए असनास्थ मुद्रा में उत्कीर्ण किया गया है. इसके अलावा देवी को दूनाकोट के न्याय चबूतरे पर, राजबुंगा के पश्चिमी द्वार पर तथा चौकुनी के मंदिरों की दीवारों पर भी उकेरा गया है.
चम्पावती महान तपस्विनी थीं. चम्पावत का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है.
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