कुछ फिल्में दर्शकों को आज भी बेहद रोमांचित करती हैं. इस तथ्य पर गहनता से विचार करें कि, ऐसा क्यों होता है. क्यों यह फिल्म सोंधी सी लगती है? एक मोहल्ले की कॉमन सी प्रेम-कथा, किन तत्त्वों को लेकर इतनी मोहक हो जाती है.
इसका जवाब बड़ा आसान सा है. हाईवे और फ्लाई ओवर के इस युग में पगडंडियों और मेढ़ों के रास्तों पर चलना, ज्यादा आकर्षक लगता है. उन रास्तों से गुजरना, स्वर्गिक- अनुभव जैसा महसूस होता है. वह वातावरण अब दुष्प्राप्य हो चला है. हमेशा चकाचौंध ही आकर्षित नहीं करती, कभी-कभी सरलता भी मोहती है. पर्यावरण के प्रति प्रेम जैसा. नेचुरल होना बहुत बड़ी नियामत है.
चमेली की शादी (Chameli Ki Shaadi) का कथानक सीधा, सरल और समाज से सीधा उठाया गया मुद्दा सा लगता है. वही चिठ्ठी-पत्री, बच्चों के मार्फत संदेशों का आदान-प्रदान. लगता है, कथा हमारे ही आस-पास के ही किसी मोहल्ले की है, लेकिन इसके बावजूद फिल्म रीति-रिवाज और जातीयता के बंधनों से मुक्ति का गहरा संदेश दे जाती है.
यह फिल्म उदारीकरण से पाँच बरस पहले रिलीज हुई थी. मोहल्ले की एक प्रेम कथा, जहाँ प्रेम को ‘लपड़-झपड़’ कहकर पुकारा जाता हो, उस पर दोनों की बिरादरी अलग. उस दौर में यह नितांत निजी मामला होते हुए भी पूरी बिरादरी का मुद्दा बनते देर नहीं लगती थी. युगल, एक साथ कहीं किसी को दिखे नहीं कि, खबर को दावाग्नि बनते देर नहीं लगती थी. बिरादरी की नाक कटने की नौबत आ जाती थी. बिरादरी से बाहर जाने की सोचना, तब बहुत बड़ा विद्रोह माना जाता था. फिल्म यह संदेश दे जाती है कि, प्रेम वह भाव है, जो बिना कैलकुलेशन के अपने आप उपजता है. इसके लिए कोई विशेष आयोजन नहीं करना पड़ता. आज के युग से उस दौर की तुलना करें, तो न डेटिंग का खटखटा, न कोर्टशिप. न किसी तरह का सोफिस्टिकेशन. जो कुछ है, अपने मौलिक स्वरूप में है, नितांत ऋजुरेखीय और मौलिक.
चरणदास (अनिल कपूर) कुछ भी नहीं कमाता, इसको लेकर भी चमेली (अमृता सिंह) को कोई दुविधा नहीं रहती. जब उसकी सहेली चिट्ठी में कम-से- कम दो हजार रुपये कमाने की कठोर शर्त रखती है, तो चमेली के मन में चरण दास के प्रति सहज करुणा उत्पन्न हो उठती है. वह प्रेम में कोई शर्त नहीं रखना चाहती. होनी भी नहीं चाहिए. उसका प्रेम सच्चा है, निश्छल है, जिसमें कोई प्री-कंडीशन नहीं दिखाई पड़ती.
जहाँ चरणदास पहली मुलाकात से पहले ही, सीधे शादी के निष्कर्ष तक जा पहुँचता है, तो चमेली भी कम नहीं. वह पहली ही चिट्ठी में उसे ‘मेरे प्यारे चरणदास’ संबोधन कहती है. दोनों को चिट्ठी लिखने का तजुर्बा नहीं है. ऊपर से दोनों का पढ़ाई- लिखाई में हाथ बुरी तरह तंग है. इसीलिए खतो-खिताबत के लिए उन्होंने मार्गदर्शक ढूँढें हुए हैं. चरणदास पढ़े-लिखे वकील (अमजद खान) से चिट्ठी लिखवाता है. बकौल चरणदास, “भैया, आप तो जानते ही हैं, में नकल मार के पास हुआ हूँ.”
चमेली भी अपनी अनुभवी सखी अनीता से डिक्टेशन लेती है, हालांकि अनीता की कड़ी शर्तों को वह अपने लेखन में काफी हद तक शिथिल करती चली जाती है.
प्रेम सरल है, सहज है. उसमें कोई शर्तें नहीं हो सकती. उसमें न इस युग की फ्यूचर सेंट्रिक उहापोह है, न कैरियर केंद्रित दबाव. हाँ, प्रेम में एक खास तत्व की सबसे बड़ी दरकार, हर युग मे रहती है और वह है साहस. वह दोनों में भरपूर मात्रा में मौजूद दिखाई पड़ता है. बंदिशें लगाने के बाद, चमेली तो कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाती है. संक्षेप में, कस्बाई प्रेम के सारे लक्षण, फिल्म में बड़े ही दिलचस्प अंदाज में दिखाए गए हैं.
फिल्म का शीर्षक गीत, ‘चरणदास एक लड़का था.. आशिक था, पर कड़का था.. चमेली थी, कल्लूलाला की शहजादी..’ मूल कथा-संकेत जता जाता है.
मस्तराम पहलवान (ओम प्रकाश) के अखाड़े का दृश्य है. उस्ताद, चरण दास से कहते हैं, “ओ, आ गए.”
“जी उस्ताद.”
उस्ताद, जमीन पर बैठे हुए छोकरे पहलवानों से कहता है, “मेरे पठ्ठों, चरणदास आज से हमारे अखाड़े का पठ्ठा हुआ.”
सांस्कृतिक गौरव-गाथा गाते हुए उस्ताद उन्हें याद दिलाता है, “हमारे यहाँ हनुमान और भीम जैसे योद्धा हुए.”
इस स्तर की उपलब्धि हासिल करने के लिए वह उन्हें कठोर जीवन व्रत अपनाने की सलाह देता है– चालीस बरस तक शादी के बारे में सोचना भी नहीं. वह उन्हें पहलवान बनने के लिए कई तरह के निषेध-परहेज बताता है. पहले ही दिन चरणदास जोर-आजमाइश और पैंतरे दिखाते हुए, एक मामूली से पहलवान को हरा देता है, जिससे खुश होकर उस्ताद उसे सवा रुपया ईनाम देता है. ऋषिकेश मुखर्जी की कालजयी फिल्म: किसी से न कहना
घर पर चरणदास की भाभी, उसके भैया से कल्लूमल की दुकान से एक बोरी कोयला लाने को कहती है. भैया भजन दास(सत्येन कप्पू) को कल्लूमल से सख्त नफरत है. वह उनसे दीगर जात का होकर भी, बकौल भजनदास “ब्लैक में पैसे कमाकर हमारे बराबर होना चाहता है.”
तभी चरणदास घर पहुँचता है और खुश होकर भाभी को अपने सवा रुपये ईनाम जीतने की खुशखबरी सुनाता है. भाभी छूटते ही कहती है, “आग लगे तेरे ईनाम को. ना काम, ना धाम.” वह उसे कोयला लाने को कहती हैं. चरणदास आत्ममुग्ध होकर कहता है, “भाभी, इस बार नौचंदी मेले के दंगल में देखना. क्या माल कमाकर आता हूँ.”
“कोई ढंग का काम हो, तो करुँ. मैं मोहल्ले का लीडर हूँ.” भाभी के ताने देने पर, ‘देखता हूँ, कौन धाँधली करता है’ कहकर वह कंट्रोल रेट से कोयला खरीदने को निकल पड़ता है.
वह कल्लूमल के कोयला डिपो के बाहर खड़ा होकर उसे खरी-खोटी सुनाता है, “ब्लैक का धंधा करते हो, वो भी मोहल्ले वालों के साथ. कहाँ छुपे हो.”
तभी उसे बेंच के नीचे से एक हाथ दिखाई देता है. वह उसे लाला कल्लूमल का हाथ समझकर कसकर पकड़ लेता है. कल्लू मल की लड़की चमेली को देखते ही, चरनदास को मूर्च्छा छा जाती है. वह उसके सौंदर्य पर रीझ जाता है. मस्तराम पहलवान के सारे व्रत-निषेध, वह दरकिनार कर बैठता है. बातचीत का सूत्र पकड़ते हुए उसे कहता है, “आज सचमुच चमेली लग रही हो.”
फिर अपने जिम्मेदार होने का बोध कराते हुए कहता है, “मैंने हायर सेकेंडरी पास की है.”
वह उसे कोई मौका दिए बगैर यथार्थ बोध करा देती है, “मालूम है. थर्ड डिविजन से.”
वह भी उसके जख्म कुरेदने मे पीछे नहीं रहता, “फेल होने से तो अच्छा है.”
चमेली इस बात का बुरा मान जाती है. तुनककर कहती है, “मैं फेल होती हूँ, तो तुझे क्या?”
चरणदास, फौरन गलती भाँप लेता है. वह खुद को उसके समकक्ष लेवल पर लाते हुए कहता है, “मैं भी आठवीं में एक बार फेल हुआ हूँ.” यह सुनकर चमेली खुश हो जाती है. वह चहककर कहती है, “मैं चार बार. अभी भी आठवीं में हूँ.”
इस कन्वर्सेशन की खूबसूरती, महज इसका सहज होना है. भोलेपन के साथ-साथ, वचन-वक्रता भी.
तभी लाला कल्लूमल आ पहुँचता है. कंट्रोल रेट, बाजार भाव को लेकर दोनों में अच्छी- खासी बहस होती है, लेकिन लाला कल्लूमल बाजार भाव से एक पैसा नीचे, कोयला बेचने को किसी तरह राजी नहीं होता.
चरणदास, जैसे ही घर पहुँचता है, वह भाभी को अपनी नाकामी बताना चाहता है, लेकिन भाभी उसे यह कहकर चौंका देती है कि, कोयले की बोरी तो कब की पहुँच गई.
चरण दास को इस नतीजे पर पहुँचने में जरा भी देर नहीं लगती कि, निश्चित तौर पर यह कारनामा चमेली का किया हुआ है.
वह पिता के निर्णय के विरुद्ध, चरण दास के घर पर कोयले की बोरी पहुँचा जाती है. मजे की बात यह है कि, आज के संदर्भ में तुलना करें, तो कहाँ उपहार दिवस, टेडी दिवस और न जाने कौन-कौन से सप्ताह भर के दिवसों का आयोजन बड़े धूमधाम से होता है. इसके बरक्स कोयले की बोरी का उपहार, अपने आप में एक अनूठा उपहार है, जो उस प्रेम की गहराई को जताने में बड़ी आसानी से मदद करता है. तो चरण दास की अखाड़ा-प्रतिज्ञा, सब रफूचक्कर हो जाती है.
वह वकील भैया (अमजद खान) का मार्गदर्शन लेने के लिए उनके चेंबर में आ टपकता है. वह अपनी ज्वलंत समस्या बताता है, “हर समय मन में उसकी तस्वीर नाचती रहती है…” ‘आठवीं में पढ़ती है’ के सवाल पर वकील भैया कहते हैं, “नाबालिग लड़की से शादी करके जेल जाएगा तू.”
चरणदास बताता है, “सारी मुलाकाते ख्यालों में होती है, हकीकत में नहीं.”
वकील भैया कहते हैं, “यानी मामला जैसा पहले दिन था, आज भी वैसा ही है.”
वे प्रेम की कठिनाइयों का ब्यौरा बताते हुए उसे कहते हैं, “प्रेम का मतलब है, ओखली में सिर देना.”
इस पर चरणदास बड़े कॉन्फिडेंस के साथ कहता है, “मैं सब कुछ झेल लूँगा.”
‘इश्क कब से चल रहा है’ के जवाब में वह तफ्सील पेश करता है, “सात दिन नौ घंटे.”
वकील भैया उसे मशवरा देते हैं, फौरन प्रेम पत्र लिख डालो. चरणदास अपनी लाचारी जता देता है, “भैया, आप तो जानते ही हैं, किसी तरह नकल कर के पास हुआ हूँ.”
तो भैया समाधान देते हुए कहते हैं, “चिंता मत करो. टाइप करेंगे. तुम भी क्या याद रखोगे, किस उस्ताद से पाला पड़ा था.”
चिट्ठी लिखने के बाद, वे उसे मजमून बनाते हैं और उस पर प्रशंसा सुनना चाहते हैं, “कैसी है. ठीक है.”
चरणदास कहता है, “चिट्ठी तो बहुत अच्छी है, लेकिन छोटी है.”
दरअसल वह मन में उमड़ रहे, सारे- के-सारे भाव, चमेली को जता देना चाहता है. फिर जोश में आकर कहता है, “इस पर दस्तखत कर दूँ.”
भैया अपनी ऐक्सपर्ट राय देते हुए कहते हैं, “बिल्कुल नहीं! प्रेमी को कभी, कानून के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.”
उधर चमेली इस चिट्ठी को अपनी सहेली से पढ़वाती है. सहेली व्यावहारिक सवाल खड़ा करती है, “करता क्या है.” चमेली बड़े आराम से कहती है, “कसरत. और कुछ नहीं करता.”
अनीता उसे सावधान करते हुए कहती है, “अहमियत की बात यह है कि, क्या कमाता है, कितना कमाता है, यह जानना जरूरी लगता है.”
वह चमेली से चिट्ठी लिखवाती है. मजमून, चमेली को सूखा-सूखा लगता है. चमेली के एतराज जताने पर अनीता कहती है, “घर चलाने के लिए कम-से-कम दो हजार की
आमदनी होनी जरूरी है.” तो इस पर चमेली सवाल खड़ा करती है, “कहाँ से कमाएगा. वो तो चिट्ठी पढ़ते ही बेहोश हो जाएगा.”
चिट्ठी लिखते समय वह दो हजार की रकम को बहुत ज्यादा आँकते हुए उसे पाँच सौ कर देती है. अनीता के ऐतराज जताने पर फिर उसे सात सौ कर देती है.
उधर चिट्ठी मिलते ही, हरीश भैया त्वरित टिप्पणी करते हैं, “पहले ही दांव में चारों खाने चित्त कर दिया उसने.”
उसके काम-धाम और आमदनी के जरिए पर सवाल उठाया है, तो इस पर चरणदास कहता है, “कौन देगा मुझे सात सौ रुपये.”
हरीश भैया कहते हैं, “धंधा शुरू करने में जमा पूँजी लगती है. चंबल की डाकू पार्टी में किसी इन्वेस्टमेंट की जरूरत नहीं होती.”
चरणदास मायूस हो जाता है, तो वकील भैया उसका हौसला बढ़ाते हुए कहते हैं, “हिम्मत से काम लो.”
लाला कल्लूमल अपनी पत्नी से कहता है, “बिरादरी ने मुझे खजांची बना दिया है.” वह अब म्युनिसिपैलिटी का चेयरमैन बनना चाहता है. बिरादरी- बिरादरी की संकीर्णता चमेली को भारी नागवार गुजरती है. वह पिता से कहती है, “पिछली बार जब हम हरिद्वार गए थे, तो डिब्बे में बड़ी भीड़ थी. बिरादरी के लिए एक अलग डिब्बा बनवा लीजिए ना.”
वह उसे मिलने के लिए पिंटो रेस्टोरेंट बुलाती है. अनीता का प्लान है कि, उसकी सौ-दो सौ रुपए की हजामत हो जानी चाहिए.
चरनदास इस समस्या को लेकर वकील भैया के पास जाता है. वे उसे तरह- तरह के टोटके सिखाते हैं. उसे हाथखर्च के सौ रुपये देते हैं. हजार रुपये और देते हैं.
‘ये हाथी के दांत हैं, दिखाने के लिए.”
“वहाँ से लौटकर, ये दाँत मुझे लौटा देना.”
वे उसे टिप के दस रुपये, अलग से देते हैं.
जब चरणदास कहता है कि, मुझे देर हो रही है. तो वकील भैया गुरु मंत्र देते हैं, “माफी माँग लेना, देर से आने की.”
वह पिंटो रेस्टोरेंट में काफी सज-सँवरकर हाजिर होता है. अनीता, तो उसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाती है. वह कहती है, “मैंने तो सोचा था, कोई धोती-टोपीवाला चरण सिंह होगा.”
चमेली इस मुलाकात से ओवर एक्साइटेड सी नजर आती है. वह अनीता से कहती है “शादी की बात, आज ही पक्की कर लेते हैं.”
चमेली भौंह नचाकर कहती है, “आज होटल का बिल मैं दूँगी..मेरे पास बहुत पैसे हैं.”
वहाँ से लौटकर, चरणदास हाथी के दाँत वापस कर आता है.
अगली मुलाकात में चमेली चरण दास घूम रहे होते हैं. उन्हें रास्ते में अनीता मिल जाती है. वह जबरदस्ती उन्हें पिंटो रेस्टोरेंट में ले जाती है. चरणदास चोरी से अपनी जेब में पड़ी चेंज गिनता है. रेस्टोरेंट में पहुँचकर वह ‘मुझे जरूरी काम है’ का बहाना बनाकर निकलना चाहता है. फिर वह मेन्यू से सबसे कम कीमत के व्यंजन को अपना पसंदीदा व्यंजन बताकर ऑर्डर देता है. शेक्सपियर के नाटक ‘द कॉमेडी ऑफ एरर्स’ पर आधारित फिल्म : अंगूर
वेटर उन्हें पहचान लेता है और बिरादरी की जिम्मेदारी समझते हुए चमेली के घर पर शिकायत पहुँचा देता है. कल्लूमल कहता है, “ये पिनक में है. चिलम और अंटा दोनों.”
“तू तो बिरादरी का ठेकेदार बना रहता है. तेरी तो नाक कट गई.”
चमेली की माँ हंगामा खड़ा कर देती है. “गैर-बिरादरी के लड़के के साथ! मेरी तो नाक कट गई.”
वह फरमान सुना देती है,”इसी महीने लड़का ढूँढो! कर डालो इसकी शादी.”
वह पति को आड़े हाथों लेती है, “लड़की को पढ़ाना क्या जरूरी था.”
“लड़की ऊँट जैसी लंबी हो गई है और तुमको तो फिक्र ही नहीं रहती.”
कल्लूमल कहता है, “घोड़े की बला, तबेले के सर. अरे! मैंने क्या किया, जिसने कुसूर किया है पकड़ोगी उसे.”
वह प्राइम मिनिस्टर का कुसूर बताता है, चूँकि बेटी पढ़ाने को उन्होंने कहा था.
उनकी नजर में तीन लड़के हैं. कल्लू मल कहता है, “मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, तीनों लड़कों को. उनके बाप बीस हजार, पच्चीस हजार दहेज माँगते हैं. मक्खन डेढ़ पसली का है, वकालत पढ़ रहा है. उसका बाप पचास हजार माँगता है.”
चमेली विद्रोह के स्वर उठाती है. उसकी माँ उसे पुचकारते हुए कहती है, “अकेला है, घर का. राज करेगी तू.”
चमेली के बगावती तेवर देखते हुए उसे साधने के लिए उसकी माँ, छदामी (अन्नू कपूर) को बुलाती है.
चमेली को कोठरी में बंद करके ताला डाल देती है. उस पर सख्त पहरा कर दिया जाता है.
जैसे ही यह खबर चरणदास को मिलती है, वह ललकार भरे स्वर में कहता है, “काले धंधे वालों की ये मजाल! अनारकली कैद में है.”
चरणदास अपने दोस्त को चूड़ी वाले के भेष में चमेली के घर के आस-पास भेजता है और उसके मार्फत चमेली को पैगाम भेजता है. चमेली बंद कमरे में, इस कठिन समय को वृहदाकार रेडियो पर फिल्मी गीतों के सहारे काटती है. नजरबंदी में भी वह काफी खुश दिखती है. उसकी माँ शोर मचाते हुए कहती है,
“फिल्मी गानों ने इसका दिमाग खराब कर दिया है.”
छदामी, बात-बात पर टुकड़े कर दूँगा, जमुना में फेंक दूँगा, किस्म की चेतावनी जारी करता है.
चंपा, छदामी से वहाँ से रेडियो उठाने को कहती है. रेडियो उठाने की कोशिश में, छदामी उसके नीचे दब जाता है.
चमेली अपने साथ हो रहे अत्याचार की खबर चरणदास तक पहुँचाती है. “सिर्फ फिल्मी गानों का ही सहारा था, वह भी छूट गया.”
चरण दास उसे जबाबी खत में आश्वस्त करता है, “रेडियो के लिए जी छोटा न करो. मैं ट्रांजिस्टर का इंतजाम करता हूँ.‘
वह तगादा भेजती है, “ट्रांजिस्टर जल्दी भेज देना.”
चरणदास दोस्तों के सामने अपना आक्रोश व्यक्त करता है. “छदामी की हेकड़ी एक ही धोबीपाट में निकाल दूँगा. मक्खन को पिघलाकर पानी कर दूँगा.”
वह ‘जंगी फ्रीस्टाइल’ स्पर्धा में भाग लेता है. जिसमें आकर्षक ईनाम लगा रहता है- जीतने वालों को साइकिल, हारने वाले को ट्रांजिस्टर.
चरण दास को ट्रांजिस्टर की नितांत जरूरत रहती है. वह मन-ही-मन हारने का मंसूबा बनाए रहता है, लेकिन खेलते- खेलते उसका अंतर्मन खेल में रम जाता है. जीतने पर वह आश्चर्य जताते हुए कहता है, “ये मैंने क्या किया.”
फिर वह आयोजकों से विनती करता है, “मुझे ट्रांजिस्टर दे दीजिए.”
बहुरूपिए चूड़ी वाले के मार्फत वह ट्रांजिस्टर, चमेली को पहुँचा देता है.
वकील साहब मक्खन को लिफ्ट देते हैं. उसकी प्रशंसा करते हैं, “तुम्ही होनहार लड़के हो. हम सोचते थे कि, तुम पालकीवाला या जेठमलानी जैसा नाम कमाओगे.”
फिर उसके हो रहे रिश्ते पर टिप्पणी करते हैं, “तुम राजी कैसे हो गए. वे उसे इधर-उधर की बातें सुनाते हैं तो मक्खन कहता है, मैं इस शादी के खिलाफ हूँ.
“कल्लूमल की लड़की!”
वकील साहब उसे नयी जानकारी देते हैं, “तुम भी आ गए चक्कर में. इस तस्वीर को दिखाकर दो लड़कियों को पार करा दिया.. पहली बीवी से तीन लड़कियाँ हैं… मोहल्ले के चरणदास से रोमांस चल रहा है…और रूप-रंग में भी कुछ खास नहीं है, बल्कि कुरूप.”
यह सुनकर मक्खन बिदक जाता है.
मक्खन के पिता लच्छूराम (शैल चतुर्वेदी) तमतमाते हुए कल्लूमल के घर पर जा धमकते हैं. वे वहाँ पर पर वितंडा खड़ा कर देते हैं, “मैं तुम्हें, शरीफ आदमी समझता था. धोखाधड़ी वो भी मेरे साथ! तुम्हारी पहले ही एक औरत है.”
कल्लूमल प्रतिप्रश्न करते है, “ तुमने देखी है, मेरी एक और औरत.”
वे यही सवाल, अपनी पत्नी से भी करते हैं. उधर चंपा, रोना-पीटना मचा देती है.
लच्छूराम, इस रिश्ते को खत्म करने की घोषणा कर बैठते हैं. कल्लू मल उन्हें मनाते हुए कहता है, “अरे! समधीजी.”
लच्छूराम जी बिफर पड़ते हैं, “काहे के समधी.”
कल्लूमल रुआंसा होकर कहता है, “ये सरासर झूठ है. किसी ने भड़का दिया है, तुम्हें. जलने वालों की कमी थोड़े ही है.”
लच्छूमल खुलासा करते हुए कहते हैं, “लड़का घर से चला गया है. कल रात से गायब है.”
कल्लूमल अपने साले छदामी को चरण दास को निपटाने का ठेका देता है. वह प्रतिशोध के आवेग में कहता है, “तू जड़ से ही उखाड़ दे, उसे. हमारी बिरादरी पर आँच नहीं आनी चाहिए… तुझे बचाने में, मैं एक लाख तक का दाँव खेल जाऊँगा.”
नशे में चूर, छदामी चाकू लहराते हुए ऐलान करता है, “आज रात नौ से बारह बजे के बीच, चरणदास खत्म.”
कल्लूमल चौंकते हुए कहता है, “ये कोई सनीमा का तीसरा शो है? एक टाइम बता.”
ठीक टाइम बताने के लिए घड़ी ना होने की वजह बताकर, छदामी अपने जीजा की घड़ी झटक लेता है और फिर ऐलानिया कहता है, “ठीक बारह बजकर दस मिनट पर.”
लिली के अड्डे पर छदामी, चरणदास पर हमलावर हो जाता है. इस अफरा-तफरी में चाकू किसी सेठ को लग जाता है. वह उसे गिरफ्तार करवा लेता है.(बाद में ये गिरफ्तारी ट्रैप गिरफ्तारी साबित होती है.)
वह वकील भैया के सामने अपनी परेशानी बताता है, “मैं क्या करूँ, चमेली कैद में है.”
वकील साहब, मानो इसी मौके के इंतजार में थे. कहते हैं, “बस यही मौका है, तुम एक काम करो. चमेली को कल सुबह होने से पहले यहाँ ले आओ.”
”यहाँ कैसे ले आऊँ” के सवाल पर वे उसे पृथ्वीराज-संयोगिता प्रकरण का दृष्टांत देते हैं. फिर निष्कर्ष में कहते हैं, “हिस्ट्री इस बात की गवाह है, भैंस उसी की
होती है, जिसकी लाठी होती है. पृथ्वीराज ने उसे ताकत के बल पर हासिल किया था.”
चरण दास के संकोच जताने और ‘उसे कैसे ले आऊँ’ कहने पर वे उसका मार्गदर्शन करते हुए कहते हैं, “छल से, बल से नीति से, कपट से जैसे भी हो… कब्जा सच्चा, झगड़ा झूठा. कचहरी जाने से पहले तुम्हारी शादी करवा देता हूँ.”
चरणदास कहीं कमजोर न पड़ जाए, यह सोचकर वे उसे फिर से दो रास्ते बताते हैं, “पहला रास्ता मजनू का है और दूसरा पृथ्वीराज चौहान का, एक्शन वाला.”
चरणदास अखाड़े में दिखाई देता है. वह उस्ताद के सामने कन्फेशन कर देता है, “जिस काम का चालीस के बाद श्रीगणेश करना था, उसमें मैं पहले ही उलझ गया.”
उसे वहाँ से अभय तो मिलता ही है, मदद भी मिल जाती है. वह चमेली को मुँह अंधेरे छुड़ाकर भगा ले आता है.
वकील भैया कहते हैं, “तुम दोनों का मिलन, समाज और देश के लिए सबक है. कालाबाजारी, दहेज वगैरह जैसी समस्याओं के साथ, हमारे देश में एक बहुत बड़ी समस्या और भी है. वह समस्या है, ये जात-बिरादरी, भेदभाव. हम एक हैं, नारा लगाने से एकता नहीं होती. एकता होती है, कुर्बानी के साथ. एकता प्राप्त होती है, जिम्मेदारियाँ उठाने से, कुछ करके दिखाने से. जैसे तुम दोनों ने किया है, जिससे देश और समाज दोनों का भला हो जाए. इसलिए मुझे तुम दोनों से हमदर्दी है.”
यही फिल्म का संदेश है.
वकील कल्लू मल के घर पहुंच जाते हैं. “कल्लू मल जी कहाँ हैं” पूछने पर चमेली की माँ बताती है, “लालाजी तो सो रहे हैं और चमेली बाहर गई है.”
वकील साहब छदामी को छुड़ाने की पेशकश करते हैं. इस पर चमेली की माँ कहती है, “वकील भैया! आप कुछ कीजिए ना.”
वकील, चंपा से पैसे और गहने लेता है और उनकी रसीद भी. चंपा पूछती है, “भैया छूट जाएँगे ना.”
वह उसे आश्वस्त करता है, “ये मेरा जिम्मा है.”
वापसी में वह उन्हें न्योता देना नहीं भूलता, “एक घंटे के अंदर, मेरे घर आ जाइए.”
उनके पूछने पर कि, क्या बात है, तो वह चलते-चलते कहता है, “चमेली की शादी है, चरण दास के साथ.”
लाला कल्लूमल बिरादरी को इकट्ठा करते हैं. उन्हें एहसास दिलाता है, “मेरी लड़की की जबरन शादी कराई जा रही है. सब की नाक कट रही है. लानत है, हमारी बिरादरी पर.”
वह बिरादरी का गोल बनाकर, वकील के घर की तरफ कूच करता है, तो उधर भजन दास अपनी बिरादरी के सामने बिफरता है, “हम सब समाज के ठेकेदार हैं इस शादी को रुकवाना ही होगा.”
कल्लूमल, उद्घोषणा करते चले जाते हैं, “आज मेरा पावर देखना.”
उधर मस्तराम पहलवान के लठैत दरवाजे पर सख्त पहरा दिए रहते हैं. वे किसी को भी अंदर नहीं जाने देते. कल्लूमल और उसकी बिरादरी के लोग जब अंदर जाने की जद्दोजहद करते हैं, तो उस्ताद कहते है, “देखिए, आप लोग काजी हैं, अंदर सब राजी हैं.”
वकील साहब, चमेली की मास्टरनी को एज वेरिफिकेशन के लिए बुला लेते हैं, कस्बाई रोमानी कथाओं में तब नाबालिग लड़की का केस बनाना आम था, जो लगभग ब्रह्मास्त्र का काम करता था. उधर दोनों पक्ष चीखते-खीझते रहते हैं. “बिरादरी के बाहर, शादी हो रही है. ये शादी, गैरकानूनी है.” जैसे जुमले बोलते हैं और विरोध की असफल कोशिश करते हैं. तभी मोहल्ले के लड़के, ‘चमेली-चरणदास जिंदाबाद’ का नारा लगाते हुए मैदान में आ धमकते हैं.
विवाह की रस्में होने के बाद हरीश वकील फरमान सुनाते हैं, “सगे-संबंधी अंदर आ सकते हैं.”
दोनों पक्षों के विरोध को देखते हुए वकील साहब फैक्चुअल पोजिशन बताते हैं, “लड़की नाबालिग नहीं है. हेड मिस्ट्रेस सर्टिफिकेट लेकर आई है. लड़की की उम्र उन्नीस साल, छह महीना, साढ़े तीन दिन और ढाई घंटा है.”
वे कल्लूमल को अकेले में राज की बात बताते हैं, “शादी मुफ्त में हुई है. आप मानते हो कि, चरणदास सारे लड़कों का लीडर है. उसकी एक आवाज पर एक इशारे पर लड़के आपकी नेतागिरी बढ़ाने में मदद करेंगे. म्युनिसिपालिटी के चेयरमैन से लेकर, लोकसभा सदस्य तक…”
कल्लूमल हैरत के साथ पूछते हैं, “क्या मैं जीत सकता हूँ.”
वकील साहब उन्हें भविष्य दिखाते हुए कहते हैं, “आप इलेक्शन जीतेंगे ही. भाषण मैं लिखता रहूँगा. सामने वालों की जमानत जब्त हो जाएगी. आप मेजॉरिटी से जीत जाएंगे.”
चंपा आकर रोना-धोना शुरू कर देती है, तो कल्लूमल उसे झिड़कते हुए कहते हैं,” कोई मर गया क्या. खुशी के मौके पर सब हंसते हैं.”
जब वह कहता है क्या मैं जीत सकता हूँ, तो वकील साहब उसे फिर से कन्फर्म करते हुए कहते हैं, “स्टाम्प पेपर पर लिख दूँ.”
इसी तरह से वकील साहब भजन लाल जी को आश्वस्त करते हैं, “…अगर-मगर क्या होता है, कल्लूमल जी चुनाव जीतेंगे ही. उनके हल्के से इशारे पर, सीमेंट की बोरियाँ कंट्रोल रेट पर मिल जाएँगी आपको.”
तभी, भाभी आकर उन्हें कहती है, कि वहाँ शादी की रस्में शुरू हो गई, तो भजन लाल, झुंझलाहट में कहते हैं, “तो तुम जाकर रस्में देखो.”
लगे हाथ, उस्ताद भी अपने फेरे पढ़वा लेते हैं. फिल्म का सुखांत समापन होता है.
वासु चटर्जी ने यह फिल्म टेक्नीशियन के साथ मिलकर बनाई थी. ‘फीस कम मिलेगी’ की बात पर अनिल कपूर मान गए. इसलिए लीड स्टार्स को इसमें रियायती दरों पर काम करना पड़ा.
अनिल कपूर असंदिग्ध रूप से हास्य में निपुण कलाकार रहे हैं, उनका यह कौशल आगे की फिल्मों में भी देखने को मिलता है. कस्बाई युवती की भूमिका में अमृता सिंह, काफी मुखर दिखती हैं.
पंकज कपूर, अपने सिग्नेचर स्टाइल में नजर आए. कल्लूमल, पत्नी से आच्छादित पति की भूमिका में हैं, जिसे व्यापार और बिरादरी से ज्यादा सरोकार रहता है. उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो रहती है, लेकिन पुत्री के प्रति उसमें कटुता नहीं दिखाई देती. अन्नू कपूर, विद्रोही बच्चों को काबू रखने के लिए परिवार के उस सबसे बिगड़ैल रिश्तेदार (यहाँ पर मामा) की भूमिका में हैं, जिसकी सरपरस्ती में बच्चों को डाल दिया जाता है. नशाखोर मामा की भूमिका को उन्होंने बखूबी निभाया. अमजद खान, लगभग सूत्रधार की भूमिका में है. समाज के मुश्किल फैसलों को वे बड़ी आसानी से कानून से बचाकर करते हैं.
कहीं-कहीं पर नाटकीय होने के बावजूद, फिल्म में यथार्थवादी परिवेश दिखता है, इसलिए दर्शक मन से जुड़ जाते हैं.
जातिवाद से जुड़े सवाल और बेहद जटिल धारणाएँ, हल्के-फुल्के अंदाज में रखने की कला, वासु चटर्जी को खूब आती है, इसलिए फिल्म अंत तक दर्शकों को बाँधे रखने में सफल रही.
ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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