सिनेमा : इश्क़ की कोई उम्र नहीं होती
2007 में इजरायल, अमरीका और फ्रांस के सहयोग से बनी कथा फ़िल्म बैन्ड्स विज़िट संगीत से उपजे प्रेम की एक ऐसी कहानी है जो हर धड़कते हुए दिल में कभी न कभी जरूर उमड़ती है. यह अलग बात है कि प्रेम कहानि... Read more
जिला पिथौरागढ़ में एक गाँव होता था लाचुली. पूरा पता – ग्राम लाचुली, पोस्ट देकुना, तेजम, जिला- पिथौरागढ़. ‘था’ इसलिए कह रहा हूँ कि सरकारी फाइलों में बाकायदा बने रहने के बावजूद आज इस गाँव में एक... Read more
बेरीनाग टू बंबई वाया बरेली भाग- 2
पिछली कड़ी से आगे… अमिताभ बच्चन या विनोद खन्ना ? 15 अगस्त 1971 को मेरी माँ के मन में ये सवाल आया तो उन्होंने किसे चुना होगा ? उन्हें मेरा नाम रखना था.मै तो पैदा हो गया था पर अमिताभ बच्च... Read more
उत्तराखण्ड का इतिहास भाग- 3
आद्यऐतिहासिक काल- ऐतिहासिक काल से पूर्व चतुर्थ-तृतीय सहस्त्राब्दी पूर्व तक आद्यऐतिहासिक काल माना जाता है. उत्तराखण्ड में इस काल के प्रमुख स्त्रोत धार्मिक ग्रन्थ होने के कारण इसे पौराणिक काल... Read more
पहाड़ के एक प्रखर वक्ता का जाना
वह ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन को किसी नारे या मुहावरे की तरह नहीं बल्कि एक प्रखर सच्चाई की तरह जीता हुआ. शमशेर... Read more
आधुनिक इतिहास में जब भी महान खिलाड़ियों की चर्चा हो, सी. बी. फ़्राइ का नाम ज़रूर लिया जाना चाहिये. इस आदमी की उपलब्धियों के बारे में जानकर बस हैरत हो सकती है. इंग्लैंड की क्रिकेट टीम के अजेय कप... Read more
विनोद कापड़ी का इंटरव्यू
पिछले दिनों हमने विनोद कापड़ी के विषय में लिखा था. 2016 के अंत में हल्द्वानी फिल्म फेस्टिवल के दौरान विनोद कापड़ी की फिल्म ‘मिस. टनकपुर हाजिर हो ‘और ‘कांट टेक दिस शिट एनीमो... Read more
चालाक गीदड़ और शिबजी की कथा
जिन दिनों खेतों में हल लगाने का काम होता घर के सब बड़े लोग बच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं देते. दादाजी, दादी, माँ, चाचियाँ, ननि दादी, ठुली दादी सब कहते आज-कल सब बच्चे चुप सो जाओ. सब थके हैं. जब... Read more
लड़कियों के बाप
विष्णु खरे समकालीन सृजन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण नाम रहे. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली. इन्दौर से प्रक... Read more
अथ टार्च, लालटेन, लम्फू और ग्यस कथा
तब टार्च, लालटेन व लैम्फू के बिना अधूरा था जीवन -जगमोहन रौतेला आजकल तो भाबर में अब शहर तो छोड़िए गांव-गांव बिजली की चमक पहुँच गयी है. चार दशक पहले ऐसा नहीं था. भाबर के अधिकतर गांव रात को अधे... Read more