असंख्य पाठ्यपुस्तकों के बीच अदृश्य हिंदी पाठक अगर आप देश-विदेशों में हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या पर जायेंगे तो जरूर चकरा जायेंगे. बीते कुछ सालों से हिंदी पढ़ने का फैशन कम होता जा... Read more
आसमानी बिजली और तूफ़ान की कहानी
अफ्रीकी लोक कथाएँ – 7 बहुत पहले आसमानी बिजली और तूफ़ान बाकी सारे लोगों के साथ यहीं धरती पर रहा करते थे, लेकिन राजा ने उन्हें सारे लोगों के घरों से बहुत दूर अपना बसेरा बनाने का आदेश दिया हुआ... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 7
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मंदिर में... Read more
कोई कह सकेगा उसे कि मुझे एक ऐसा क़लम लाकर दे दे
मुझे विश्वास होता जा रहा है कि इस श्राप का तोड़ जालंधर वाले बूढ़े के पास ही है … .शाम से याद कर रही हूं लेकिन नाम याद नहीं आ रहा उसका. दो साल पहले जनवरी में ही तो मिला था पहली और शायद... Read more
आज है आंचलिक त्यौहार वट सावित्री
वैश्वीकरण और बाजारीकरण की आंधी में लोकोत्सवों, स्थानीय त्यौहारों का वजूद ख़त्म होता जा रहा है, या फिर उनका मूल स्वरुप लुप्त होता जा रहा है. उत्तराखण्ड के भी कई मेले, त्यौहार अपना मूल स्वरुप ख... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 4
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव सासति करि पुनि करहि पसाउ | नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाउ || सबकुछ अचानक हुआ था. जैसे गणेश जी दूध पी लिए. जैसे दीवार पर साईं भगवान दिखने लगे. जैसे दुखिया के घर-आँगन... Read more
ऐसी दुर्लभता को बचाया ही जाना चाहिए
हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ – 5 अस्सी के दशक में समकालीन कविता में जिन महत्वपूर्ण कवियों ने पहचान बनायी उसमें हरीश चन्द्र पाण्डे का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है. समकालीन हिन्दी कव... Read more
करवा चौथ पर श्री टेलीविजन को पत्र
श्री टेलीविजन जी, आज करवा चौथ है. सो कल भीषण शापिंग के चलते मेरे शहर की सड़कें जाम थीं. बिल्कुल नई दुल्हन सा सजना होता है इसलिए सब कुछ नया चाहिए होता है. कांच की चूडियों को टूटने से बचाने के... Read more
जागर-गाथा और पाँडवों का जन्म
मानव में बुद्धि के उत्पन्न होने के साथ ही उसने किसी परालौकिक शक्ति की कल्पना कर ली होगी जिसने कालान्तर में इस शक्ति को कई रूपों में विभाजित कर दिया होगा. इस विभाजन से पृथ्वी पर मानव के विस्त... Read more
लाल मकान वाली हेमा
“उत्तरायण” कार्यक्रम में एक–दो बार उन्हें देखा होगा जब कभी वे लोक वार्ता बांचने आतीं लेकिन ठीक से मुलाकात की याद “आंखर” संस्था का गठन होने के बाद की है- 1977-78 के आस-पास. हम कुमाऊंनी नाटकों... Read more