कैसे बनता है बरेली का मांझा : एक फोटो निबंध
‘कनकौए और पतंग’ शीर्षक अपनी एक रचना में नज़ीर अक़बराबादी साहेब ने पतंगबाज़ी को लेकर लिखा था: गर पेच पड़ गए तो यह कहते हैं देखियो रह रह इसी तरह से न अब दीजै ढील को “पहले तो यूं कदम के तईं ओ मियां... Read more
विज्ञान, मेडिकल अध्ययन और फिजियोलॉजी के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रोफ़ेसर आई. डी. सक्सेना मेमोरियल अवार्ड इस वर्ष राजकीय मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस प्रथम वर्ष की छात्रा फ़लक ज़मा को दिया गया.... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 38
यहां भाबर के लिए एक शब्द अक्सर प्रयोग में लाया जाता है ‘भबरी जाना,’ यानि खो जाना. यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि इस खो जाने की प्रक्रिया को भबरिया कहा जाने लगा. ऐसा शब्द किसी भी शब्दकोश मे... Read more
कुमाऊं के सुन्दर कौसानी-सोमेश्वर मार्ग पर कौसानी से 3 और सोमेश्वर से 9 किलोमीटर दूर एक छोटी सी जगह पड़ती है ल्वेशाल. ग्राम सभा छानी ल्वेशाल के अंतर्गत आने वाला और लोकगायकों की समृद्ध परम्परा... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 31
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
चलने के भ्रम के साथ चलते भाई साहब
मनुष्य जिंदा होगा तो चलेगा-फिरेगा. चलेगा तभी अपने तथा दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर सकेगा. चलने के लिए अच्छा रास्ता चाहिए. अच्छा का मतलब यह नहीं कि रास्ता सुविधा पूर्ण हो. रास्ता मुश्किलों से भ... Read more
रुद्रप्रयाग में टॉस से हुआ चुनाव का फैसला
उत्तराखंड में बीते रविवार हुए स्थानीय निकाय चुनावों के परिणाम आना शुरू हो गए हैं. स्थिति अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुई है और ऐसा होने में अभी कुछ घंटों का समय और लग सकता है. सभी स्थानों पर अन... Read more
नीम करोली बाबा की दुर्लभ तस्वीरें – 2
नैनीताल और गरमपानी के बीच स्थित नीम करोली ( नीब करौरी ) आश्रम, कैंची धाम लम्बे समय से श्रध्दालुओं की भक्ति के बड़े केंद्र के रूप में विकसित होता जा रहा है. इस आश्रम की स्थापना करने वाले बाबा... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 8 (पिछली क़िस्त : अमीर अंकलों की खैरात से जब दिल्ली में मैंने मौज उड़ाई ) (पोस्ट को लेखक सुन्दर चंद ठाकुर की आवाज में सुनने के लिये प्लेयर के लोड होने की प्रतीक्षा करें.... Read more
पहाड़ों में अब मौसमी गीत ही गीत हैं. बसंत बरसात और प्यारा जाड़ा तो है. जाड़ा अब उतना गुलाबी नहीं जैसे हुआ करता था. बरसात में यदा – कदा रिमझिम बरखा होती तो है ज्यादा तो फट के ही बरसती है.... Read more