बीसवीं सदी में सबसे ज़्यादा पढ़े गए लेखकों में शुमार रोआल्ड डाल ने उपन्यास लिखे, बच्चों के लिए किताबें लिखीं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि एक से एक अविस्मरणीय कहानियां लिखीं. नॉर्वेजियन मूल के माता... Read more
पप्पन और सस्सू के न्यू ईयर रिज़ोल्यूशन
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 13 अमित श्रीवास्तव समय- दिन ढलने वाला था बाकी आपको घड़ी की घटिया आदत लग चुकी है तो उसी के हिसाब से कोई भी समय लगा लो दिनांक- इकत्तीस दिसम्बर (साल बता दें त... Read more
कुमाऊँ का अनूठा नगीना है मुनस्यारी
अतीव सुन्दर जोहार घाटी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बहने वाली गोरीगंगा नदी के किनारे अवस्थित है. परम्परागत रूप से जोहार घाटी को तीन भौगोलिक हिस्सों में बाँट कर देखा जाता रहा है – मल्ला (ऊप... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 69
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
दुनिया जहान को मालूम है कि पिथौरागढ़ के नैनी-सैनी हवाई अड्डे का इंतजार इस लोक में ही नहीं बल्कि परलोक में भी खूब हो रहा है. पूरी एक पीढ़ी आज भी स्वर्ग में अप्सराओं के नृत्य की ओर पीठ पलटाए स्व... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 24 पिछली कड़ी:कहो देबी, कथा कहो – 23, कब्बू और शेरा हां, उन्हीं दिनों की बात है. एक दिन एक साथी ने कहा, “सुना है, कोई मिस्टर त्यागी आए हैं. कुलपति से मिल कर यहां किए जा रह... Read more
समूचा हिंदुस्तान नजर आता है ‘बावर्ची’ फिल्म में
बावर्ची (1972) विघटित होते पारिवारिक मूल्यों की पुनर्स्थापना को लेकर आई एक नए मिजाज की फिल्म थी. तब के दौर के हिसाब से यह फिल्म, एक बिल्कुल नये विषय को लेकर आई. ऋषि दा की फिल्मों के विषय आम... Read more
सुतली उस्ताद और फेसबुक
जल के असंख्य नाम होते हैं. मेरे एक परम सखा के भी ऐसे ही असंख्य नाम हैं. कोई तीसेक साल पहले एक दफा होली के मौसम में उन्होंने बाबा तम्बाकू के टीन के डिब्बे में छेद कर और उस छेद में से घासलेट म... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 68
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
चचा ग़ालिब के जन्मदिन पर उनकी हवेली से एक रपट
सुबह जब गली मीर क़ासिम जान पहुंचा तो उनकी हवेली, जिसे अब एक स्मारक में तब्दील कर दिया गया है, के आसपास कुछ ख़ास नज़र नहीं आया. बाहर उनके पोते के साथ अपने बच्चे को मदरसे ले जाने के लिए रिक्शे का... Read more