उत्तराखंड ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा ‘दाल-भात’
दाल-भात का उत्तराखंड ग्रामीण संस्कृति में पहला स्थान है. नामकरण, जनेव, शादी, बरसी सभी में दाल-भात मुख्य भोजन होता था. बात उस समय की है जब न कार्ड था न चिठ्ठी. कार्ड से निमंत्रण देने की परम्प... Read more
एक समय था जब दुनिया भर में मलेरिया जानलेवा बीमारी मानी जाती थी और असंख्य लोग इसकी चपेट में आकर असमय काल कवलित हो जाया करते थे. मलेरिया के चलते ही उत्तराखंड के पहाड़ों से मैदानी भागों यानी तरा... Read more
उर्दू से सबसे सफल शायर सब मानते हैं कि उर्दू एक बेहद मीठी ज़बान है. इस भाषा में लिखी गयी कविता भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लोकप्रिय काव्य विधा मानी जा सकती है. पीढ़ियों से लोग देश, काल और परिस्थ... Read more
“रिद्धि को सुमिरों सिद्धि को सुमिरों” – उत्तराखण्ड लोकसंगीत की विलुप्त वैरागी परम्परा
बुजुर्ग लोग बताते हैं कि आज से कोई पांच-छह दशक पूर्व तक गुरु गोरखनाथ की परंपरा के नाथ पंथी योगी पहाड़ के गावों में घूम-घूम कर इकतारे की धुन में उज्जैन के राजा भृतहरि व गोपीचंद की गाथा सुनाया... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 107
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
मैं हल्द्वानी हूँ – एक फिल्म
हल्द्वानी में पहले हल्दू के पेड़ बहुतायत में हुआ करते थे इसलिए उसे हल्द्वानी कहा जाने लगा. वर्तमान हल्द्वानी के निकट मोटाहल्दू और हल्दूचौड़ गांव हैं. पूर्व में मोटाहल्दू के निकट वाले क्षेत्र क... Read more
देना! – नवीन सागर जिसने मेरा घर जलाया उसे इतना बड़ा घर देना कि बाहर निकलने को चले पर निकल न पाये. जिसने मुझे मारा उसे सब देना मृत्यु न देना. जिसने मेरी रोटी छीनी उसे रोटियों के समुद्... Read more
गिर्दा का केदारनाद
विगत कुछ सालों से महानगरों में खप रहे युवाओं के बीच पहाड़ लौटकर कुछ कर गुजरने का एक नया, सकारात्मक चलन देखने में आ रहा है. ये युवा बहुत उम्मीद के साथ पहाड़ लौटते हैं और खुद पहाड़ की उम्मीद बन ज... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 106
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
अलग पहचान रखता है थारू समुदाय
उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर जिले के तराई अंचल में रहने वाले एक समुदाय को थारू जनजाति के नाम से जाना जाता है. ये लोग तराई की बीहड़ जलवायु में घने जंगलों के बीच प्राकृत... Read more